नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों में तस्वीरों के इस्तेमाल संबंधी अपने पूर्व के आदेश में संशोधन करते हुए राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों और राज्य मंत्रियों को भी शामिल करने की अनुमति दे दी। यानी अब सरकारी विज्ञापनों में इनके चित्र भी दिखाए जा सकते हैं। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई एवं न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद पंत की पीठ ने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु एवं कुछ अन्य राज्य सरकारों की पुनर्विचार याचिकाएं स्वीकार करते हुए शुक्रवार को यह आदेश दिया।
इससे पहले सर्वोच्च अदालत ने सरकारी विज्ञापनों में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की तस्वीरें प्रकाशित करने का आदेश दिया था, वह भी उनकी अनुमति लेकर। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने दलील दी थी। अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि हर मंत्री अपने अपने विभाग में कार्य करता है। फिर भला वह सरकारी विज्ञापनों में अपने काम के बारे में अपनी जनता को क्यों न बताएं। रोहतगी ने कहा कि विज्ञापनों का खर्चा सरकारी बजट पर किया जाता है। ऐसे में विधायिका के काम में सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं दे सकती। ये संविधान के नियम के खिलाफ है।
पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम और ओडिशा की सरकारें भी शामिल थीं। इन याचिकाओं में विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के अलावा अन्य नेताओं के चित्र प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर पुनर्विचार किए जाने की मांग करते हुए कहा गया है कि यह आदेश संघीय ढांचा और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
पीठ ने कहा, ‘हम अपने उस फैसले की समीक्षा करते हैं जिसके तहत हमने सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के चित्रों के प्रकाशन को मंजूरी दी है। अब हम राज्यपालों, संबंधित विभागों के केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और संबंधित विभागों के मंत्रियों के चित्र प्रकाशित किए जाने की अनुमति देते हैं।’ पीठ ने कहा, ‘शेष शर्तें एवं अपवाद यथावत रहेंगे।’ इससे पहले न्यायालय ने नौ मार्च को उन पुनरीक्षण याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।