नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी की साइकिल कहां रुकी है, यह हर कोई जानना चाहता है। चुनाव की घोषणा के बाद से तो लोग किसी कौतुक का इंतजार करने लगे हैं। सभी राजनीतिक दलों में हलचल बढ़ गई है लेकिन सपा अपना आंतरिक विवाद सुलझाने में उलझी है। साइकिल चुनाव चिह्न किसे मिले, ये फैसला अब तक नहीं हो पाया। अब चुनाव आयोग ने मुलायम और अखिलेश गुट से अपने-अपने समर्थन में विधायक, एमएलसी और एमपी के समर्थन का हलफनामा 9 जनवरी तक मांगा है।
पिछले 1 जनवरी को अखिलेश गुट ने आकस्मिक अधिवेशन बुलाया था। इस अधिवेशन में अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। इसके अलावा शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया और अमर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद से ही सपा में दो फाड़ हो गए। हालांकि मुलायम सिंह ने इस अधिवेशन को असंवैधानिक बताया। अब अखिलेश और मुलायम गुट में चुनाव चिह्न साइकिल को लेकर विवाद है।
पिछले दिनों मुलायम सिंह यादव ने चुनाव आयोग के समक्ष अपनी बात रखी और अखिलेश के अधिवेशन को असंवैधानिक बताते हुए हलफनामा भी सौंपा। हालांकि अखिलेश गुट के मुताबिक पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरनमय नंदा ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी और ऐसी स्थिति में अधिवेशन पूरी तरह से वैध है।
मुलायम के चुनाव आयोग से मिलने के बाद अखिलेश गुट से रामगोपाल यादव ने चुनाव आयोग से मुलाकात की। मुलाकात के बाद उन्होंने बताया कि आयोग को सारी जानकारी दे दी गई है और फैसला हमारे पक्ष में आने की उम्मीद है।
मंगलवार को चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद रामगोपाल यादव ने बताया कि हमने अपना पक्ष रखा। रामगोपाल यादव ने कहा कि हमारे साथ पार्टी के 90 फीसदी विधायक और 80 से 90 फीसदी डेलीगेट्स हैं। इसलिए असली समाजवादी पार्टी वो है जिसके अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं। इसलिए अखिलेश यादव की अध्यक्षता वाली पार्टी को ही समाजवादी पार्टी माना जाए।
मुलायम सिंह यादव के करीबी सूत्र ने बताया कि चुनाव आयोग में मुलायम का पक्ष मजबूत है, क्योंकि पार्टी से बाहर के सदस्यों द्वारा अधिवेशन बुलाना असंवैधानिक है। सिर्फ पार्टी अध्यक्ष ही अधिवेशन बुला सकता है। अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव को एसपी में वापस लेने का निर्णय किसी पेपर पर नहीं लिया गया था। उनका निष्कासन वापस लिया जा सकता था, लेकिन उन्होंने अधिवेशन बुला लिया।
इस बीच मुलायम सिंह द्वारा समाजवादी पार्टी से निकाले गए पुराने भरोसेमंद किरनमय नंदा ने आरोप लगाया है कि 1 जनवरी को जारी दो पत्रों में मुलायम सिंह यादव के दस्तखत अलग-अलग हैं। इस बयान के बाद साइन को लेकर नया विवाद शुरू हो गया था।