मनोहर नायक।
अपनी किशोरवय की बात करें तो उस टीवी-विहीन ही नहीं, रेडियो की भी बहुत कमतर दुनिया में, जब स्थानीय अखबारों में खेल का पन्ना जैसी कोई चीज नहीं हुआ करती थी, तब खेल-संसार के तीन नाम अक्सर सुनाई देते थे। एक तो अपने ध्यानचंद, दूसरे पेले और तीसरे कैसियस क्ले यानी मुहम्मद अली। तब के एक नाम की स्मृति और है- सीके नायडू। रेडियो-टीवी और हर तरह के मीडिया प्रसार-विस्तार के बाद तो खिलाड़ी हस्तियों का आना-जाना बना रहा। कुछेक ने, और अलग-अलग खेलों के इन दिग्गजों की गिनती कोई कम नहीं है, अपनी अमिट छाप छोड़ी। लेकिन याद नहीं पड़ता कि किसी ने अपने को महान बताने की हल्की सी भी कोशिश की हो। ऐसे समय में जहां पेले महान कि मेराडोना, फेडरर कि जोकोविच, मेसी कि रोनाल्डो और सचिन बड़े कि लारा से लेकर कपिल कि गावस्कर पर अनंत बहसें चलती रहती हैं वहां मुहम्मद अली ने कहा, ‘आई एम द ग्रेटेस्ट’ और लोगों ने मान लिया कि वे वाकई महानतम हैं। द ग्रेटेस्ट का अर्थ ही हो गया मुहम्मद अली। यह उनका निकनेम या उपनाम हो गया।
ऐसी आत्मश्योक्ति वाली, दंभभरी बातों से हमारा साबका शायरी में होता रहा है कि ‘गालिब का है अंदाजे बयां और’। पर मिर्जा चचा की शायरी का दमखम है कि हम उससे उनकी अहमन्यता को छोटा पाते हैं क्योंकि यह बात गालिब के तरफदार होने से नहीं सुखन फहम होने से वास्ता रखती है। अली की कहानी मुख्तसर कहें तो यही है कि रिंग के अंदर और रिंग के बाहर दोनों जगह वे लड़े और चैम्पियन की तरह रहे-जिये। और अगर वैसे पूछो तो यह कहानी तूलानी है। अमेरिका में नस्लभेद, नागरिक अधिकार आंदोलन के फैलाव से लेकिन अली की रिंग की निजी फतहों से इसका ताल्लुक है। अमेरिका में एरीजोना राज्य के फॉनिक्स में चार जून को अली ने अंतिम सांस ली। उन्हें सांस की बीमारी थी। 1984 में पारकिंसन बीमारी का वे शिकार हुए थे। कैसियस मार्सेलस क्ले जूनियर 17 जनवरी 1942 को केंटकी के लुईसविले में जन्मे थे। उनके पिता साइनबोर्ड पेंटर थे और मां खाली समय में अमीरों के घरों में सफाई और खाना बनाने का काम करती थीं।
क्ले बारह साल की उम्र में बॉक्सिंग की ओर संयोग से आकर्षित हुए। उनकी साइकिल चोरी चली गयी। वे पुलिस थाने गए और वहां पुलिस अधिकारी जो मार्टिन से बोले कि वे चोर को खुद पीटेंगे। इंस्पेक्टर ने समझाया कि धमकी देने से पहले लड़ना तो सीख लो। क्ले को बात समझ में आई और मार्टिन उनके पहले प्रशिक्षक बने। गैरपेशेवर सर्किट में उन्हें जीत के इनाम मिलने लगे। पांच सिंतबर 1960 को उन्हें पहली बड़ी सफलता मिली। रोम ओलम्पिक में उन्हें लाइट हैवीवेट श्रेणी में स्वर्ण पदक मिला। वे लुईसविले राजा की तरह लौटे पर कड़वी हकीकत से भी उन्हें दो-चार होना पड़ा। उनके शहर के ‘व्हाइट्स ओनली’ वाले रेस्त्राओं में उन्हें परोसने के लिए कोई तैयार नहीं था। शायद तभी उन्होंने कुछ कर गुजरने की ठान ली थी क्योंकि जैसा कि वे कहते थे, ‘असंभव आसपास के छोटे लोगों द्बारा फेंका हुआ सिर्फ एक बड़ा शब्द है… असंभव कुछ नहीं है।’
रोम में स्वर्ण जीतने के आठ महीने बाद वे पेशेवर हो गए और दावा किया कि वे वर्ल्ड चैम्पियन सोनी लिस्टॉन को हरा देंगे। और 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने यह कारनामा कर दिखाया। छठे राउंड के बाद लिस्टॉन ने हथियार डाल दिये। यहां से क्ले का अभियान शुरू हुआ और शुरू हुई कविताई में दम्भोक्तियां और शानदार जुमलों की आराइश। वे अपनी तरह के कवि थे और हर मौके के लिए सटीक टीप देने की नैसर्गिक प्रतिभा उन्हें प्राप्त थी। मसलन बॉक्सिंग के कौशल को उन्होंने यूं बयां किया, ‘मैं मगरमच्छों से लड़ा हूं, मैंने बिजलियों को हथकड़ी पहना दी है, गर्जन-तर्जन को जेल में डाल दिया है, एक चरान की मैंने हत्या कर दी है, एक पत्थर को घायल किया है और एक र्इंट को अस्पताल भेज दिया है। मैं इतना कमीन हूं कि दवा को मैं बीमार कर देता हूं।’ जीत के लिए किसी प्रतिद्वंद्वी को धराशायी कर देना उनके लिए सहज कर्म था, ‘यह एक काम ही तो है, घास उगती है, पक्षी उड़ते हैं, लहरें रेत को सराबोर कर देती हैं, मैं भी लोगों को मात दे देता हूं।’
लिस्टॉन को परास्त करने के बाद क्ले ने घोषणा की वे मेलकॅम के नेतृत्व वाले नेशन आॅफ इस्लाम के सदस्य बन गए हैं। छह मार्च 1964 को उन्हें मुहम्मद अली नाम उनके आध्यात्मिक गुरु एलिजाह मुहम्मद ने दिया। क्ले को इसके बाद दुनिया ने मुहम्मद अली के नाम से ही जाना। अली की कीर्ति फैल रही थी। वे सर्वश्रेष्ठ हैवीवेट थे, यह निर्विवाद नहीं लेकिन वे अव्वल दर्जे के सनसनीखेज थे। उन्होंने चैम्पियनशिप जीती, उनका बचाव किया। ये सब मुकाबले विख्यात हुए और अमर रह गए। आलीशान और उत्तेजक लोकेशनों पर उनके मुकाबले रखे गए और उन्हें ‘द फाइट आॅफ द सेंचुरी’, ‘रम्बल इन द जंगल’, ‘थ्रिला इन मनीला’ जैसे नाम दिये गए। रिंग में वे अनोखे थे, कतई गैर पारंपरिक, नाचते पैर (अली-शफल के रूप में मशहूर), अनूठी लयात्मकता के साथ अद्भुत फुर्ती और ताकत।
अली ने लिस्टॉन को 1964 में मियामी बीच पर हराया था। टाइटल का बचाव करते हुए आठ मुकाबले जीतने के बाद न्यूयॉर्क में 22 मार्च 1963 को जोरा फॉले को परास्त किया। इसके बाद ही सेना में भर्ती होने से मना करने पर टाइटिल छिनने और जेल जाने से पहले यह उनका आखिरी मुकाबला था। तीन साल बाद वे रिंग में लौटे और ‘फाइट आॅफ द सेंचुरी’ में जो फ्रेजियर से न्यूयॉर्क में टकराए और पराजित हुए। 1973 में फिर केन नार्टन से हारे लेकिन छह महीने बाद उनसे जीत गए। 28 जनवरी 1974 को अली ने फ्रेजियर को हरा दिया। फ्रेजियर पहले ही विश्व खिताब जॉर्ज फोरमैन से हार चुके थे। 30 अक्टूबर 1974 को ‘रम्बल इन द जंगल’ मुकाबले में अपने से छोटे जॉर्ज फोरमैन को हराया। पहली अक्टूबर 1975 को फिर फ्रेजियर से ‘थ्रिला इन मनीला’ मुकाबला हुआ। अली जीते पर कहा कि इसमें वे मौत के सबसे करीब पहुंच गए थे। वे तीन बार विश्व चैम्पियन बने। कुल 61 मुकाबलों में 56 में जीते। इनमें भी 37 नॉकआॅउट मुकाबले थे। पांच में वे हारे। वे अपने प्रतिद्बंद्बियों के प्रति अपने मुक्कों और अपनी वाणी में उदार कभी नहीं रहे। लिस्टॉन के बारे में उन्होंने कहा कि ‘वह बेहद बदसूरत है, चैम्पियन होने लायक नहीं। चैम्पियन मेरे जैसे सुंदर को होना चाहिए।’ फ्रेजियर के बारे में कहा, ‘वह इतना कुरूप है कि जब वह रोता है तो आंसू मुड़कर उसके सिर के पीछे से बहते हैं।’
जॉनी वाकेलिन का गीत ‘ब्लैक सुपरमैन’ काफी मशहूर हुआ था जिसमें ये लाइन आती थी, ‘ही फ्लोट्स लाइक ए बटरफ्लाई, स्टिंग्स लाइक ए बी’। अली की अपने खेल, अपनी फुर्ती और अपने प्रहार के बारे यह उक्ति बेहद चर्चित रही है, ‘तितली की तरह तैरो, मधुमक्खी की तरह डंक मारो, उसके हाथ उसे मार नहीं सकते जिसे उसकी आंखें देख नहीं पातीं। मुझे अभी देखते हो, और अभी नहीं देखते।’ अली एक चैम्पियन की तरह रहे। उन्होंने कहा कि वे प्रशिक्षण के हर मिनट से नफरत करते थे लेकिन उन्होंने खुद को समझाया था कि अभी सह लो फिर बाकी उम्र चैम्पियन की तरह रहना। लेकिन वे मानते थे कि चैम्पियन जिम में तैयार नहीं होते। उनके गहरे अंदर जो चीज होती है वह उन्हें चैम्पियन बनाती है। वह चीज होती है एक चाह, एक स्वप्न, एक दृष्टि। उनके पास अंतिम मिनट तक का स्टेमिना होता है। उनके पास हुनर और इच्छा होती है, लेकिन जरूरी यह है कि इच्छा को हुनर से बड़ा होना चाहिए। अली सोचने-विचारने वाले इंसान थे और बौद्धिक रूप से विकसित होते रहने में यकीन करते थे। उनका कहना था कि जो व्यक्ति बीस साल की उम्र में दुनिया को जैसे देखता है वैसा ही अगर पचास साल की उम्र में भी देखता है तो उसने तीस साल जीवन के नष्ट कर दिये।
अपने को याद किये जाने के बारे में उन्होंने कहा कि, ‘उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाए जिसने कभी अपने लोगों का सौदा नहीं किया। बहुत ज्यादा नहीं तो आप कह सकते हैं कि मैं महज एक अच्छा बॉक्सर था, मैं इस बात का बुरा नहीं मानूंगा कि आपने मुझे सुंदर नहीं कहा।’ अली विवादास्पद रहे, उन्हें दंभी कहा गया, खलनायक माना गया। कहा गया कि वे मार्टिन लूथर किंग के कैम्प में नहीं थे, उनका ताल्लुक एक अतिवादी, गोरे लोगों के खिलाफ संगठन नेशन आॅफ इस्लाम से था। ये बातें अपनी जगह दुरुस्त होंगी लेकिन अली को करोड़ों लोगों का प्यार मिला और वे उनके हीरो रहे। अली के अधिकृत जीवनीकार थामस हॉसेर ने कहा है, ‘मेरी चिंता यह है कि अली प्रसिद्ध के तौर पर ही प्रसिद्ध हैं। लोग जानते हैं कि अली सिद्धांतों के लिए खड़े रहे। लेकिन वे वाकई यह नहीं जानते कि उनके सिद्धांत क्या थे। उन सिद्धांतों को पूरी तरह समझने के लिए आपको उस समय को गहराई से जानना होगा।’
अली ने जब सेना में भर्ती होने से मना किया और वियतनाम युद्ध का विरोध करने का फैसला किया तब उनकी देश में काफी आलोचना हुई। यह वह समय था जब अमेरिका में नागरिक अधिकारों के लिए और नस्लभेद के खिलाफ आंदोलन अपनी बुलंदी पर था। अली ने इसके लिए अपनी चैम्पियनशिप ख्रोई। जेल गए और अपने शिखर के दिनों में तीन साल तक और ऊंचाइयां पाने से वंचित रहे। शायद लाखों डॉलर अनकमाये भी रह गये। लेकिन उन्होंने यह करते हुए जो कहा, वह प्रेरक और मर्मस्पर्शी है। उन्होंने कहा, ‘वे मुझसे क्यों कहते हैं कि मैं यूनीफार्म पहनूं और घर से दस हजार किलोमीटर दूर जाकर वियतनाम के काले लोगों पर गोलियां बरसाऊं और बम फेंकू, जबकि लुईसवेले में नीग्रो कहे जाने वाले लोगों को कुत्ता समझा जाता है और वे नागरिक अधिकारों से वंचित हैं। मैं यह सब करने दस हजार मील नहीं जाने वाला ताकि गुलामों के मालिकों की हुक्मरानी कायम रहे। मैं एक और गरीब देश को जलाने, तबाह करने नहीं जाऊंगा। मुझे चेताया गया है कि इस रवैये के कारण मुझे करोड़ों डॉलर की चोट पहुंच सकती है पर मैं अडिग हूं। मेरे लोगों के दुश्मन यहीं हैं। मैं अपने धर्म, अपनी जनता और अपने को कलंकित नहीं करूंगा। मैं जेल जाऊंगा। इससे क्या फर्क पड़ता है। हम लोग तो चार सौ सालों से जेल में हैं।’ अली ने यही किया। वे रंगभेद, नस्लभेद और युद्ध के खिलाफ सक्रिय रहे और कहा कि वे यह लड़ाई तीन करोड़ काले लोगों के लिए लड़ रहे हैं।
अली रिंग के अंदर जांबाजी से लड़े और जीते लेकिन रिंग के बाहर की उनकी लड़ाई और भी आकर्षक और दमदार थी। धराशायी लिस्टॉन के पास विजेता के रूप में खड़े अली की फोटो अपने घर में लगाये रखने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा कठिनतम विपरीत स्थितियों में, तूफान को पार करने की सामर्थ्य जुटा पाने को अली की अनूठी योग्यता मानते हैं। 2010 में अली के दुनियावी मंच पर अवतरित होने के पचास साला जश्न के मौके पर ओबामा ने कहा था कि हम एक ऐसे इंसान का सम्मान करते हैं जिसने अपनी शोहरत को भले काम के लिए हमेशा इस्तेमाल किया। 19 अपहृत अमेरिकियों को इराक से वे ही बचाकर लाए थे। जो नेल्सन मंडेला के रिहा होने पर उनके स्वागत के लिए दक्षिण अफ्रीका गया था। हम एक ऐसे इंसान का सम्मान करते हैं जिसका यह यकीन है कि असली सफलता वह है जो हम गिरने के बाद फिर उठकर हासिल करते हैं।
अली को बच्चों से प्रेम रहा। वे अकसर बीमार बच्चों से मिलने अस्पताल पहुंच जाते थे। एक बार फिलेडेलफिया में उन्होंने एक बच्चे को उठा लिया जिसके पैर नहीं थे। वे उसे उठाये हुए उससे बोले कि आजकल लोगों को अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है। तुम किसी दिन चलोगे और यह करोगे, ऐसा कहते हुए वे रिंग में जैसे लहराते थे वैसे चले। अपने को ग्रेटेस्ट कहने वाले अली से जब पारकिंसन बीमारी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, ‘इसके जरिये ईश्वर ने मुझे बताया है कि मैं भी औरों की तरह ही एक इंसान हूं और सबकी कमियां, कमजोरियां मुझमें भी हैं।’ यह बीमारी भी शायद उन मुक्कों का नतीजा थी जो उन्होंने अपने सिर पर सहे। एक बार हिसाब लगाकर उन्होंने बताया था कि कोई 19 हजार मुक्के उन्हें पड़े। उनके निधन पर जो फ्रेजियर हों, फोरमैन हों सब दुखी हैं। सब उन्हें असली ग्रेटेस्ट कह रहे हैं। फ्रेजियर ने कहा कि अली के जाने से उनका एक हिस्सा चला गया और वह सबसे आला हिस्सा था। करोड़ों की आइकन मेडोना, विलियम सेरीना उन्हें अपना हीरो बता रही हैं। इस धरती पर कोई और खिलाड़ी इतना मशहूर और लोगों का प्यारा नहीं हुआ जैसे कि अली थे। अली ने एक बार कहा था, ‘लोग तब तक यह महसूस नहीं करते कि उनके पास क्या था, जब तक उसे वे खो नहीं देते। मसलन राष्ट्रपति कैनेडी, उन्हें कोई पसंद नहीं करता। जैसे कि बीटल्स, उन जैसा अब कुछ और नहीं होगा। या जैसा कि मेरा प्रिय एलविस प्रेसले। मैं बॉक्सिंग का एलविस प्रेसले हूं।’ ‘सोल आॅन आइस’ के लेखक एलरिज क्लीवर ने लिखा है, ‘मुहम्मद अली अमेरिका के लिए चुनौती बने पहले ‘आजाद’ काले चैम्पियन थे। बॉक्सिंग के संदर्भ में वे खरे क्रांतिकारी थे। वे बॉक्सिंग के काले फिदेल कास्त्रो थे।’