सुनील वर्मा
नई दिल्ली । सात चरणों में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में प्रचार का दौर गुरुवार को ही थम गया था। आज अतिरिक्त सुरक्षा बलों के साथ पोलिंग पार्टियां भी मतदान केंद्रों पर पहुँच जाएंगी और शनिवार 11 फरवरी को पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। इस दौर में 15 जिलों की 73 सीटों पर मतदान होगा जिसमें कुल 2.57 करोड़ मतदाता उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे।इस चरण में कुल 836 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। जिन जिलों में मतदान होना है इनमें शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबाद, एटा और कासगंज शामिल हैं।
वर्ष 2012 विधानसभा के चुनाव में पहले चरण की 73 सीटों में से 24 पर सपा, 23 पर बसपा, 12 पर भाजपा, नौ पर रालोद और पांच पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी।
बसपा की प्रतिष्ठा दांव पर
पश्चिमी उत्तरप्रदेश का यह इलाका बसपा का गढ़ माना जाता है। पिछले चुनावों में इन इलाकों में बसपा को भारी सफलता मिली थी । यहां बसपा की पकड़ इतनी मजबूत है कि जब 2012 के विधानसभा चुनाव में राज्य में परिवर्तन की लहर थी और सपा के पक्ष में हवा बह रही थी, तब भी इस क्षेत्र में बसपा का झंडा बुलंद रहा था, लेकिन इस बार समीकरण बदला हुअा है। वैसे कैराना, थानाभवन, बुढाना, मुजफ्फरनगर, किठौर और गढमुक्तेश्वर ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां बसपा का अब तक खाता नहीं खुला है। इस बार बसपा यहां कोई करामात कर पाती है या नहीं, यह देखना भी दिलचस्प होगा। आगरा बसपा का गढ़ माना जाता है, जहां विधानसभा की नौ सीटे हैं। 2007 के चुनाव में बसपा को इनमें से सात विधानसभा सीटें मिली थीं, लेकिन 2012 के चुनाव में इनमें से छह सीटों पर ही वह वापसी कर पायी थी। बाकी तीन में से दो सीटें भाजपा और एक सरट सपा ले गयी थी।
मुस्लिम-जाट बहुल क्षेत्र
पहले चरण के वोट वाले अलाके मुस्लिम और जाट बहुत हैं। इन इलाकाें में करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। मुजफ्फरनगर दंगे का असर इन वोटरों पर साफ दिख रहा है। बसपा काे पिछले चुनाव में मुसलमनों को भारी समर्थन मिला था। हालांकि इस बार कांग्रेस-सपा गंठबंधन वोट समीकरण में बड़ा बदलाव ला सकता है। वहीं भाजपा को इसी मुद्दे पर अपने वोटरों की गोलबंद का बड़ा भरोसा है। इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि सपा अपने इस गढ़ को कितना सुरक्षित रख पाती है। खास कर मुजफ्फरनगर जिले की सीटों पर।
सपा-कांग्रेस गंठबंधन कितना प्रभावी
राज्य में सपा-कांग्रेस गंठबंधन कितना प्रभावी है, इसका मोटा-मोटी संकेत पहले चरण के चुनाव में ही मिल जाने की उम्मीद है। इस चरण में चुनाव वाली कई ऐसी सीटें हैं, जहां सपा का प्रदर्शन पिछले चुनाव में निराशाजनक रहा था, लेकिन कांग्रेस ने अच्छी कामयाबी पायी थी। इनमें दादरी विधानसभा सीट भी है, जहां समाजवादी पार्टी को कभी जीत नहीं मिली, जबकि कांग्रेस ने चार बार तथा भाजपा और बसपा ने दो-दो बार जीत दर्ज की। इसी तरह हापुड़ विधानसभा सीट पर 2012 सहित आठ बार कांग्रेस के उम्मीदवार जीते। जेवर विधानसभा सीट पर भी सपा का कभी खाता नहीं खुला। कांग्रेस यहां से तीन बार चुनाव जीती है। भाजपा ने भी यहां 1991, 1993 और 1996 में यहां जीत दर्ज की थी। वैसे यह बसपा की मजबूत सीट मानी जाती है। पिछले तीन चुनाव में इस सीट पर बसपा लगातार तीन बार जीती और हर बार कांग्रेस ने उसे कड़ी टक्कर दी। इस बार सपा का साथ मिलने से उसकी स्थिति मजूबत होती दिख रही है।
भाजपा को बड़ी उम्मीद
भाजपा को मुस्लिम विरोधी मतों के ध्रवीकरण और उससे चुनावी लाभ की उम्मीद है। हालांकि इस फेज में जिन सीटों पर चुनाव हो रहा है, उनमें से कई सीटों पर उसकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। कुछ सीटों पर उसने तीन से भी ज्यादा बार चुनाव जीतती रही है। इनमें जेवर सीट भी शामिल है। भाजपा को नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक तथा नरेंद्र मोदी के आर्थिक सुधार जैसे कार्यक्रमों का भी लाभ मिलने की उम्मीद है।
इन बड़े नेताओ की साख दांव पर
पंकज सिंह
इस चरण में गौतमबुद्ध नगर की नोएडा सीट पर भी मतदान होगा। इस सीट से केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे मैदान में हैं। इस लिहाज से नोएडा की सीट गृह मंत्री के लिए भी साख का सवाल है। भाजपा के पंकज सिंह का मुकाबला सपा के सुनील चौधरी और बसपा के रविकांत मिश्रा के साथ है।
लक्ष्मीकांत बाजपेयी
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी पश्चिमी यूपी की महत्वपूर्ण सीटों में से एक मेरठ शहर से चुनाव मैदान में है। मुस्लिम बहुल्य वाली शहर सीट का चुनाव बेहद चुनोती पूर्ण है ।
संगीत सोम-सुरेश राणा
मेरठ की सरधना सीट के लिए भाजपा की तरफ से मैदान में उतरे संगीत सोम चर्चित चेहरे हैं। संगीत सोम पर मुजफ्फरनगर दंगे भड़काने के आरोप भी लग चुके हैं। संगीत सोम को टक्कर देने के लिए सपा ने अतुल प्रधान और बसपा ने मोहम्मद इमरान को मैदान में उतारा है।शामली की थानाभवन सीट पर भी लोगों की नजरें हैं, क्योंकि इस पर मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी एक अन्य आरोपी सुरेश राणा भाजपा उम्मीदवार हैं। यह दोनो विधायक भी हैं।
हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह
पलायन का मुद्दा उठाने वाले और कैराना से भाजपा सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को कैराना से टिकट मिला है। लेकिन इसके विरोध में हुकुम सिंह के भतीजे को राष्ट्रीय लोकदल से टिकट मिला है। बेटी की सीट हुकुम सिंह के राजनीतिक भविष्य का भी फैसला करेगी।
अबदुल्ला आजम
समाजवादी पार्टी के दिग्गज मंत्री आजम खां के सामने इस बार अपनी जीत के साथ ही बेटे अब्दुल्ला आजम को भी जिताने का दबाव होगा। आजम को सूबे में मुस्लिम चेहरा माना जाता है। उनके बेटे को स्वार विधानसभा सीट का टिकट मिला है। दूसरी ओर राज्य के कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर के सामने अपनी किठौर सीट बचाने की चुनौती है। अमरोहा से मंत्री महबूब अली पर भी जीतने का दबाव है।
इनके अलावा अलीगढ़ की अतरौली सीट भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि वहां से राजस्थान के राज्यपाल और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। संदीप सिंह के पिता राजवीर सिंह सांसद हैं। मथुरा सीट से चौथी बार विधानसभा में प्रवेश की कोशिश में लगे कांग्रेस विधानमण्डल दल के नेता प्रदीप माथुर को भाजपा प्रवक्ता श्रीकान्त शर्मा से कड़ी चुनौती मिल रही है।