निशा शर्मा
तमिल फिल्मों के लेखक और निर्देशक वेत्रिमारन की बहुचर्चित फिल्म ‘विसारानाई’ को एकेडमी (ऑस्कर) अवॉर्ड के लिए भारत की ओर से भेजा गया है। विसारानाई का मतलब पुलिसिया पूछताछ (इंट्रोगेशन) है। इससे पहले भी आठ बार तमिल फिल्मों को ऑस्कर में विदेशी भाषा श्रेणी के लिए भेजा जा चुका है लेकिन कोई भी फिल्म अपनी धाक नहीं जमा पाई। क्षेत्रीय भाषाई फिल्मों में से दो बार बांग्ला भाषा की फिल्में ऑस्कर जाने में कामयाब हुईं। वहीं मराठी, मलयालम और तेलुगू की एक-एक फिल्में इसके लिए देश की ओर से चुनी गईं। इस बार विसारानाई को लेकर काफी उम्मीद है क्योंकि पटकथा, निर्देशन सहित हर लिहाज से फिल्म में काबिलियत है कि वह ऑस्कर में जगह बना पाए।
तमिल फिल्म इरुधि सुत्रु और इसके हिंदी रीमेक साला खड़ूस में सहायक निर्देशक रहे अन्नामल्लाई करू कहते हैं, ‘विसारानाई ऑस्कर में जरूर कमाल दिखाएगी। इस फिल्म ने कमर्शियल तौर पर भी बड़ी सफलता हासिल की है। फिल्म की यूएसपी इसकी कहानी है। यह फिल्म तमिल लेखक एम चंद्रकुमार के उपन्यास ‘लॉक अप’ पर आधारित है। फिल्म में पुलिस सिस्टम में फैले अपराध को दिखाया गया है। फिल्म में इस बात को बखूबी दिखाया गया है कि आम लोगों के लिए केवल अपराधी ही नहीं बल्कि पुलिस वाले भी काफी खौफनाक हो सकते हैं।’ भारतीय फिल्में साठ सालों में अब तक कोई ऑस्कर क्यों नहीं जीत पाईं के जवाब में करू कहते हैं, ‘भारतीय फिल्में ऑस्कर जीतने की पूरी काबिलियत रखती हैं लेकिन उनके निर्माताओं को ऑस्कर के नियम और कायदे की पूरी जानकारी नहीं होती। अगर भारतीय फिल्मों को पूरी तैयारी के साथ ऑस्कर में भेजा जाए और हॉलीवुड के हिसाब से फिल्मों की मार्केटिंग की जाए तो भारतीय फिल्में जरूर ऑस्कर जीत सकती हैं। जिस तरह से विसारानाई ने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार अपने नाम किए हैं उस लिहाज से कहा जा सकता है कि यह ऑस्कर में अपनी अहम जगह बना सकती है।’
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2015 में विसारानाई
बेस्ट फीचर फिल्म
(तमिल भाषा)
बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर (समुतिराकनी)
बेस्ट एडिटिंग
(किशोर टे)
फिल्म विसारानाई के कई दृश्य ऐसे हैं जिन्हें देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आपको अहसास होगा कि जो कुछ हीरो फिल्म में झेल रहा है वो आपके साथ हो रहा है। यानी फिल्म वास्तविकता से भरपूर है और इसका निर्देशन मंझा हुआ है। दिनेश, समुतिराकनी, अजय घोष और किशोर जैसे कलाकार अपने अभिनय से कहीं भी अहसास नहीं होने देते कि दर्शक फिल्म देख रहे हैं या वास्तविक दृश्य। इस फिल्म के लिए समुतिराकनी को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। फिल्म की खूबसूरती में एडिटिंग ने भी अहम रोल निभाया है। इसकी एडिटिंग विदेशी फिल्मों को टक्कर देती है। ऑस्कर के लिए नामित होने के लिहाज से फिल्म में वो सब चीजें हैं जो ऑस्कर की ज्यूरी नोटिस करती है। तमिल फिल्मों के भगवान कहे जाने वाले रजनीकांत तो इस फिल्म को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ फिल्म बता चुके हैं।
हिंदी फिल्मों के जाने-माने समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज कहते हैं, ‘ऑस्कर में जाने वाली फिल्मों और भारत में बनने वाली फिल्मों का पैमाना बिल्कुल अलग है। हमारी फिल्मों का औसत बजट 10 से बीस करोड़ रुपये के बीच होता है और हॉलीवुड में बनने वाली फिल्मों का बजट पांच से आठ हजार करोड़ रुपये तक होता है। इतना तो हमारी फिल्में कमाती नहीं हैं जिससे कई गुना ज्यादा हॉलीवुड अपनी फिल्में बनाने और उसे प्रचारित करने में लगाता है। ऐसे में भारतीय फिल्मों को ऑस्कर मिलने की बात ख्वाब ही है। दूसरी बात हमारी फिल्मों की संवेदनाएं अलग हैं और हॉलीवुड की संवेदनाएं अलग। इसकी वजह से भी भारतीय फिल्में पीछे रह जाती हैं।’
बॉलीवुड के ट्रेड एनालिस्ट कोमल नहाटा भी अजय ब्रह्मात्मज की बात से इत्तेफाक रखते हैं। नहाटा मानते हैं, ‘जो हिंदी फिल्में ऑस्कर के लिए भेजी जाती हैं वे विश्व सिनेमा में कहीं भी खड़ी नहीं होती हैं। हिंदी फिल्में भले ही सौ करोड़ रुपये या इससे ज्यादा का कारोबार कर लें लेकिन हॉलीवुड फिल्मों के मुकाबले उनका बजट काफी कम होता है जिससे वे पिछड़ जाती हैं। भारतीय फिल्में ऐसे पुरस्कारों की होड़ में शामिल होने के लायक ही नहीं होती हैं।’ इन सब आलोचनाओं के बीच फिल्म विसारानाई के निर्देशक वैत्रिमारन कहते हैं कि फिल्म की मार्केटिंग में वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। मार्केटिंग के अलावा फिल्म की कहानी, फिल्मांकन और अभिनय भी मायने रखती है।
ऑस्कर में भारतीय फिल्में
हॉलीवुड के प्रमुख अवॉर्ड समारोह में से सबसे अहम एकेडमी अवॉर्ड समारोह है जिसे लोग ऑस्कर के नाम से ज्यादा जानते हैं। इस अवॉर्ड को इस साल 88 साल हो गए। यह अवॉर्ड हॉलीवुड की फिल्मों, निर्देशकों, कलाकारों और लेखकों समेत फिल्मों से जुड़े पेशेवरों को उनकी उत्कृष्टता के लिए दिया जाता है। इसी में एक श्रेणी विदेशी भाषा की फिल्मों की है जिसके लिए ही भारत सहित दुनिया के अन्य देशों से फिल्मों को भेजा है। ऑस्कर दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित फिल्मी अवार्ड माना जाता है। फिल्मी दुनिया से जुड़े हर शख्स का ख्वाब होता है कि उसे अपने करियर में एक बार जरूर ऑस्कर की ब्लैक लेडी को हाथ में लेने का अवसर मिले। हॉलीवुड ही नहीं बॉलीवुड में भी ऑस्कर को लेकर खासा उत्साह रहता है।
मदर इंडिया : भारतीय फिल्म संघ करीब साठ साल से इस अवॉर्ड के लिए फिल्में भेज रहा है। भारत की ओर से पहली बार 1957 में आई हिंदी फिल्म मदर इंडिया को भेजा गया था जो ऑस्कर में विदेशी भाषा की श्रेणी में नामांकन हासिल करने में सफल रही थी। महबूब खान के निर्देशन में बनी मदर इंडिया अपने समय की सबसे चर्चित और लोकप्रिय फिल्म थी। कहानी, अभिनय और संगीत के दम पर ही इसे नामांकन मिला था। इतालवी निर्देशक फेडरिको फेलिनी की फिल्म नाइट ऑफ कैबिरिआ (1957) से महज एक वोट से ऑस्कर पाने में मदर इंडिया चूकी थी। मदर इंडिया को ऑस्कर में भेजने से पहले काट-छांट कर छोटा किया गया था।
सलाम बॉम्बे : मदर इंडिया के बाद 1988 में बनी मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे को ऑस्कर में नामांकन मिला था। बॉलीवुड की यह फिल्म मुंबई के एक रेड लाइट एरिया में रहने वाले बच्चे कृष्णा उर्फ चेप्पू के अस्तित्व की कहानी कहती है। इस फिल्म ने कान फिल्म समारोह में गोल्डन कैमरा और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सहित कई पुरस्कार अपने नाम किए थे। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस फिल्म को ‘द बेस्ट 1000 मूवीज एवर मेड’ की लिस्ट में शामिल किया था लेकिन ऑस्कर में यह डेनमार्क के निर्देशक बिले अगस्त की फिल्म पेले (1988) से मात खा गई और ऑस्कर पाते-पाते रह गई थी।
लगान : 2001 में आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ ऑस्कर की आखिरी सूची तक पहुंची थी। इसका निर्देशन आशुतोष गोवारिकर ने किया था। ब्रिटिश राज के समय किसानों से वसूले जाने वाले लगान पर यह फिल्म आधारित थी। फिल्म को कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सराहा गया था लेकिन बोस्नियाई निर्देशक डेनिस तेनोविक की फिल्म नो मैन्स लैंड के आगे यह नहीं टिकी।
भारत की ओर से ऑस्कर में भेजी जाने वाली फिल्मों पर विवाद होना कोई नई बात नहीं है। भारत में सालाना 900 फिल्में बनाई जाती हैं। इन फिल्मों का ऑस्कर जीतना तो दूर ये ऑस्कर के लिए नामांकित होने लायक भी नहीं होतीं। ट्रेड एनालिस्ट कोमल नहाटा कहते हैं, ‘मान लीजिए आपकी फिल्म ऑस्कर में भेजी गई तो आपके पास करोड़ों रुपये होने चाहिए ताकि आप अमेरिका जाकर ऑस्कर की ज्यूरी में शामिल हर व्यक्तिको अपनी फिल्म दिखा पाएं और इसकी मार्केटिंग कर पाएं। यह जरूरी नहीं है कि ज्यूरी का हर सदस्य भारतीय फिल्मों को देखे ही। हालांकि भारत में कई ऐसी फिल्में बनती हैं जो कहानी के स्तर पर या कला के स्तर पर किसी भी तरह के पुरस्कार को जीतने का दम रखती हैं। सत्यजीत रे, मृणाल सेन, अडूर गोपालकृष्णन और राज कपूर जैसे भारतीय फिल्मकारों की फिल्में दुनिया भर में मशहूर हैं। इनकी फिल्मों ने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कार जीते हैं लेकिन ये फिल्में ऑस्कर नहीं ला पार्इं। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि ऑस्कर के लिए फिल्मों के लिए लॉबिंग होती है। इसकी वजह से भी भारतीय फिल्में ऑस्कर की दौड़ में पिछड़ती हैं।’