कोलेजियम से ही होगी जजों की नियुक्ति

नई दिल्ली। जजों की नियुक्ति राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग द्वारा किए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने अंसैवाधिनक करार दिया है। 99वें संविधान संशोधन से बने एनजेसी एक्ट 2014 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच जजों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया। अब पहले की तरह ही कोलेजियम सिस्टम से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की बहाली होगी। अदालत ने एनजेएसी अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका को बड़ी पीठ के पास भेजने की केंद्र की अपील भी खारिज कर दी। इस फैसले से जजों की नियुक्ति प्रणाली में बदलाव लाने की केंद्र की कोशिशों को झटका लगा है।

इस पीठ में जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस जेएस चेलमेश्वर, मदन बी लोकुर, कुरियन जोसफ और आदर्श कुमार गोयल शामिल हैं। जजों की नियुक्ति की प्रणाली पर सुप्रीम कोर्ट का यह तीसरा फैसला होगा। इस कानून का बीस राज्यों ने समर्थन किया था। पहला निर्णय 1993 में आया था जिसके तहत कोलजियम (सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की चयन मंडल) प्रणाली बनाई गई थी। दूसरा 1998 में आया था जिसमें कुछ संशोधनों के साथ कोलेजियम की पुष्टि की गई थी। एनजेएसी एक्ट की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने 15 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इस कानून के विरोध में याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि एनजेएसी न्यायिक स्वतंत्रता में दखल देता है। साथ ही यह न्यायिक नियुक्तियों में देश के मुख्य न्यायाधीश की सर्वोच्चता को भी कम करता है क्योंकि एनजेएसी के दो सदस्य वीटो के जरिये किसी भी नियुक्ति को रोक सकते हैं। उनका कहना था कि यह 1993 और 1998 के फैसलों के भी खिलाफ है जिसमें कहा गया है कि नियुक्तियों में देश के मुख्य न्यायाधीश की राय हमेशा सर्वोच्च रहेगी। याचिकाकर्ताओं ने एनजेएसी में कानून मंत्री का एक सदस्य के रूप में मौजूद रहने का कड़ा विरोध किया था।

वहीं, केंद्र सरकार का तर्क था कि आयोग के जरिए जजों की बहाली ज्यादा पारदर्शी तरीके से हो सकेगी। पिछले 22 साल से सुप्रीम कोर्ट का कोलेजियम जजों की नियुक्ति करता रहा है। इसमें मुख्य न्यायाधीश सहित छह सदस्य होते हैं। इसमें मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज, केंद्रीय कानून मंत्री और दो सदस्य होते हैं। इन दो सदस्यों का चुनाव मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता की समिति करती है। सरकार द्वारा आयोग बनाए जाने के बाद करीब 400 जजों की नियुक्तियां रूकी पड़ी हैं।

क्या था कानून

इस कानून के तहत प्रावधान यह था कि जजों की नियुक्ति करने वाले इस आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, कानून मंत्री और दो जानीमानी हस्तियां भी इस आयोग का हिस्सा थीं। दो हस्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति को करना था जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल थे। कानून में दिलचस्प बात यह थी कि अगर आयोग के दो सदस्य किसी नियुक्ति पर सहमत नहीं हुए तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफरिश नहीं करेगा। राष्ट्रपति ने संविधान संशोधन को 31 दिसंबर 2014 को मंजूरी दी थी।
 

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