राजेश मंढोत्रा
देश की ऊर्जा जरूरतें पूरी करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना क्या ऐसे पूरा होगा? यह सवाल भारत सरकार के नवरत्न पीएसयू में शामिल एनएचपीसी से पूछा जाना चाहिए जो हिमाचल के कुल्लू में पार्बती प्रोजेक्ट बना रही है। तेरह साल से प्रोजेक्ट बन रहा है। 2009 में यह बिजली प्रोजेक्ट 4000 करोड़ की लागत से पूरा होना था लेकिन रफ्तार इतनी धीमी है कि 2018 से पहले यह काम शायद ही पूरा हो पाए। लागत भी पहले के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा होने का खतरा है। पहले तकनीकी खामियों, फिर कई तरह के विवादों और खराब प्रबंधन के कारण यह प्रोजेक्ट देरी का नया रिकॉर्ड बनाने जा रहा है। इस देरी के कारण हिमाचल को हर साल करीब 200 करोड़ की चपत लग रही है, जबकि अधिकांश संसाधन राज्य के लग रहे हैं।
पावर हाउस और बैराज पहले बन गए । पानी पहुंचाने वाली टनल कब पूरी होगी, यह अब भी तय नहीं। लागत 8000 करोड़ तक पहुंच जाने का खतरा। हिमाचल को हर साल करीब 200 करोड़ रुपये की चपत
कुल्लू जिले के भुंतर में ब्यास से मिलने वाली पार्बती नदी पर यह प्रोजेक्ट तीन चरणों में बनना था। तीनों चरण बनते तो कुल 2051 मेगावाट का यह प्रोजेक्ट हिमाचल क्या, एशिया में सबसे बड़ा होता। लेकिन 731 मेगावाट के पहले चरण को पर्यावरण क्लीयरेंस नहीं मिली क्योंकि ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कुल्लू के ऊपरी क्षेत्रों में नए प्रोजेक्ट मंजूर नहीं किए। 800 मेगावाट का दूसरा चरण अधर में है जबकि 520 मेगावाट का तीसरा चरण इसी कारण अंडरयूटिलाइज्ड है। यानी स्टेज2 की देरी सब पर भारी पड़ रही है। स्टेज 2 का काम वर्ष 2002 में शुरू हुआ। तब काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था वर्ष 2009, लेकिन अब इस समयसीमा को बढ़ाकर दिसंबर 2018 किया गया। यानी 9 साल की देरी। प्रोजेक्ट की संशोधित लागत पहले करीब 3900करोड़ रुपये थी, लेकिन अब यह काम 8000 करोड़ तक में पूरा होने की आशंका है। यह भी अपने आप में नया रिकार्ड होगा।
अच्छी खबर है कि शिलागढ़ में ठप हुई टीबीएम दोबारा चल पड़ी। रेस टनल का काम भी 4 कि.मी. बचा है। लेकिन स्थानीय दिक्कतों के कारण देरी हो रही है। हमने दिसंबर 2018 तक प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
-एके सिंह, जीएम, पार्बती प्रोजेक्ट-2 एनएचपीसी
प्रोजेक्ट में देरी पर राज्य सरकार कंपनी से रिपोर्ट लेगी। लेकिन बिजली परियोजना पर काम कर रही एजेंसी केंद्र की है, इसलिए केन्द्र को एनएचपीसी के कान खींचने चाहिए। राज्य के पूरे सहयोग के बावजूद इतनी देरी हैरानी भरी है।
-वीरभद्र सिंह, मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश
एनएचपीसी के इस प्रोजेक्ट के एग्रीमेंट के मुताबिक राज्य को 12 फीसदी मुफ्त बिजली, एक फीसदी बिजली अलग से और लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड में अंशदान अलग से मिलना है। सालाना लाभांश ही करीब 150 करोड़ का होगा लेकिन प्रोजेक्ट में देरी ने बंटाधार कर दिया। पार्बती प्रोजेक्ट स्टेज-2 हिमाचल के इतिहास में संभवतया ऐसा पहला प्रोजेक्ट होगा जिसमें पावर हाउस और बैराज पहले बन गए जबकि दोनों के बीच पानी पहुंचाने वाली टनल कब पूरी होगी, यह अब भी तय नहीं है। इस प्रोजेक्ट में बनने वाली 31 किलोमीटर हेड रेस टनल में टनल बोरिंग मशीन के फंसने के कारण कई साल काम ठप रहा। प्रोजेक्ट के लिए सैंज के सिऊंड में पावर हाउस गैमन इंडिया ने बना दिया है। बीएचईएल ने इलेक्टिकल वर्क भी शुरू कर दिया है।
दूसरी ओर मणिकर्ण के पास बरशैणी के पुलगा में बैराज भी बनकर तैयार है। यह काम पटेल कंस्ट्रक्शन ने किया है। यहीं पार्बती नदी को बांधकर पानी 31 किलोमीटर टनल के जरिए सैंज के सिऊंड स्थित पावरहाउस में लाया जाएगा। सैंज नाले से पानी लारजी के पास वापस ब्यास नदी में मिल जाएगा।
प्रोजेक्ट के तीन चरणों में सबसे लंबी 31 किलोमीटर टनल स्टेज 2 प्रोजेक्ट में ही है। पहले हिमाचल जेवी को टनल का काम दिया गया था। लेकिन बाद में तकनीकी पहलुओं और देरी के कारण इसे रद्द कर काम दूसरी कंपनी को दिया गया। अब यह काम गैमन और इटली की कंपनी सीएमसी कर रही हैं। लेकिन एक का अवार्ड टेंडर रद्द करने और दूसरी को काम देने में ही पांच साल लग गए।
बिना काम वेतन देने पर रजामंदी
तेरह वर्षों में पार्बती परियोजना से प्रभावितों के मसले हल नहीं हुए हैं। कुल्लू के डीसी राकेश कंवर ने एक अनोखा पुनर्वास प्लान बनवाया था। प्लान था असल परियोजना प्रभावितों की पहचान कर इन्हें प्रोजेक्ट में नौकरी दिलाना। चूंकि एनएचपीसी ने कर्मचारियों के सरप्लस होंने के बहाने नौकरी देने से तो इनकार का दिया था लेकिन इस पर राजी हो गई थी कि चिन्हित लोगों को हम बिना नौकरी सैलरी देंगें। यानी जो प्रभावित चुना जायेगा, उसे उसकी उम्र के आधार पर रिटायरमेंट उम्र सीमा तक हर महीने बिना काम लिए वेतन दिया जाएगा। यह वेतन फिक्स्ड होगा यानी बिना इन्क्रीमेंट के, लेकिन यह प्लान लागू नहीं हो पाया।
मौके पर इक्के-दुक्के, जमावड़ा दिल्ली में
पार्बती बिजली प्रोजेक्ट स्टेज टू 4000 हजार से 8000 की लागत तक यूं ही नहीं पहुंची। प्रोजेक्ट में तैनात कई अधीनस्थ अधिकारी बताते हैं कि जिन अफसरों पर इस प्रोजेक्ट को सिरे चढ़ाने का जिम्मा है, वे कुल्लू में कम और दिल्ली में ज्यादा रहते हैं। कभी टूअर के नाम पर तो कभी फैमिली विजिट के कारण। भुंतर से चूंकि दिल्ली के लिए दिन में दो उड़ानें उपलब्ध हैं, इसलिए भी आना-जाना आसान रहता है।