बताया जा रहा है कि इस ओर हर सैटेलाइट की लागत 150 करोड़ रुपये के करीब है, वहीं पीएसएलवी-एक्सएल प्रक्षेपण यान की लागत 130 करोड़ रुपये के लगभग है ।इस तरह सातों प्रक्षेपण यानों की कुल लागत करीब 910 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
US ने नहीं दी थी जानकारी
साल 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भारत ने पाकिस्तानी सेना की लोकेशन जानने के लिए अमेरिका से GPS सेवा की मांग की थी, लेकिन अमेरिका ने तब भारत को आंकड़े देने से मना कर दिया था। उसी समय से भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्वदेशी जीपीएस बनाने की कोशिश करने लगे थे ।GPS प्रणाली को पूरी तरह से भारतीय तकनीक से विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों ने सात सैटेलाइट को एक नक्षत्र की तरह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का फैसला किया।
भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी GPS सिस्टम के लिए पहला सैटेलाइट जुलाई 2013 में छोड़ा था और गुरुवार को सातवां और आखिरी उपग्रह छोडा गया है।
1,500 किलोमीटर तक की सटीक जानकारी मिलेगी
आईआरएनएसएस-1जी सैटेलाइट उपयोगकर्ताओं के लिए 1,500 किलोमीटर तक के विस्तार में देश और इस क्षेत्र की स्थिति की सटीक जानकारी देगा। अब तक भारत के द्वारा छह क्षेत्रीय नौवहन उपग्रहों (आईआरएनएसएस -1 ए, 1बी, 1सी, आईडी, 1ए और 1जी) का प्रक्षेपण किया जा चुका है।
करीब 20 मिनट की उड़ान में पीएसएलवी- सी33 ने 1,425 किलोग्राम वजनी आईआरएनएसएस-1जी उपग्रह 497.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर कक्षा में स्थापित किया। पीएसएलवी ठोस और तरल ईंधन द्वारा संचालित चार चरणों/इंजन वाला प्रक्षेपण यान है.।यह सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1जी (भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली-1जी) के सात उपग्रहों के समूह का हिस्सा है।