प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों संयुक्त अरब अमीरात और फिलिस्तीन के दौरे पर गए। उनकी यात्रा से पहले फिलिस्तीन का यह बयान पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया कि प्रधानमंत्री मोदी की मध्यस्थता से वर्षों पुराना इजरायल-फिलिस्तीन विवाद सुलझ सकता है। अरब देशों की उनकी यात्रा के क्या कूटनीतिक महत्व हैं, इन्हीं तमाम मुद्दों पर मणिपुर की राज्यपाल डॉ. नजमा हेपतुल्ला से अभिषेक रंजन सिंह की खास बातचीत।
प्रधानमंत्री मोदी हाल में फिलिस्तीन और सऊदी अरब की यात्रा पर गए। उनकी इस यात्रा का भारत के लिए कितना महत्व है?
अरब दो तरह के हैं एक पश्चिम एशिया है और एक खाड़ी के देश। नरेंद्र मोदी जी सऊदी अरब तो सबसे पहले गए। सऊदी अरब इस्लाम का गढ़ है। वहां उन्हें सर्वोच्च सम्मान मिला। वहां के क्राउन प्रिंस खुद उनकी अगवानी करने पहुंचे। मैं उस वक्त अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री थी। उसके बाद वह कई अन्य देशों में गए। अभी थोड़े दिन पहले इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत आए। उनकी मौजूदगी में नई दिल्ली स्थित तीन मूर्ति चौराहे का नाम हाइफा तीन मूर्ति चौराहा किया गया। प्रथम विश्व युद्ध के समय हाइफा की आजादी में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस दिखाया और कुर्बानी दी। मैं इजरायल और फिलिस्तीन भी गई हूं और वहां भारतीय शहीदों की याद में बने स्मारक पर अपनी श्रद्धांजलि भी दी। इस बार प्रधानमंत्री मोदी फिलिस्तीन गए और इससे पहले वहां के प्रधानमंत्री महमूद अब्बास भारत आए थे। उनका यहां अच्छा स्वागत हुआ। फिर प्रधानमंत्री मोदी जब फिलिस्तीन गए तो वहां उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया। उसके बाद वह ओमान और यूएई गए। दो-तीन चीजें इनमें निकलकर आर्इं। एक प्रधानमंत्री आज की तारीख में एक मजबूत वैश्विक नेता बनकर उभरे हैं। वह हाल के वर्षों में कई बार अमेरिका गए हैं। यह वही अमेरिका है जिसने एक समय उन्हें वीजा देने से मना कर दिया था। आज वहां का प्रेसिडेंट उन्हें गले लगाता है, चाहे ओबामा हों या ट्रंप। नरेंद्र मोदी पर विपक्षी दलों ने इल्जाम लगाया था कि वह लाशों के सौदागर हैं। लाशों के उसी सौदागर को सऊदी अरब जैसे महत्वपूर्ण इस्लामी देश सर्वोच्च नागरिक सम्मान देता है। मैं समझती हूं कि नरेंद्र मोदी अकेले ऐसे अंतरराष्ट्रीय नेता हैं जिन पर इजरायल और फिलिस्तीन दोनों भरोसा करते हैं। फिलिस्तीन की हिमायत करना गांधी जी के जमाने से भारत की परंपरा रही है। गांधी जी ने भी कहा था कि फिलिस्तीन फिलीस्तीनियों का है। उसी परंपरा को नरेंद्र मोदी ने कायम रखा। इजरायल के साथ भी हमारे ताल्लुकात अच्छे हैं। रक्षा सौदों से लेकर अन्य कारोबारी रिश्ते हैं। दुनिया में ऐसा कौन नेता है आज की तारीख में सिवाय नरेंद्र मोदी के।
उनकी यात्रा से पहले फिलिस्तीन ने काफी भरोसे से कहा कि नरेंद्र मोदी इजरायल के साथ उनके वर्षों पुराने विवाद सुलझा सकते हैं। आपकी नजर में क्या यह मुमकिन है?
जब महमूद अब्बास खुद भरोसे से कह रहे हैं कि अगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिलिस्तीन और इजरायल के बीच दशकों से चले आ रहे विवाद की मध्यस्थता करें तो मामला हल हो सकता है। मेरा भी यही ख्याल है कि नरेंद्र मोदी में यह क्षमता है। अमेरिका और रूस जैसे देश भी उनका काफी सम्मान करते हैं। इसमें कोई हर्ज भी नहीं है और यह खुशी की बात है कि खुद फिलिस्तीन की तरफ से ऐसा बयान आया है। उनके इस बयान को पूरी दुनिया ने गंभीरता से लिया। विश्व बिरादरी भी चाहती है कि फिलिस्तीन और इजरायल के बीच शांतिपूर्ण समझौता हो जाए। दुनिया में अमन और तरक्की के लिए यह अच्छी बात है।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अरब देशों से भारत के ताल्लुकात काफी बेहतर हुए हैं। यहां तक कि एक इस्लामी देश होने के बावजूद पाकिस्तान अरब देशों से कमोबेश अलग-थलग पड़ गया है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के मुकाबले मौजूदा सरकार की विदेश नीति ज्यादा बेहतर और प्रभावी है?
हां बिल्कुल पाकिस्तान आज अरब देशों से बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया है। मिसाल के तौर पर यूएई सौ फीसद मुस्लिम राष्ट्र है। उस देश ने नरेंद्र मोदी को देखकर मंदिर के लिए जमीन दी और उनकी मौजूदगी में उसका शिलान्यास हुआ। यह एक बड़ा संदेश है हमारे लोगों के लिए भी कि दिल बड़ा रखना चाहिए। ऐसा कभी कांग्रेस के जमाने में नहीं हुआ। इजरायल के साथ भारत के रिश्ते कभी इतने बेहतर नहीं रहे कांग्रेस के जमाने में। खाड़ी के देशों में बड़ी संख्या में भारत के लोग नौकरी करते हैं। जाहिर है भारत के साथ खाड़ी और अरब रिश्तों के बेहतर होना वहां रहने वाले लाखों भारतीय कामगारों की सुरक्षा और संपन्नता के लिए भी अच्छा है। कुछ समय पहले सऊदी अरब में चालीस भारतीय कामगारों को वहां की एक कंपनी ने निकाल दिया और वे परेशान थे तो सुषमा स्वराज ने इस मामले में पहल की और उन्हें भारत लेकर आए। अभी हाल ही में वहां एक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। उसमें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी गर्इं और मणिपुर की एक टीम ने भी वहां सांस्कृतिक प्रस्तुति दी। इससे यह लगता है कि हमारे और उनके संबंध और मजबूत हुए हैं। मेरा ख्याल है कि पश्चिम एशिया के जो मुल्क हैं उन्हें पूर्व की तरफ देखना चाहिए। अभी हमारा और उनका ज्यादा कारोबार नहीं है। पर्यटन में भी उन्हें भारत के प्रति रुचि बढ़ानी होगी।
उग्रवादी हिंसा की वजह से पूर्वोत्तर हमेशा सुर्खियों में रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वहां हिंसक घटनाओं में काफी कमी आई है। पूर्वोत्तर में कायम इस शांति का श्रेय किसे देना चाहेंगी?
मैं काफी सीनियर लीडर रही हूं। सरकार ने मुझे राज्यपाल बनाया और वह चाहती तो मुझे किसी भी राज्य का गवर्नर बनाया जा सकता था। लेकिन केंद्र सरकार ने मुझे मणिपुर का गवर्नर बनाया। इससे पहले इन राज्यों में ज्यादातर पूर्व नौकरशाहों को राज्यपाल बनाया जाता था। लेकिन सरकार ने मुझ पर भरोसा किया। इसमें कोई शक नहीं कि पिछले चार वर्षों में पूर्वोत्तर के राज्यों में शांति और कानून-व्यवस्था की स्थिति काफी बेहतर हुई है। पिछली सरकार के दौरान वहां आए दिन बम धमाके होते रहते थे। लेकिन इसे केंद्र सरकार की नीतियों का असर कहें कि आज पूर्वोत्तर के हालात काफी बदले हैं। हमेशा किसी न किसी बात को लेकर पूर्वोत्तर में बंद और धरने होते रहते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है और हालात काफी बदल चुके हैं। देर रात तक दुकानें खुली रहती हैं और लोग बेखौफ सड़कों पर घूमते देखे जा सकते हैं। हमारे समय में मणिपुर में चुनाव हुए, कहीं कोई एक भी गोली नहीं चली। हमारे यहां शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न हो गए। पिछले साल 26 जनवरी के परेड में बमुश्किल सौ-डेढ़ सौ लोग परेड देखने आए थे। लेकिन इस बार परेड देखने वालों की काफी भीड़ थी। इतना बड़ा बदलाव वाकई मणिपुर समेत पूर्वोत्तर के लिए एक अच्छा संकेत है। दूसरी बात जो सबसे अहम है कि मौजूदा केंद्र सरकार पूर्वोत्तर के विकास के प्रति ज्यादा गंभीर है। खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वोत्तर की भलाई के लिए प्रत्यत्नशील हैं। उन्हें जब भी मौका मिलता है वह पूर्वोत्तर के राज्यों में आते हैं और लोगों से संवाद करते हैं। पिछली सरकारों में ऐसा नहीं होता था। पिछले चार वर्षों में पूर्वोत्तर के लोगों में एक मजबूत भरोसा कायम हुआ है। इसलिए पूर्वोत्तर में आए इन सकारात्मक बदलावों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की सराहना की जानी चाहिए।
मणिपुर म्यामांर की सीमा से लगा हुआ है। क्या मणिपुर में रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ की कोई समस्या है?
हमारे यहां रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ की समस्या नहीं है। हमारे यहां सबसे बड़ी समस्या ड्रग्स की है। इस बाबत मैंने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर उन्हें इस समस्या से अवगत कराया। मैंने गृह मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से आग्रह किया कि वे म्यामांर से लगी भारतीय सीमा को सील करें। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख से मेरी मुलाकात हुई जो संयुक्त राष्ट्र में ड्रग्स निवारण की नीतियां बनाते हैं। म्यामांर में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है। वहीं से तैयार ड्रग्स भारत में भेजी जाती है। पूर्वोत्तर के विकास में एक बड़ी बाधा बांग्लादेश भी है। बांग्लादेश भौगोलिक रूप से पूर्वोत्तर के राज्यों के बीच में है। इस वजह से पूर्वोत्तर के एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने के लिए हमें काफी समय लगता है। हालांकि नरेंद्र मोदी सरकार में बांग्लादेश और भारत के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। कोलकाता से ढाका और खुलना के बीच नियमित ट्रेन सेवाएं हैं। पहले कोलकाता से अगरतला की दूरी डेढ़ हजार किलोमीटर थी। लेकिन वाया ढाका यह दूरी महज सात सौ किलोमीटर हो गई है। इससे जहां मालवाहक ट्रकों की आवाजाही आसान हुई वहीं ईधन और समय की भी बचत होती है।
राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को अदालत से बाहर हल करने के लिए एक पहल हुई है। शिया संगठन इसके लिए राजी हैं लेकिन सुन्नी तंजीमों को इससे एतराज है। जबकि देश के सुन्नी उलेमाओं पर सऊदी अरब का काफी प्रभाव है। क्या प्रधानमंत्री मोदी इस बाबत अरब देशों से कोई अपील कर सकते हैं?
मैं कह नहीं सकती इस बारे में क्योंकि मैंने कभी इस मसले पर सोचा नहीं है। लेकिन मेरा मानना है कि हमें अपने मसाइल खुद ही हल करने चाहिए। हमें यहां रहना है एक-दूसरे के साथ। सभी अरब देशों से भारत की सभ्यता और इतिहास पुराना है। पांच हजार साल पुराना हमारा इतिहास है। हमें किसी दूसरे देश की मध्यस्थता की कोई जरूरत नहीं है। अयोध्या विवाद को शांतिपूर्वक आपसी बातचीत से सुलझाना चाहिए। इस मुल्क में हिंदू भी रहते हैं और मुसलमान भी रहते हैं। यहां मंदिर भी बनने चाहिए और मस्जिद भी बनना चाहिए। लेकिन किसी का दिल दुखाकर कोई काम नहीं किया जाना चाहिए। मुसलमानों को थोड़ा बड़ा दिल दिखाना चाहिए क्योंकि नमाज तो कहीं भी पढ़ी जा सकती है। इसलिए मैं समझती हूं कि हिंदू और मुसलमानों की तंजीमों को आपस में बैठकर अयोध्या विवाद को हल करना चाहिए।