नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने में कोताही बरतने पर गुजरात समेत कई राज्यों को कड़ी फटकार लगाई है। सर्वोच्च अदालत ने पूछा है कि जिस कानून को देश की संसद ने बनाया है उसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने यह कड़ा रुख अपनाया है।
जस्टिस मदान बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संसद क्या कर रही है? क्या गुजरात भारत का हिस्सा नहीं है? क़ानून कहता है कि यह पूरे देश मे लागू होगा और गुजरात इसे लागू नहीं कर रहा है। कल कोई राज्य कह सकता है कि वो सीआरपीसी, आईपीसी जैसे कानूनों को लागू नहीं करेगा।
पीठ ने केंद्र सरकार को सूखा प्रभावित राज्यों में मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून जैसी कल्याणकारी योजनाओं की वस्तुस्थिति के आंकड़े जुटाने के भी निर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में 10 फरवरी तक हलफनामा दायर करने का भी आदेश भी दिया। मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी को केंद्र सरकार से मनरेगा, खाद्य सुरक्षा कानून और मिड डे मील जैसी योजनाओं के बारे में सूचनाएं देने को कहा था ताकि पता लगाया जा सके कि सूखा प्रभावित इलाक़ों में न्यूनतम रोजगार और भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है या नहीं। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, झारखंड, बिहार, हरियाणा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कई इलाके सूखे की चपेट में हैं और प्रशासन लोगों को पर्याप्त राहत मुहैया नहीं करा रहा है।
यह जनहित याचिका गैर सरकारी संगठन स्वराज अभियान ने दाखिल की है, जिसका संचालन योगेंद्र यादव जैसे लोग कर रहे हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में हर व्यक्ति को प्रति माह पांच किलो खाद्यान्न मुहैया कराने की गारंटी दी गई है। याचिका में फसल के नुकसान की स्थिति में समय पर और समुचित मुआवजा देने की मांग की गई है। यह भी कहा गया है कि सूखा प्रभावित किसानों को अगली फसल के लिए सब्सिडी तथा पशुओं के लिए सब्सिडी युक्त चारा दिया जाना चाहिए।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि अपने दायित्वों के निर्वाह में केंद्र और राज्यों की घोर उपेक्षा के कारण लोगों को खासा नुकसान हो रहा है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 तथा 14 के तहत अधिकारों की गारंटी के उलट है। याचिका में कहा गया है कि सूखे की वजह से ग्रामीण गरीबों के लिए उपलब्ध कृषि संबंधी रोजगार में गहरी कमी आई है।