राजीव थपलियाल ।
उत्तराखंड कांग्रेस में चाहे जितने भी विरोधाभास हों, मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में ही पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव मैदान में उतरेगी, यह साफ है। रावत ने विपरीत परिस्थितियों में जिस तरह एक के बाद एक भाजपा को राजनीतिक मोर्चों पर मात दी है, उसकी खुमारी अभी तक राजनीतिक गलियारों में है। आने वाले चुनाव तक यह बनी रहेगी जिसका लाभ निश्चित रूप से कांग्रेस हो सकता है।
हरीश रावत को चुनौती देने के लिए भाजपा को एक अदद नेता की जरूरत है। भाजपा में नेताओं की कमी नहीं है लेकिन पार्टी किसे नेतृत्व सौंपती है, सवाल यही है। इस वर्ष 18 मार्च को विधानसभा में जो कुछ भी हुआ उसमें भाजपा के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की सहमति तक नहीं थी। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर उत्तराखंड में चल रहे पार्टी के अभियान के पक्ष में भगत सिंह कोश्यारी के बयान जरूर आए लेकिन वहां क्या हो रहा है, कोश्यारी को इसकी जानकारी तक नहीं थी। इस प्रकरण में जब पार्टी को मुंह की खानी पड़ी तब पता चला कि पार्टी ने कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में जो अभियान चलाया उसके साथ राज्य के किस स्तर के नेता जुड़े हुए थे। राज्य में चुनाव की घोषणा होने में अब ज्यादा वक्त नहीं है। इसके बावजूद भाजपा संजीदा होने की बजाय खुद में उलझ कर पस्त हो रही है। जबकि हरीश रावत और उनकी टीम गंभीरता से चुनावी तैयारी में पूरी तरह जुट चुकी है।
भाजपा का पंडितों से बैर
हरीश के हाथों लगातार मात खा रही भाजपा को सत्ता में आने की छटपटाहट ने बेचैन कर रखा है। इस बेचैनी में भाजपा नेता न जाने किस एजेंडे पर काम करने लगे हैं जो पंडित बहुल उत्तराखंड में पंडितों पर ही तंज कस रहे हैं। हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने एक कार्यक्रम में पंडितों पर भद्दी टिप्पणी कर पूरे समाज की भारी नाराजगी मोल ले ली। भट्ट ने कह दिया कि पहाड़ में बिना पिए तो पंडितों के मंत्र भी नहीं निकलते। चुनावी सीजन में इस बयान पर मिली तीखी प्रतिक्रिया और हाईकमान की डांट के बाद प्रदेश अध्यक्ष ने माफी मांगते हुए स्पष्टीकरण दिया। इससे कुछ समय पहले हरिद्वार में पंडा समुदाय के समक्ष भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य तरुण विजय ने भी गलतबयानी कर पंडितों को नाराज कर दिया था। भाजपा नेताओं की जुबान पर यदि लगाम नहीं लगी तो इसका सीधा फायदा हरीश रावत को मिलना तय है। भाजपा के ही एक नेता की मानें तो बाहरी तौर पर पंडित भले ही शांत दिख रहे हों लेकिन यह नाराजगी आसानी से दूर होने वाली नहीं।
यह कैसा पर्दाफाश?
भाजपा ने कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार का खुलासा करने के लिए विधानसभावार पर्दाफाश रैली का आयोजन किया है। ऐसे में भाजपा के सामने सवाल उठ खड़ा हुआ है कि वह किसका फर्दाफाश करने जा रही है? पर्दाफाश रैलियों में भाजपा ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर खूब प्रहार किया है। लेकिन पांच साल के अपने राज में कांग्रेस के 56 घोटालों की बात करने वाली भाजपा ने एक भी घोटाला उजागर क्यों नहीं किया? भाजपा का यह अतीत उसकी विश्वसनीयता पर चोट कर रहा है। भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार ने कांग्रेस पर 56 घोटालों के आरोप लगाए और जांच के लिए आयोग भी गठित किया लेकिन एक भी मामला खोल नहीं पाई। विश्वसनीयता का यह सवाल पार्टी की कोर गु्रप की बैठक में कई नेताओं ने उठाया भी था। इसके अलावा कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पर केदारनाथ आपदा राहत में घपले के आरोप भाजपा ने लगाए थे। अब बहुगुणा कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ चुके हैं। इसके अलावा हरीश कैबिनेट का हिस्सा रहे हरक सिंह रावत का दामन भी पाक-साफ नहीं रहा था। हरक भी भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं। इसलिए जनता के बीच भाजपा की पर्दाफाश रैलियों का मजाक बन रहा है।
भाजपा का शेर, हो रहा ढेर
भाजपा के पास हरीश रावत से मुकाबले के लिए कोई नेता है तो वो पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी हैं। लेकिन भाजपा का यह शेर अब ढेर होता प्रतीत हो रहा है। एक तो बढ़ती उम्र की दुश्वारियों ने खंडूड़ी को बेहद कमजोर कर दिया है। साथ ही उनकी पत्नी का स्वास्थ्य भी शायद ही उन्हें पूरी फील्डिंग करने दे। इसके अलावा खंडूड़ी के मन में मुख्यमंत्री बनने की हिलोरें जोर मार रही हैं लेकिन उनका रूखा स्वभाव जब मीडिया तक से दूरी बना रहा हो तो आम जन की बिसात ही कहां? मीडिया के लोग जब खंडूड़ी से बात करने की कोशिश करते हैं तो उनका स्टाफ एक ही बात कहता है कि जनरल साहब की तबीयत ठीक नहीं है। फिर कभी मिल लेंगे।
दशानन से हारते राम
भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सहित 10 विधायक कांग्रेस से बगावत कर शामिल हुए हैं। लेकिन इन पूर्व कांग्रेसियों का पार्टी में एडजस्ट होना तक मुश्किल हो रहा है। उनके खिलाफ पहले से भाजपा नेताओं का एक वर्ग कमर कस रहा है। उनका असली विरोध टिकट वितरण के दौर में सामने आएगा। हरक सिंह रावत जैसे नेता जिस तरह खुले तौर पर अपनी इच्छा जताकर हर बार नई विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा कर रहे हैं, उससे पार्टी के अंदर माहौल और विषैला होता जा रहा है। उनके भाजपा में शामिल होते ही सबसे पहले टिकट को लेकर ही सवाल उठा था। तब अपने कार्यकर्ताओं के डर को थामने के लिए भाजपा संगठन ने यह कहकर मामले को शांत करने की कोशिश की थी कि किसी को भी टिकट का भरोसा नहीं दिया गया है। हालांकि ये लोग अपने क्षेत्र में चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। साथ ही उनकी ओर से यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि यह पहले तय हो गया है कि टिकट उन्हीं को मिलेगा। पहले से टिकट के दावेदारों के लिए यह स्थिति अब बर्दाश्त से बाहर होने लगी है। इसलिए छिटपुट बैठकों का जो दौर पहले से चल रहा था, अब एकजुट बैठक का दौर शुरू हो गया है। इन नौ सीटों के अलावा अपनी ताकत बढ़ाने के लिए दूसरी सीटों से टिकट के दावेदार भी उनके साथ मिल गए हैं। अब यह मामला भाजपा के लिए न निगलते बन रहा और न उगलते।
हाईकमान का असमंजस पड़ रहा भारी
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों भगत सिंह कोश्यारी, बीसी खंडूड़ी और डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक पर दांव खेलने को तैयार नहीं दिखाई देता है। इनमें खंडूड़ी की सबसे अधिक स्वीकार्यता है लेकिन उनकी 75 साल से ज्यादा की उम्र उन्हें पहली ही स्क्रीनिंग में नेतृत्व से बाहर कर देती है। उत्तराखंड के इन तीन नेताओं की लड़ाई को केंद्रीय नेतृत्व बहुत देख चुका है। इसलिए इनमें से किसी एक पर दांव लगाने से आलाकमान डर रहा है। तो क्या कांग्रेस से भाजपा में आए किसी नेता पर पार्टी दांव खेलेगी? इसकी संभावनाएं भी कम ही दिखाई देती हैं। ऐसी हालत में पार्टी दूसरी पांत के नेताओं पर दांव खेलने के संकेत दे रही है।
दूसरी ओर, पहली पांत के नेताओं की कड़ी बनाने वालों में प्रकाश पंत, त्रिवेंद्र सिंह रावत, अजय भट्ट जैसे नेताओं के नाम लिए जाते हैं लेकिन प्रकाश पंत का अपनी सीट से चुनाव हारना और त्रिवेंद्र सिंह रावत का दो-दो चुनाव हारना उन्हें बैकफुट पर लाकर खड़ा कर देता है। अजय भट्ट का नेतृत्व भी पार्टी को बहुत आश्वस्त नहीं करता। ऐसे में भाजपा हाईकमान क्या करेगा? तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों में से किसी एक को आगे करेगा? कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेता को नेतृत्व सौंपेगा? दूसरी पांत के नेताओं को आगे करेगा? या फिर बिना नेतृत्व तय किए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेगा?
सूत न कपास……
भाजपा न तो सत्ता में है और न ही पार्टी के मौजूदा हालात उसे सत्ता में आने लायक बना रहे हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री बनने की होड़ में लगभग सभी नेता एक-दूसरे को पछाड़ने की कवायद करते दिखते हैं। भाजपा में विरोधियों की बजाय अपनों से ही ज्यादा हमले हो रहे हैं। अभी अजय भट्ट को लेकर एक व्यक्ति एक पद की आवाज भाजपा से ही उठ खड़ी हुई है। नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे अजय भट्ट को लेकर हाईकमान तक को संदेश पहुंचाया जा चुका है। यही नहीं उत्तराखंड में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) संघ के बड़े नेता राम लाल और उनके सहायक शिव प्रकाश की जोड़ी पार्टी को एकजुट करने की बजाय नए एजेंडे पर काम कर रही है। वह पार्टी को पटरी पर लाने की बजाय पहाड़ व मैदान के नेताओं की लड़ाई में मैदान का पक्ष वजनी बनाने में जुटे हैं। ऐसा कर वे पहले से बिखरी पार्टी में एक नया फ्रंट खोले हुए हैं। इन हालात में चुनाव आने तक क्या भाजपा एकजुट होकर एक नेता के नेतृत्व में खड़ी हो पाएगी? यह सवाल भाजपा के वजूद से जुड़ा सवाल है।