सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन के भीतर दो कद्दावर नेताओं को तगड़ा झटका देकर एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि आरोपी या दोषी कितने भी बड़े क्यों न हों उनकी सही जगह जेल ही है। निचली अदालतों में सबूतों से छेड़छाड़, गवाहों के बयान बदलवा कर या फिर बड़े वकीलों की फौज के सहारे तिकड़म कर आरोपी खुद को भले ही बेदाग साबित करने की कोशिश करे मगर देश की सर्वोच्च अदालत में उनका बचना नामुमकिन है। मंगलवार को अन्नाद्रमुक नेता शशिकला को आय से अधिक संपत्ति मामले में चार साल की सजा सुनाने के बाद बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामलों में राजद के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को तगड़ा झटका दिया है।
जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अमिताव रॉय की पीठ ने शहाबुद्दीन को बिहार के सीवान जेल से दिल्ली के तिहाड़ जेल में शिफ्ट करने का आदेश दिया है। पत्रकार राजदेव रंजन और तीन अन्य हत्याओं के मामले में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है। कोर्ट ने एक हफ्ते के भीतर शहाबुद्दीन को दिल्ली लाने का फरमान सुनाया है। साथ ही कहा है कि ट्रांसफर के दौरान उसे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिलेगा और सीवान कोर्ट में चल रहे 45 मामले वहीं चलते रहेंगे। वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिये इन मामलों की सुनवाई होगी।
पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन और तीन बेटों को गंवा चुके चंद्रेश्वर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर शहाबुद्दीन को बिहार से तिहाड़ जेल ट्रांसफर करने की मांग की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि सीवान में रहते हुए शहाबुद्दीन मामले को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए उसे तिहाड़ जेल भेजा जाए। उनके मुताबिक शहाबुद्दीन से लोगों को खतरा है इसलिए उन्हें जल्द से जल्द शिफ्ट किया जाए। दरअसल, चंद्रकेश्वर प्रसाद की तीन बेटों की हत्या हुई थी जिनका आरोप शहाबुद्दीन पर लगा है। साथ ही राजदेव रंजन की हत्या में भी शहाबुद्दीन के शामिल होने का आरोप है। इस पर शहाबबुद्दीन की ओर से पेश वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उस पर लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित हैं। मीडिया ने उसके मामले को बड़ा तूल दिया है। अगर उसे तिहाड़ जेल ट्रांसफर करेंगे तो उसके अधिकारों का हनन होगा।
वकीलों की इस दलील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का राइट टू फेयर ट्रायल सिर्फ आरोपी के लिए नहीं बल्कि पीड़ित के लिए है। यहां सिर्फ सवाल आरोपी के अधिकारों का नहीं है बल्कि पीडितों के स्वतंत्रता से जीवन जीने के अधिकार का भी है। आरोपी शहाबुद्दीन की इस दलील से कोर्ट सहमत नहीं हुआ कि सुप्रीम कोर्ट किसी को दूसरे राज्य की जेल में ट्रांसफर नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट की ये जिम्मेदारी है कि वो हर केस में फ्री एंड फेयर ट्रायल को सुनिश्चित करे। कोर्ट हर मामले के तथ्यों को देखकर और जनता के हित को ध्यान में रखकर ये फैसला कर सकता है कि फेयर ट्रायल हो। इससे पहले पिछले साल 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए जमानत रद्द करते हुए शहाबुद्दीन को वापस जेल भेज दिया था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि अगर निचली अदालत ने शहाबुद्दीन को बहस के लिए वकील मुहैया कराया था तो उस आदेश को हाई कोर्ट में चुनोती देने की जरूरत क्या थी? अगर शहाबुदीन अदालत से लीगल ऐड मांग रहा था तो उसे देने में हर्ज़ क्या था। इस पर बिहार सरकार ने कहा कि शहाबुद्दीन को लीगल ऐड की जरूरत नहीं थी और सरकार लीगल ऐड का खर्चा नहीं उठाना चाहती थी क्योंकि शहाबुद्दीन सक्षम है कि वो अपने लिए किसी वकील को बहस के लिए नियुक्त कर सके। शहाबुद्दीन की तरफ से कहा गया था कि वो पिछले 11 साल से जेल में हैं, ऐसे में उसके पास पैसे नहीं हैं कि वो बहस के लिए वकील रख सके।
दरअसल, सेशन कोर्ट ने शहाबुद्दीन को उसके खिलाफ लंबित मामलों में बहस के लिए लीगल ऐड के जरिये वकील उपलब्ध कराया था जिसको बिहार सरकार ने हाईकोर्ट में चुनोती दी थी और हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद उसके खिलाफ सभी मामलों पर रोक लग गई थी।
पप्पू यादव को भी किया गया था तिहाड़ ट्रांसफर
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि जिस तरफ पप्पू यादव को बिहार की जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल में ट्रान्सफर किया गया था और मामले की सुनवाई बिहार में ही हो रही थी, उसी तरह शहाबुद्दीन को बिहार से तिहाड़ जेल ट्रांसफर कर मामले की सुनवाई बिहार में ही की जा सकती है। अगर जरूरत होगी हो शहाबुदीन को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अदालत में पेश किया जा सकता है।