ओशो को सुनकर लगा कितना कम जानता था मैं: खुशवंत सिंह
ओशो के प्रवचनों ने मुझे विस्मय विमुग्ध किया है। एक तो उनका हिंदी बोलने का लहजा मुझे अच्छा लगा। दूसरे जब आप उनकी वाणी सुनते हैं तो आपका मन यहां वहां भटकता नहीं है। वे आपको बांधकर रखते हैं। मैंने भी जपुजी का अंग्रेजी अनुवाद किया है लेकिन मैंने देखा कि ओशो नानक के हर सूत्र की कितने विभिन्न पहलुओं से व्याख्या करते हैं। उनके प्रवचन सुनकर मुझे लगा कि मैं जपुजी के बारे में कितना कम जानता था। और हम लोग सारी जिंदगी जपुजी का पाठ करते रहते हैं। सबसे कीमती बात जो मुझे ओशो की लगी वह यह कि वे हर श्लोक को, उपनिषद को, सूफी कहानियों को न जाने कितने किस्म की पृष्ठभूमि देकर प्रस्तुत करते हैं। मैंने तो सिर्फ शब्दश: अनुवाद किया हुआ था। ओशो ने जपुजी को इतना नया संदर्भ दे दिया कि उसे एक नया अर्थ प्राप्त हुआ है। और मेरा अपने ही गुरु के प्रति आदर कई गुना बढ़ गया। अब तक मैं नानक को अर्द्ध शिक्षित संत कहता था। लेकिन ओशो की व्याख्या सुनने के बाद मुझे महसूस हुआ कि गुरु नानक तो प्रतिभाशाली कवि थे और उनके शब्दों में गहरे विचार छिपे हुए थे। ओशो ने जो सबसे महत्वपूर्ण काम किया वह था धर्म को दुख और उदासी से मुक्त करना। उन्होंने धर्म को उत्सव और मुक्ति का रूप दिया।
आॅस्कर से बड़ा पुरस्कार तो मुझे ओशो दे चुके थे: गुलजार
एक कसक सी होती है मुझे कि हमारे वक्त में इतनी बड़ी हस्ती गुजर गई और हमने ध्यान नहीं दिया। बाद में जाकर, एक सदी के बाद हम तलाश करेंगे कि वे क्या थे? ओशो प्रेरित करते हैं और यह राह दिखाते हैं कि अपने अंदर ढूंढो। तुम गलत राह पर तलाश कर रहे हो। यह जो रहनुमाई है यह ओशो की देन है। एक और बड़ी बात कि हमने साधु के साथ गरीबी को जोड़ा हुआ है। इसे भी तोड़ दिया ओशो ने।
मेरे लिए यह खुशकिस्मती की बात है कि एक बार मैं उनकी कोई किताब पढ़ रहा था तो हैरान रह गया कि मेरी एक नज्म है जिसे वे एक्सप्लेन कर रहे थे। मैं बहुत हैरान। विनोद (खन्ना) मुझसे मिलने आए तो मैंने उनसे पूछा कि मेरी यह नज्म ओशो के पास कैसे पहुंची? विनोद बोले कि ‘उनके पास सब कुछ पहुंचता है और वे सब कुछ पढ़ते हैं। खैर, कैसे पहुंची की बात को छोड़ दें -पहुंची। और उन्होंने अपने प्रवचन में कही। मुझे आॅस्कर तो बहुत बाद में मिला, लेकिन आॅस्कर से बड़ा पुरस्कार तो मुझे तभी मिल गया जब ओशो ने मेरी नज्म कही।