संध्या द्विवेदी
कश्मीर की असेंबली में जायरा वसीम की ट्रॉलिंग का मुद्दा उठा। जायरा दंगल फिल्म की जूनियर धाकड़ गर्ल हैं। गीता फोगट का रोल कर उन्होंने सुर्खियां बटोरीं। लेकिन दसवीं में अव्वल दर्जे के नतीजा लाने के बाद महबूबा मुफ्ती से उनकी मुलाकात अलगाववादियों को रास नहीं आई। इस मुलाकात और फिल्म में काम करने को लेकर उनकी ऑनलाइन आलोचना हुई। उनके पक्ष में भी कुछ कश्मीरी युवा हैं। जिन्हें मीडिया ने नहीं दिखाया।
कश्मीर के भाजपा नेता रविंदर रैना ने यहां तक कहा कि जायरा को जान से मारने की धमकी मिली है। लिहाजा उन्हें सुरक्षा दी जाए। लेकिन इस बयान को डाउन टाउन के ही तनवीर आलम सियासी मानते हैं, उन्होंने कहा ‘जायरा वसीम कश्मीर के सबसे विवादित इलाके डाउन टाउन में रहती हैं। इस विवाद के शुरू होने के बाद से उनके घर के बाहर न तो कोई नारेबाजी हुई और न हीं पत्थरबाजी। पत्थरबाजी इसलिए क्योंकि कश्मीर में अपनी नाराजगी व्यक्त करने का यह एक बड़ा जरिया है। इसलिए इस मुद्दे को इतना खतरनाक बनाने से पहले कश्मीर के जमीनी हालात जरूर देखने चाहिए। कहीं यह राजनीतिक बयान सचमुच जायरा को जिन्हें आप लोग अलगाववादी कहते हैं उनके निशाने पर न ला दे। क्योंकि अभी उनके निशाने पर महबूबा मुफ्ती हैं जायरा जरिया भर हैं।’ तनवीर की बाद से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है लेकिन एक बात तो सच है जब कश्मीर जैसे सुलगते राज्य के बारे में हम रिपोर्टिंग करते हैं, या वहां पर राजनीति करते हैं तो संजीदगी की ज्यादा जरूरत होती है।
#ZairaWasim you don’t owe it to anyone. You have made all of us proud by your sheer talent & hard work. You need not to be apologetic. Bravo pic.twitter.com/QiMgTblFkq
— Mubassir Latifi مبصر (@Mubassir_Latifi) January 16, 2017
तनवीर की ही बात को आगे बढ़ाते हुए यूनिस कहते हैं, ‘जरा भाजपा नेता से यह पूछना चाहिए कि क्या उन्होंने राज्य असेंबली में वहां बंद पड़े सारे सिनेमा हॉल को दोबारा खोलने की बात की?’ यह जानकर हैरानी होगी कि वहां सारे सिनेमा हॉल बंद पड़ें हैं। यह सारे सिनेमा हॉल 1990 के आतंकवाद का शिकार हो गए थे। यूनिस अलगावादियों के खिलाफ हैं। वह झेलम नदी में अपना शिकारा चलाते हैं। युवा हैं। मगर यह जरूर मानते हैं कि अलगाववादियों के हौंसले बढ़ाने के पीछे सरकार का सुस्त रवैया है। अलगावावादी तो अलगाववादी ही हैं, उन्हें यहां के युवाओं का पत्थर छोड़ सकारात्मक दिशा में बढ़ना रास नहीं आएगा। उनसे इसी बयान की उम्मीद भी थी। मगर ऐसे बयानों को तूल देकर आप उन्हें जिंदा रखे हुए हुए हैं। जायरा की फिल्म तो नहीं देखी मगर ट्रेलर अपने मोबाइल पर देखा उनका रोल बेहतरीन है। मैं उनकी फिल्म देखने घाटी से बाहर जाऊंगा। कई दोस्तों ने प्लान बनाया है, मौका मिलते ही हम जाएंगे। पर ऐसे युवाओं से मीडिया भी नहीं मिलता,वजह साफ है कि क्योंकि नकारात्मक और भड़काऊ बातें टीआरपी दिलाती हैं।
Trolls have no religion. They just have a wing: Right-wing. #ZairaWasim — Shirish Kunder (@ShirishKunder) January 17, 2017
यह सवाल जायज है, क्योंकि थिएटर मनोरंजन का साधन होते हैं। पर यहां का युवा इनसे दूर है। पी.डी.पी.के स्पोर्ट सेक्रटरी और युथ विंग के प्रेजीडेंट वाहिदुर्रहमान ने कहा ‘ अलगाववादी नहीं चाहते कि यहां का युवाओं को कुछ नए रोल मॉडल मिलें, जिनके रास्ते में वह चल सके। लेकिन मीडिया यह भी दिखाए कि उसके समर्थन में भी कई लोग हैं। हम उनके समर्थन में हैं। युवा उनके समर्थन में हैं। मीडिया को यहां के युवाओं से भी बात करनी चाहिए। वह युवा जो स्कूलों में पढ़ता है। वह युवा जो जायरा के ही स्कूल में पढ़ता है।’ वाहिदुर्रहमान ने यह भी कहा ‘ हमें अलगाववादियों के बयानों को दरकिनार कर युवा आबादी की ऊर्जा को सकारात्मक मोड़ देने के बारे में सोचना चाहिए। यहां का स्पोर्ट देखिए क्या हालत है? हालांकि अब सरकार ने यहां के स्पोर्ट की तरफ कुछ ध्यान देना शुरू किया है। जहां युवा हो वहां खेल न हों, मनोरंजन न हों। ऐसे राज्य में युवाओं को अलगाववादियों द्वारा भटकाना मुझे नहीं लगता कि कोई कठिन काम नहीं है! एक बात तय है।