अफागर वे मुकदमे जिता सकते हैं, तो देश में व्याप्त बेरोजगारी क्यों नहीं दूर कर देते? अपराधियों का सया क्यों नहीं कर देते? नक्सलियों पर अपना जादू क्यों नहीं चलाते कि वे असलहे छोडक़र तेंदू पत्ते से बीड़ी बनाना शुरू कर दें. नेताओं के मूढ़ मगज में यह सीख क्यों नहीं घुसाते कि जनता से झूठे वादे करना, उसे ठगना पाप है.
सब्जी लेने के लिए नुक्कड़ की तरफ निकला, तो नजर अचानक सामने की दीवार पर जाकर टिक गई. वहां एक पोस्टर चस्पां था, ऑल वल्र्ड खुला चैलेंज. कारोबार-प्यार में परेशानी, गृह क्लेश, सौतन-दुश्मन एवं किए-कराए से छुटकारा पाइए, प्रेमी-प्रेमिका को अपने वश में करिए. काम न होने पर पूरा पैसा वापस. संपर्क करें- बाबा बीएल भयंकर, खतरनाक गली, अंधा मोड़, ताड़ीखाने के पास…
पढक़र माथा चकरा गया कि यह तो भइया लाल का पता है. मैंने सोचा कि चलकर देखते हैं, आखिर माजरा क्या है? उनके घर की ओर कदम बढ़ाए भर थे, तभी देखा कि आस-पास स्थित बिजली के खंभे एवं दीवारें उसी पोस्टर से अटी पड़ी हैं. खैर, मैंने ड्योढ़ी पर पहुंच कर सांकल खटखटाई.
अंदर से आवाज आई, कौन है? भइया लाल ने सोचा कि कोई ‘क्लाइंट’ आ फंसा.
मैं हूं मक्खन, दादा दरवाजा खोलिए, मैंने जवाब में कहा.
आओ, तुम्हें भी आज आना था! खोट कर दी. पहले ही दिन अपनी शक्ल दिखाने पर आमादा हो, यह कहते हुए भइया लाल ने बहुत अनमने होकर दरवाजा खोला.
प्रणाम दादा, यह क्या जाल-बट्टा है? मैंने आस-पास लगे पोस्टरों की ओर इशारा करते हुए कहा.
इसमें जाल-बट्टा क्या है, माई स्वीट हार्ट? भइया लाल ने चिहुंकते हुए कहा, नए धंधे की शुरुआत कर रहा हूं. किसी को भी पुराना धंधा छोडऩे और नया अपनाने का हक है.
बिल्कुल है, लेकिन ऐसी खुली ‘बटमारी’ को धंधा भला किस लिहाज से कहा जा सकता है? और, आप कब से धंधेबाज हो गए? मैंने सवाल दागा.
मुझे अपनी तरह निठल्ला समझ रखा है? मैं कोई काम-धंधा नहीं कर सकता क्या?
क्यों नहीं कर सकते? लेकिन, आप इस लंपटगीरी को धंधा कब से मान बैठे? मैंने भइया लाल को उलाहना दिया.
मैं जानता हूं बबुआ, यह विशुद्ध लंपटगीरी है, लेकिन कहते हैं कि समय के साथ चलिए यानी मूव विथ द टाइम्स. इसे यूं समझो कि अब लंपटगीरी में ही तरक्की की संभावनाएं बसती हैं, भइया लाल ने जवाब दिया.
लेकिन, आप तो सदा-सर्वदा से जनहितैषी सोच वाले शख्स रहे हैं, आखिर आपको यह बेजा सलाह दी किसने?
सिर्फ जनहितैषी सोच रखने से काम नहीं चलेगा, कुछ और भी करना पड़ेगा, जिससे समाज का कल्याण हो, भइया लाल के चेहरे पर संजीदगी तारी थी.
क्या मतलब?
ज्यादा मतलब-वतलब के चक्कर में न पड़ा करो, वर्ना जल्दी बूढ़े हो जाओगे.
दादा, बात पल्ले नहीं पड़ रही है, सीधे-सीधे लाइन पर आइए, जलेबी न बनाइए, मैंने शिकायती लहजे में कहा.
मुन्ना, यह सब जो तुम देख रहे हो, मैंने सुखन नहीं, बल्कि इसलिए किया है, ताकि आम जन को असलियत से वाकिफ करा सकूं.
आखिर किसकी?
बाबा बीएल भयंकर की. पुत्तर, अगर बाबा-तांत्रिक मुकदमे जिता सकते हैं, कारोबार-प्यार की बाधाएं दूर कर सकते हैं, किसी को वश में कर सकते हैं, दुश्मन की एैसी-तैसी कर सकते हैं, तो देश में व्याप्त बेरोजगारी क्यों नहीं दूर कर देते? अपराधियों का सफाया क्यों नहीं कर देते? नक्सलियों पर अपना जादू क्यों नहीं चलाते कि वे असलहे छोडक़र तेंदू पत्ते से बीड़ी बनाना शुरू कर दें, भइया लाल जारी थे, मेरी किसी से निजी खुन्नस नहीं है प्यारे, लेकिन अगर इनके वश में वाकई सब कुछ है, तो नेताओं के मूढ़ मगज में यह सीख क्यों नहीं घुसाते कि जनता से झूठे वादे करना, उसे ठगना पाप है. अरे, इन पाखंडियों-ढोंगियों के हाथों में समाधान का हुनर होता, तो देश में आज कोई समस्या भला क्यों होती?
बहुत खूब दादा, सही पकड़े हैं, आज तो दिल खुश हो गया.
Your point of view caught my eye and was very interesting. Thanks. I have a question for you.