पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र
माता का पंचम स्वरूप स्कन्दमाता के नाम से प्रसिद्ध है। स्कन्द अर्थात ग्रहों में मंगल ग्रह के स्वामी देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय की माता होने के कारण ही यह स्कन्दमाता के नाम से विख्यात हैं। भगवान कार्तिकेय देव सेनापति हैं और मोर इनका वाहन है। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। तारकासुर राक्षस का इन्होंने ही वध किया था। यही गणेश जी के एकमात्र भाई हैं। स्कन्दमाता का वाहन भी मयूर है।
पाचवें दिन होने वाली इनकी पूजा में भक्त का मन विशुद्ध चक्र में विराजमान होता है। इनके विग्रह में भगवान कार्तिकेय बाल रूप में माता स्कन्द की गोद में बैठे हैं। माता की चार भुजाएं हैं। यह दाहिनी तरफ की ऊपरवाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमलपुष्प सुशोभित है।
स्कन्द माता का संपूर्ण स्वरूप शुभ्र एवं धवल है। कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण ही इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। भक्त का मन विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर होता है। इस समय भक्त को पूरी सावधानी से स्कन्द माता की उपासना करनी चाहिए।
इनकी उपासना से जहां मोक्ष के द्वार खुलते हैं, वहीं इस लोक में उपलब्ध सुख और शान्ति भी उपस्थित रहती है। साथ ही भक्त पर मंडरा रहे समस्त संकट भी दूर हो जाते हैं। माता की पूजा से स्कन्द भगवान भी खुश हो जाते हैं जिससे मंगल ग्रह अगर पीड़ित कर रहा है तो वह पीड़ा देना बंद कर शुभ फल प्रदान करने लगता है।