टी मनोज
एक सिरे से दूसरे सिरे तक हरियाणा की लंबाई 400 किलोमीटर है। लेकिन प्रदेश के शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा की सरकारी गाड़ी रोजाना औसतन 933 किलोमीटर का सफर तय कर रही है। यानी एक दिन में यह गाड़ी प्रदेश के दो चक्कर आराम से लगा ले रही है। यह दूरी क्यों मापी जा रही है? आखिर मंत्री जी इतना आना जाना कहां कर रहे हैं? शर्मा इसका कोई जवाब नहीं देते हैं। वह भी तब जब इस दूरी को तय करने के लिए 1.82 लाख रुपये से ज्यादा का तेल जलाया जा रहा है। इस तरह यदि देखा जाए तो 24 घंटे में हर रोज औसतन 15 घंटे शिक्षा मंत्री यात्रा में ही बिता रहे हैं। कब काम करते हैं, कब आराम करते हैं, यह तो वह ही जानें।
सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक उनकी गाड़ी के हर रोज चलने का औसत यही निकल कर आ रहा है। रामबिलास शर्मा ने इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। आरटीआई एक्टिविस्ट जगजीत सिंह वालिया ने एक अर्जी लगा कर यह जानने की कोशिश की थी कि मंत्रियों की गाड़ियां कितनी चली। आरटीआई का जो जवाब सरकार की ओर से आया उसके मुताबिक हरियाणा के मंत्री मुख्यमंत्री से भी ज्यादा अपनी कारों को दौड़ा रहे हैं। उनके सरकारी वाहन हमेशा सफर में रहते हैं। सीएम की आठ कारें औसतन हर महीने 17 से 19 हजार किलोमीटर चलती हैं।
शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा के पास दो सरकारी गाड़ी है जिसने जुलाई 2015 में करीब 28 हजार किलोमीटर की दूरी तय की। सरकार की तरफ से उन्हें 1.82 लाख रुपये का तेल का बिल दिया गया। उनकी टोयोटा फॉर्च्यूनर और मारुति एसएक्स4 ने अगस्त में 25,360 किलोमीटर, सितंबर में 22,028 किलोमीटर और अक्टूबर में 25,454 किलोमीटर की दूरी तय की है। इन चार महीनों के तेल बिल के रूप में उन्हें सरकार की ओर से 6.20 लाख रुपये दिए गए। एक महीने का उनका तेल बिल औसतन 1.55 लाख रुपये आ रहा है। इस अवधि में मुख्यमंत्री की कारों का तेल बिल औसतन 90 हजार रुपए आया है।
कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनकड़ की कार अक्टूबर में 24,360 किलोमीटर, जुलाई में 18,640 किलोमीटर, अगस्त में 23,596 किलोमीटर, सितंबर में 23,596 किलोमीटर चली है। राज्य मंत्री कृष्णन बेदी की कार हर महीने औसतन 18,424 किलोमीटर दौड़ी है। पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग मंत्री घनश्याम सराफ औसतन 17,782 किलोमीटर तो खाद्य आपूर्ति राज्य मंत्री करणदेव कंबोज 16,926 किलोमीटर की यात्रा हर महीने करते हैं। ऐसे भी कई मंत्री और विधायक हैं जिनकी कार महीने में औसतन 12 हजार किमी चली है। इनमें वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, बिक्रम सिंह ठेकेदार, कविता जैन, नायब सिंह सैनी और नरबीर सिंह शामिल हैं।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि ज्यादा कार चलाने का मतलब तो यह है कि उनके मंत्री ज्यादा काम कर रहे हैं। इसे किसी भी तरह से गलत तरीके से नहीं लिया जा सकता है। सभी मंत्री तय नियमों के मुताबिक ही गाड़ी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए यह कोई मुद्दा ही नहीं बनता। इस बीच, गाड़ी ज्यादा चलने की बात सामने आते ही कृषि मंत्री ने अपने सरकारी ड्राईवर को बदल दिया। इससे यह माना जा रहा है कि मंत्री को पता ही नहीं चला और उनकी गाड़ी इतने किलोमीटर चल गई।
जांच होनी चाहिए
आरटीआई एक्टिविस्ट और वकील संजय का कहना है कि यह जांच का विषय है कि आखिर मंत्रियों की गाड़ियां कहां जा रही हैंं? इन पर खर्च होने वाला पैसा जनता का है। ऐसे में हमें यह जानने का हक तो है ही कि आखिर यह नेता इतनी दूरी किसलिए और कहां नाप रहे हैं। पहली नजर में तो यही लग रहा है कि सरकारी गाड़ियों का बेजा इस्तेमाल हो रहा है। मंत्रियों के परिवार वाले और रिश्तेदार सरकारी तेल फूंक रहे हैं। अगर इतनी देर तक कोई मंत्री सफर कर रहा है तो वह काम कब करता होगा। या फिर तेल बिल बनाने के लिए गाड़ियां कागजों पर दौड़ रही हैं।
इससे भी बड़ी बात यह है कि मनोहर सरकार पिछली सरकारों पर बेजा खर्च करने का आरोप लगा रही है। लेकिन आरटीआई के जवाब से तो यही साबित हो रहा है कि इस सरकार में भी फिजूल खर्च पहले की तरह ही हो रहा है। संजय के मुताबिक हर बात पर ट्वीट करने वाले हेल्थ मिनिस्टर अनिल विज इस मसले पर चुप है।
दायर होगी जनहित याचिका
सामाजिक कार्यकर्ता राजन शर्मा का कहना है कि इस बारे में जल्दी ही एक जनहित याचिका दायर की जाएगी। इसमें मंत्रियों से उनकी गाड़ी चलाने का हिसाब मांगा जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट से यह भी अपील की जाएगी कि मंत्रियों के गाड़ियां चलाने पर भी कोई नीति बननी चाहिए। उनके मुताबिक मामला सिर्फ इन गाड़ियों के ज्यादा सफर तय करने भर का नहीं है। जब वीआईपी रोड पर होता है तो सुरक्षा के नाम पर पुलिस दूसरे वाहनों को किनारे खड़ी करवा देती है। रोड पर उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस का लंबा चौड़ा काफिला चलता है। उस पर भी खर्च होता है। सड़क पर उन्हें सबसे पहले व सुरक्षित निकालने के लिए पायलेट जिप्सी चलती है। मंत्री और मुख्यमंत्री जितनी देर सड़क पर रहते हैं उतने समय के लिए सड़क पुलिस के कब्जे में रहती है। इससे आम आदमी को भारी परेशानी होती है। मंत्री इस तरह से किसी को तंग नहीं कर सकते। इसलिए इस दिशा में कुछ तो होना ही चाहिए।