राजीव थपलियाल/शिव प्रसाद सेमवाल
उत्तराखंड शासन पर हावी कुछ नौकरशाह ऐसे हैं जो भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति की हवा निकालने के लिए काफी हंै। यह किसी जनसाधारण या विपक्ष का आरोप नहीं है बल्कि भाजपा के ही एक पूर्व राज्य मंत्री रहे नेता का आरोप है। शीर्ष आईएएस अधिकारी के खिलाफ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को चिट्ठी लिख भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण दिए जाने की बात कही है। चिंता की बात यह है कि अपर मुख्य सचिव स्तर के यह अधिकारी मुख्यमंत्री के राइट हैंड की भूमिका में हैं। यही नहीं इस अधिकारी के बारे में क्षेत्रीय भेदभाव की बातें भी सचिवालय में तर्कों के साथ उठ रही हैं। इसी प्रकार मुख्य सचिव पर अपने बेटे को सरकारी नौकरी देने के लिए नियम कायदों को ताक पर रखने का आरोप है। सत्ताधारी भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं ने साफ शब्दों में चेताया है कि सूबे के रसूख्रदार अधिकारियों की करतूतों पर सरकार बगैर देर किए चेत जाए तो ही बेहतर होगा।
अपर मुख्य सचिव से जान का खतरा!
यह भी कम आश्चर्य नहीं है कि सत्ताधारी पार्टी के एक नेता को अपनी ही सरकार के अपर मुख्य सचिव से जान का खतरा होने लगे। प्रधानमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को चिट्ठी भेजने वाले तराई बीज विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष (राज्य मंत्री स्तर) हेमंत द्विवेदी ने अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश से खुद की जान का खतरा बताया है। त्रिवेंद्र रावत की सरकार में ओमप्रकाश को सबसे ताकतवर नौकरशाह माना जाता है। उन्होंने लिखा है कि अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश उनकी हत्या करा सकते हैं। हेमंत द्विवेदी वर्ष 2010-11 में तराई बीज विकास निगम के अध्यक्ष रहे थे। हेमंत द्विवेदी ने अपने पत्र में लिखा है कि हाल में तराई बीज विकास निगम के जिन घोटालेबाज अधिकारियों को सस्पेंड करके उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है उनमें से काफी को उन्होंने अपने कार्यकाल में ही निलंबित और बर्खास्त कर दिया था। उन लोगों को ओमप्रकाश का पूरा संरक्षण था और उन्होंने कुछ समय बाद सारे अफसरों को बहाल कर दिया था।
चिट्ठी में हेमंत द्विवेदी ने कहा है कि ओमप्रकाश ने जानबूझकर उनको दी जा रही सुरक्षा भी हटवा दी है जिससे उनका जीवन खतरे में है। द्विवेदी का कहना है कि वह अकसर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में आते-जाते रहते हैं। उनका परिवार हल्द्वानी में अकेले रहता है जिससे उनका परिवार भी खतरे में है। उन्होंने अपने पत्र में प्रदेश में कृषि की दुर्दशा के लिए भी ओमप्रकाश को ही जिम्मेदार बताया है। अपने पत्र में उन्होंने लिखा है कि ओमप्रकाश 2012-13 में सचिव (कृषि) और प्रमुख सचिव (कृषि) के पद पर लगातार बने रहे। इस दौरान उन्होंने तराई बीज विकास निगम की जिम्मेदारी भी संभाली और बीज निगम को बर्बाद करने में लिप्त घोटालेबाज अफसरों को पूरा संरक्षण देते रहे ।
विधायक से भी झड़प
पिछले दिनों द्वाराहाट के विधायक महेश नेगी की भी ओमप्रकाश से झड़प चर्चा का विषय बनी थी लेकिन तब मामला किसी तरह संभल गया था। अब भाजपा के पूर्व राज्य मंत्री द्वारा ओमप्रकाश के खिलाफ पार्टी हाईकमान को चिट्ठी लिखे जाने से भाजपा के अन्य कार्यकर्ता और विधायक भी ओमप्रकाश के खिलाफ लामबंद हो सकते हैं। हेमंत द्विवेदी का कहना है कि उन्होंने तो यह पत्र गोपनीय स्तर पर सिर्फ हाईकमान को भेजा था। उन्हें नहीं पता कि यह पत्र लीक कैसे हो गया। उन्होंने ओमप्रकाश पर जितने भी आरोप लगाए हैं उनकी सत्यता तो अपने आप में जांच का विषय है लेकिन इस पत्र के बाद सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर जरूर सवाल उठने लगे हैं।
नियमों को ठेंगा दिखाते मुख्य सचिव
भाजपा सरकार का अहम काजकाज जिन कंधों पर है उन मुख्य सचिव एस. रामास्वामी की नैतिक ईमानदारी पर भी सवालिया निशान लग चुके हैं। रामास्वामी को पुत्र मोह में नियम कायदों और शासन व्यवस्था की कोई परवाह नहीं है। शासन के सबसे उच्च पद पर बैठे रामास्वामी ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए बेटे हर्षवर्धन को पहले तो उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम (उपनल) के माध्यम से 20 हजार रुपये के वेतनमान पर संविदा में नियुक्त करवाया। फिर कुछ वर्ष बाद मानकों को तोड़-मरोड़ कर देहरादून के जिला अस्पताल में फिजियोथेरेपिस्ट के पद पर प्रतिनियुक्त करा दिया। हर्षवर्धन की नियुक्ति ने इस प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े कर दिए क्योंकि नियुक्ति से पूर्व उसका कोई भी मेडिकल टेस्ट नहीं लिया गया था। हर्षवर्धन को दून जिला अस्पताल में वेतन भत्ते की आड़ में उपनल के वेतनमान से भी अधिक राशि का भुगतान किया जाता रहा।
रामास्वामी का पुत्र मोह यहीं समाप्त नहीं हुआ। संविदा पर हुई नियुक्ति के बाद अब रामास्वामी आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में अपने पुत्र को स्थायी नियुक्ति दिलाने की दिशा में गुपचुप तरीके से मिशनरत हैं। कुछ समय पूर्व ही आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति प्रकाशित की गई थी। इसके बाद रामास्वामी ने अपने पुत्र को विश्वविद्यालय परिसर में बने अस्पताल में स्थायी रूप से नियुक्त करने के उद्देश्य से नियुक्ति नियमावली के मानकों में परिवर्तन कर फाइल को अनुमोदन के लिए कुलाधिपति राज्यपाल केके पॉल के पास भेज दिया। हालांकि इसे राज्यपाल ने पुन: विचार के लिए वापस शासन को लौटा दिया। राजभवन से लौटी यह फाइल काफी समय बीत जाने के बाद भी संबंधित विभाग तक नहीं पहुंच पाई है। नियमानुसार यदि सरकार इस फाइल को अनुमोदन के लिए दोबारा राजभवन भेजती है तो राज्यपाल इसे अस्वीकार नहीं कर पाएंगे।
पहले दिन विज्ञप्ति, अगले दिन नियुक्ति
मुख्य सचिव के पुत्र हर्षवर्धन की नियुक्ति का आदेश शासन द्वारा जारी किया गया था। आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में हर्षवर्धन के लिए बाकायदा फिजियोथेरेपिस्ट का पद सृजित किया गया था। मुख्य सचिव का एक और कारनामा देखिए, 5 अक्टूबर, 2015 को आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय द्वारा उपनल से मास्टर आॅफ फिजियोथेरेपिस्ट की शैक्षिक अहर्ता वाले कार्मिक उपलब्ध कराने की मांग की गई और 6 अक्टूबर को उपनल ने इस पद के लिए मुख्य सचिव के पुत्र को सबसे बेहतरीन उम्मीदवार मानते हुए नियुक्ति पत्र भी जारी कर दिया। 14 अक्टूबर को हर्षवर्धन ने विश्वविद्यालय में ज्वाइन भी कर लिया। उत्तराखंड जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने सरकारी उपक्रम उपनल को बैकडोर भर्तियों का अड्डा बताते हुए सवाल किया कि क्या उपनल को मुख्य सचिव का पुत्र ही सबसे योग्य व्यक्ति लगा। नेगी ने इस पर भी आश्चर्य जताया कि उपनल की स्थापना पूर्व सैनिकों या उनके आश्रितोंं को नियुक्ति देने के लिए की गई थी लेकिन रामास्वामी जैसे नौकरशाहों ने इसे अपने बेटे-बेटियों की बेरोजगारी दूर करने का माध्यम बना डाला। उनका कहना है, ‘जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली भाजपा सरकार उन अधिकारियों के भरोसे चल रही है जिन पर खुद भ्रष्टाचार के आरोप हैं। दागी-बागियों की सरकार से जनता को बहुत उम्मीदें रखनी भी नहीं चाहिए। जांच आयोगों ने जिनको घपलों का दोषी माना हो उनके कधों पर ही सरकार चलाने का जिम्मा है।’