23 मई की सुबह जब उत्सुकता भरे वातावरण में मतगणना शुरू हुई, तो भाजपा समर्थकों समेत कई लोग यह मानकर चल रहे थे कि शेष भारत की तरह यहां भी मोदी सुनामी का असर दिखेगा. लेकिन, वोटों की गिनती खत्म होते-होते मुख्यमंत्री नवीन पटनायक एक बार फिर ‘अपराजेय योद्धा’ के रूप में सामने आए.
ओडिशा ने नवीन पटनायक को लगातार पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने के लिए जनादेश दे दिया. नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह की पटनायक को विदाई देने, उखाड़ फेंकने और विकास का डबल इंजन लगाने की सारी भविष्यवाणियों को मतदाताओं ने पूरी तरह नकार दिया. अधिकांश विरोधियों को धूल चटाने वाली मोदी-शाह की जोड़ी नवीन पटनायक का दुर्ग जीतने में विफल रही. विधानसभा चुनाव में पटनायक ने लगातार तीसरी बार शतक जमाते हुए 147 में से 112 सीटों पर कब्जा जमाया. पिछली बार बीजद को 117 सीटें मिली थीं. ‘मिशन 120’ का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करके मैदान में उतरी भाजपा मात्र 23 सीटें जीत सकी. पिछली विधानसभा में उसके 10 विधायक थे. भाजपा को एक लाभ जरूर हुआ कि उसने मुख्य विपक्षी का तमगा कांग्रेस से हथिया लिया. कांग्रेस को इस बार नौ सीटें मिलीं.
लोकसभा चुनाव में भाजपा की ताकत में वृद्धि हुई. उसने कुल 21 में से आठ सीटों पर अपना परचम लहराया. पिछली बार उसे एक सीट मिली थी. बीजू जनता दल के सांसदों की संख्या २० से घटकर १२ हो गई. कांग्रेस को भी एक सीट पर विजय मिली है. नवीन पटनायक देश में सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने वालों की सूची में शामिल हो गए हैं. उनकी जन कल्याणकारी योजनाओं और महिला सशक्तिकरण की दिशा में किए गए प्रयासों का जनता ने खुले दिल से समर्थन किया. बीजद ने इस बार सात महिलाओं को लोकसभा का टिकट दिया था, जिनमें से पांच सांसद चुनी गई हैं. इस चुनाव में बीजद को 44.71 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला, वहीं भाजपा के पक्ष में 32.50 प्रतिशत मतदान हुआ. कांग्रेस को सिर्फ 16.12 प्रतिशत वोट मिले.
बीजद तटीय इलाकों में अपना वर्चस्व कायम रखने में सफल रहा. उसके कई बड़े नेताओं द्वारा भाजपा का दामन थामने के बावजूद ‘विजयश्री’ ने भाजपा को आशीर्वाद नहीं दिया. बैजयंत पंडा, डॉ. दामोदर राउत्त एवं संबित पात्रा जैसे नामी चेहरे विजय का स्वाद नहीं चख सके. नवीन पटनायक के प्रभामंडल के आगे भाजपा के सभी बड़े नाम निस्तेज हो गए. भाजपा के लिए संतोषजनक बात यह रही कि राज्य के सभी अंचलों में उसका जनाधार बढ़ा. अधिकतर जगह भाजपा ही बीजद की मुख्य प्रतिद्वंद्वी रही. बहरहाल, नवीन पटनायक की साफ-सुथरी छवि एक बार फिर बीजद के लिए वरदान बनी. भाजपा ने पश्चिमी ओडिशा में पुन: दबदबा स्थापित किया और क्षेत्र की सभी लोकसभा सीटें जीत लीं, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तटीय इलाकों में बीजद का वर्चस्व कायम रहा. राजधानी भुवनेश्वर की लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी अपराजिता षाड़ंगी की जीत ने नवीन पटनायक को झटका दिया.
भाजपा में मुख्यमंत्री का चेहरा माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान अपने गृह जिले अनुगुल में पिछले दो चुनावों की तरह इस बार भी कोई असर नहीं छोड़ सके. अनुगुल की सभी पांच विधानसभा सीटें बीजद की झोली में चली गईं. दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम का प्रदर्शन अपने गृह जिले सुंदरगढ़ में बेहतरीन रहा. वह स्वयं दो लाख से अधिक वोटों से सुंदरगढ़ संसदीय सीट से विजयी हुए. साथ ही उन्होंने जिले की सात विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा उम्मीदवारों को भी जीत दिलाई. एक ओडिय़ा दैनिक के संपादक एवं पूर्व बीजद नेता तथागत सत्पथी कहते हैं कि ओडिशा वासी अभी भी भाजपा को हिंदी वालों का दल मानते हैं, यही धारणा भाजपा के विस्तार में बाधक है. इस चुनाव में कांग्रेस की स्थिति और भी दयनीय हो गई. उसके अधिकांश उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे. उसे विधानसभा की नौ सीटें मिलीं, जबकि लोकसभा की सिर्फ एक. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निरंजन पटनायक दो विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़े थे और दोनों जगह उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. उनके पुत्र बालेश्वर ने लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. पार्टी की जबरदस्त हार के बाद उसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए निरंजन पटनायक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस के भक्त चरण दास एवं प्रदीप मांझी जैसे नेता भी चुनाव मैदान में धराशायी हो गए. चुनाव परिणामों से एक बात साफ हो गई कि राज्य की राजनीति में भविष्य के मुकाबले बीजद और भाजपा के बीच होंगे.