कवर स्टोरी -गाय बनी राजनीति की खुराक
उत्तर प्रदेश के दादरी के बिसहड़ा गांव में गोकशी विवाद में एक ग्रामीण की हत्या के मामले ने देश की राजनीति गरमा दी है। मुद्दे ढूंढ रहे राजनेता इसे अपनी अपनी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन इस गहमागहमी के बीच क्या हैं बिसहड़ा के हालात, मृत्युंजय कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट। साथ में पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक शंकर शरण और अरुण कुमार त्रिपाठी की इस मसले पर विशेष टिप्पणी।
बिहार विधानसभा चुनाव
- विकास की सड़क बनाम जाति की पगडंडी – जातिगत राजनीति में फंसे बिहार के लोग विकास के मुद्दे पर उलझन में हैं। खासकर गांवों में विकास के गणित पर सोचने की जरूरत है।
- दागी-दबंगों की भरमार– चुनाव मैदान में उतरे आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों से जुड़ी खबर।
- नीतीश खेमे में स्थापित दलित चेहरे का संकट– विवेक कुमार की टिप्पणी (श्रीमुख से)।
- जब नरेंद्र मोदी के मुरीद थे नीतीश– वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह की किताब के अंश।
उत्तर प्रदेश
- दलितों पर अपराध, अव्वल यूपी- लचर पुलिसिया जांच और चार्जशीट दाखिल करने में हीलाहवाली से अपराधियों के बढ़ रहे हौसले।
- मजदूरी मांगने पर दबंग ने काटी मजदूर की जुबान- उत्तर प्रदेश में इस समय दलित उत्पीड़न और शोषण चरम पर पहुंच गया है। सत्ता पक्ष से सम्बद्ध स्थानीय और छुटभैये कार्यकर्ता इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।
- अनूठे गांव की निशानेबाज दादियां- यूपी के जोहड़ी गांव की उम्रदराज महिलाओं ने अपने कारनामे से दुनिया भर में शोहरत हासिल की है।
अंतरराष्ट्रीय
- सुलगती सीमा, जलता नेपाल- संविधान में मधेस और तराई की घनघोर उपेक्षा के कारण पड़ोसी देश गृहयुद्ध के मुहाने पर। उत्तर प्रदेश के सात जिलों के लगभग सात सौ किलोमीटर के दायरे को भारत-नेपाल सीमा छूती है। आंदोलन का असर इस हलके में कुछ ज्यादा ही है।
- इस्लामिक स्टेट’ के बहाने स्वार्थ साधती महाशक्तियां- आतंकवाद के प्रसव में दाइयों की भूमिका निभाने वाली शक्तियों से आतंकवाद का गला घोंटने की आशा नहीं करना चाहिए। रेत में सिर डालने से तूफान के तेवर कमजोर नहीं होते।
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