वाशिंगटन। पाकिस्तान पर आतंकवाद की फसल भारी पड़ रही है। उसे घेरने के लिए भारत, अफगानिस्तान और अमेरिका ने पुख्ता रणनीति बनाई है। अमेरिका ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया है, जिससे उसके लिए नई मुश्किलें पैदा हो गई हैं। उधर, अब अफगानिस्तान और भारत एक साथ आ गए हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने पीएम मोदी के साथ इस रणनीति पर सहमति जताई है। दोनों देशों की इस रणनीति की ताकत सितंबर में और भी महत्वपूर्ण होने वाली है, क्योंकि इसी माह आतंकवाद की इस जंग में अमेरिका साथ आ रहा है। तीनों देश इसे लेकर न्यूयॉर्क में वार्ता करेंगे। उधर, अमेरिका ने आतंकवाद से जंग के लिए पाकिस्तान को दी जाने वाली 30 करोड़ की सालाना मदद भी रोक दी है। जाहिर है कि अमेरिका की ओर से इस फैसले के बाद पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंकवाद को लेकर घिर गया है।
ओबामा प्रशासन ने पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की जंग तब तक खत्म नहीं होगी जब तक कि वह अपनी जमीन से दूसरे देशों पर हमला करने वाले गिरोहों को बर्दाश्त करने की नीति नहीं बदलता। प्रशासन ने यह बयान अमेरिकी सीनेट की विदेश मामलों की समिति के सामने अफगानिस्तान पर हुई एक बहस के दौरान दिया है। सवाल-जवाब के दौरान प्रशासन का प्रतिनिधित्व कर रहे अफगानिस्तान-पाकिस्तान मामलों पर अमेरिका के विशेष दूत रिचर्ड ऑलसन का कहना था कि पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ बातचीत में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि उन्हें बगैर भेदभाव के सभी चरमपंथी गुटों को निशाना बनाना होगा। ऑलसन का यह भी कहना था, ‘पाकिस्तान को सभी पनाहगाह खत्म करनी होंगी और उन गुटों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी होगी जो पड़ोसी मुल्कों को निशाना बनाते हैं।’
कुछ सीनेटरों की राय थी कि पाकिस्तान भरोसेमंद साझेदार नहीं है और हक्क़ानी नेटवर्क का साथ देकर अफगानिस्तान में अमेरिका के खिलाफ काम कर रहा है। उसके जवाब में ऑलसन का कहना था, अगर पाकिस्तान इन गिरोहों के खिलाफ कार्रवाई करता है तो इससे इलाके में स्थिरता कायम होगी, पड़ोसी देशों और अमेरिका के साथ उसके ताल्लुकात बेहतर होंगे। लेकिन अगर पाकिस्तान ऐसा नहीं करता है तो वह पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा। ऑलसन ने हक्कानी नेटवर्क और भारत के खिलाफ काम कर रहे गुटों पर कार्रवाई न होने की एक वजह यह भी बताई कि पाकिस्तान देश के अंदर काम कर रहे चरमपंथी गुटों के साथ दूसरे गुटों के साथ भी एक नई जंग नहीं शुरू करना चाहता। पिछले महीनों में अमेरिकी कांग्रेस में पाकिस्तान के खिलाफ नाराजगी बढ़ी है और उसका असर एफ-16 लड़ाकू विमानों की बिक्री और तीस करोड़ डॉलर की मदद पर लगाई गई रोक पर भी नजऱ आया है।