भारत सरकार ने साल 2020 तक सडक़ हादसों की संख्या आधी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. यदि यह लक्ष्य हासिल करना है, तो देश के हर तबके को न केवल जागरूक होना पड़ेेगा, बल्कि इस कार्य में अपनी सक्रिय भूमिका भी निभानी पड़ेेगी. भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचेम) के तत्वावधान में आयोजित चौथी ‘सेफ रोड, सेफ लाइफ’ कांफ्रेंस में हिस्सा लेने वाले लगभग सभी वक्ताओं ने भी इसी बात पर जोर दिया.
ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2017 में देश में कुल चार लाख 64 सडक़ हादसे हुए, जिनमें एक लाख 47 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और चार लाख 70 हजार लोग जख्मी हुए. एक अनुमान के मुताबिक, इन सडक़ हादसों की वजह से देश के जीडीपी पर तीन प्रतिशत का अतिरिक्त बोझ पड़ता है. सडक़ हादसों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए पिछले दिनों पूरे देश में तीसरा सडक़ सुरक्षा सप्ताह मनाया गया. उसी अभियान में भागीदार बनते हुए भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचेम) ने भी सडक़ सुरक्षा पर अपनी चौथी ‘सेफ रोड, सेफ लाइफ’ कांफ्रेंस आयोजित की, जिसमें सडक़ सुरक्षा पर कॉरपोरेट्स की भूमिका के अलावा सडक़ सुरक्षा के अलग-अलग पहलुओं, खास तौर पर सेफ्टी स्टैंडडर्स, टेक्नोलॉजी, ट्रैफिक मैनेजमेंट, कानून लागू करने की चुनौतियों, बीमा कवरेज, जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण आदि बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा हुई. कांफ्रेंस के पैनालिस्ट में कॉरपोरेट प्रतिनिधियों के अलावा भारत सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन, मीडिया एवं सडक़ सुरक्षा के लिए काम करने वाले एनजीओज के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया.
देश की पूरी आबादी लगभग रोजाना सडक़ मार्ग का इस्तेमाल करती है. यदि सडक़ें असुरक्षित हैं, तो इसका साफ अर्थ है कि देश का हर नागरिक असुरक्षित है. सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय में तकनीकी सलाहकार डॉ. वीरेंद्र सिंह राठौर कहते हैं कि सडक़ के लिए सरकार नए कानून तो बना देती है, लेकिन उन कानूनों की जानकारी खुद उन्हें लागू करने वालों तक को नहीं है, जबकि सडक़ मार्ग का इस्तेमाल करने वाले हर शख्स को उक्त कानूनों की जानकारी होनी चाहिए. डब्ल्यूएचओ का प्रतिनिधित्व करते हुए डॉ. गौरव गुप्ता ने कहा कि सडक़ मार्ग का इस्तेमाल करने वाला हर व्यक्ति असुरक्षित है. उन्होंने सडक़ सुरक्षा के लिए कॉरपोरेट्स, इंडस्ट्रीज, एनजीओ और सरकार की भागीदारी पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि तेज रफ्तारी के अलावा शराब-ड्रग्स के नशे में वाहन चलाना और सुरक्षा उपायों की अनदेखी करना सडक़ हादसों की अन्य बड़ी वजहें हैं, जिनसे निपटने के लिए सबको मिलकर काम करना होगा.
कॉरपोरेट्स का प्रतिनिधित्व करते हुए हेलमेट निर्माता कंपनी स्टीलबर्ड के एमडी राजीव कपूर ने सडक़ सुरक्षा के लिए तकनीकों के इस्तेमाल पर जोर दिया. उन्होंने मोटर गाड़ी बनाने वाली कंपनियों को सुझाव दिया कि वे ऐसे डिवाइस बना सकते हैं, जिनकी मदद से सडक़ हादसों में कमी लाई जा सकती है. कॉरपोरेट्स का प्रतिनिधित्व करते हुए एबी इनबेव के दक्षिण एशिया प्रेसिडेंट बेन वरहार्ट ने सडक़ हादसों के आर्थिक नुकसान पर प्रकाश डाला. वहीं मैप माय इंडिया की सीओओ सपना आहूजा ने सडक़ों की मॉनिटरिंग में मैप की उपयोगिता का जिक्र किया. इनके अलावा कांफ्रेंस में अभय कुमार वर्मा (महासचिव, एसोचेम), अभय दामले (संयुक्त सचिव, सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय), एचएम नकवी (सीजीएम-टेक, नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया), क्रांति संभव (मीडिया), रजनी गांधी एवं तान्या एस पचौरी (एनजीओ) ने भी अपने विचार व्यक्त किए. इन वक्ताओं ने सडक़ हादसों में हताहत होने वाले लोगों को महज एक आंकड़ा मानने के बजाय उन्हें मानवीय दृष्टि से देखने पर भी जोर दिया. कांफ्रेंस से जो बातें निकल कर सामने आईं, उनमें सडक़ कानूनों को प्रभावी बनाने, उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने, सडक़ हादसों से संबंधित सही आंकड़े एकत्र करने, सुरक्षा उपकरणों को अनिवार्य बनाने, हताहतों को आर्थिक सहायता देने और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की जरूरत आदि प्रमुख थीं.