पिछले दिनों ढाका हुए आतंकी हमले के बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी आ गई है। बांग्लादेश इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार मानता है, जबकि पाकिस्तान का कहना है कि वह खुद आतंकवाद का शिकार है और इसके पीछे उसका कोई हाथ नहीं है। बांग्लादेश पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश मानता है। उसका कहना है कि वैश्विक जगत पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करे। ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए भारत और बांग्लादेश के बीच क्या रणनीति होनी चाहिए साथ ही दोनों देशों के बीच सियासी और कारोबारी संबंघों पर अवामी लीग के वरिष्ठ नेता और शेख हसीना सरकार जहाजरानी मंत्री शाहजहां खान से ओपिनियन पोस्ट के विशेष संवाददाता अभिषेक रंजन सिंह की बातचीत।
बांग्लादेश भी आतंकवाद से महफूज नहीं रह गया है। ढाका की घटना के बाद यह साबित हो चुका है। वैसे इस हमले के पीछे आप किसका हाथ मानते हैं?
ढाका के होली आर्टिसन बैकरी पर हुआ हमला काफी दुर्भाग्यपूर्ण था। इसमें कई बेगुनाहों की मौत हुई। आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए एक खतरा बन चुका है और इससे निपटने के लिए सभी देशों को एकजुट प्रयास करना होगा। इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है नाम भले ही आईएसआईएस का सामने आ रहा हो। पाकिस्तान आंतकवाद की प्रयोगशाला बन चुका है। जिन देशों में आतंकी हमले होते हैं, उसका कनेक्शन पाकिस्तान से जरूर होता है। मुझे हैरानी होती है कि पाकिस्तान आतंकवाद के नाम पर क्यों अपनी कब्र खोद रहा है। दहशतगर्द किसी के नहीं होते बावजूद इसके पाकिस्तान उन्हें पनाह देता है। अब वक्त आ गया है कि विश्व बिरादरी आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान को अलग-थलग कर उसके ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगाए। बगैर इसके पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने नहीं आएगी।
कराची के मशहूर लाल शहबाज कलंदर सूफी दरगाह में बम धमाके हुए, जिसमें अस्सी से ज्यादा जायरीनों की मौत हो गई। पाकिस्तान तो खुद आतंकवाद से पीड़ित देश है फिर वह दहशतगर्दों पर लगाम क्यों नहीं लगाता?
दरगाह शहबाज कलंदर शरीफ में मारे गए लोगों को मैं श्रद्धांजलि देता हूं। यह घटना निहायत ही कायराना और गैर इंसानी है। दरअसल, पाकिस्तान में कट्टरपंथी वहाबियों का दख़ल बढ़ता जा रहा है। उनकी नजरों में सूफी परंपरा गैर इस्लामी हैं, इसलिए वहां सूफी दरगाहों को निशाना बनाया जा रहा है। ढाई-तीन साल पहले लाहौर के दाता दरबार में भी धमाके हुए थे, जिसमें कई बेगुनाहों की मौत हुई थी। भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में कई पुराने और मशहूर सूफी दरगाह हैं। सूफीवाद इस उपमहाद्वीप की पुरानी रवायत रही है, लेकिन वहाबियत फिलॉस्फी इन दरगाहों को इस्लाम के उसूलों के खिलाफ मानते हैं। यह सच है कि पाकिस्तान आज खुद आतंकवाद का शिकार है, लेकिन इस समस्या के लिए वह खुद जिम्मेदार है। पाकिस्तान के लिए यह एक नासूर बन चुका है। वहां की सेना और आईएसआई का एक बड़ा वर्ग खुद दहशतगर्दियों की हिमायत करता है। पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपने फायदे के लिए बढ़ावा दिया, लेकिन वही आतंकवाद अब पाकिस्तान को निगलने के लिए तैयार है। पाकिस्तान अपने दम पर आतंकवाद का खात्मा नहीं कर सकता, क्योंकि इसे लेकर वहां की सरकार और सेना में भी एक राय नहीं है।
भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक किया। आतंकवाद से निपटने के लिए मोदी सरकार की इस कार्रवाई को किस तरह देखते हैं?
इंडियन आर्मी का यह एक साहसिक फैसला था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आतंकवाद के मुद्दे पर सख्त नीति रखते हैं। ढाका में हुए आतंकी हमले पर भी उन्होंने दुख जाहिर किया था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरह वह कठोर फैसले लेने में सक्षम हैं। दुनिया अब इस सच्चाई से वाकिफ है कि भारत में होने वाली दहशतगर्दी के पीछे पाकिस्तान है। बेशक दोनों देशों के बीच कश्मीर विवाद को लेकर दशकों से तनाव है। लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को बढ़ावा दे। पाकिस्तान की यह नीति सार्क देशों के हित में नहीं है। इसकी वजह से इन देशों में अशांति का वातावरण पैदा होता है।
प्रधानमंत्री बनने बाद नरेंद्र मोदी बांग्लादेश आए और उन्होंने इसे ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति बताई। उनके शासन में दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कारोबारी रिश्तों में कितनी प्रगति हुई है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘विराट मानुष’ हैं। उनके कार्यकाल में बांग्लादेश और भारत के आपसी रिश्तों में काफी मजबूती आई है। प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों ने वर्षों पुराने ‘भूमि सीमा समझौते’ का समाधान किया। नतीजतन दोनों देशों के छिटमहल यानी एन्कलेव का आदान-प्रदान हुआ और वहां रहने वाले हजारों लोगों को नागरिकता मिली। इस समझौते के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच यातायात और द्वि-पक्षीय कारोबार में भी तेजी आई है। फिलहाल दोनों देशों के बीच हवाई, रेल और सड़क यातायात की सुविधा है। समुद्री मार्ग वाणिज्य और व्यापार के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। फिलहाल बांग्लादेश और भारत के बीच सामुद्रिक व्यापार कम होता है, लेकिन इसे बढ़ाने के लिए एक अहम समझौते पर दस्तखत हुए हैं। इसके तहत बंगाल की खाड़ी स्थित चिटगांव बंदरगाह और विशाखापत्तनम के बीच नियमित मालवाहक जहाज परिचालन को मंजूरी दी गई है। भविष्य में इस जलमार्ग का इस्तेमाल यात्री परिवहन के रूप में भी प्रयोग होगा। इससे व्यापार और पर्यटन दोनों में तेजी आएगी। भारत और बांग्लादेश के बीच आठ नए चेकपोस्ट बनाए जाएंगे, ताकि दोनों तरफ से होने वाले व्यापार और लोगों का आना-जाना सुगम हो। बांग्लादेश में रेडीमेड वस्त्रों का काफी बड़ा कारोबार है। ढाका की कई बड़ी भारतीय कंपनियां यहां के गारमेंट्स उद्योग में शामिल हैं।
बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं और उनके मंदिरों को नुकसान पहुंचाया जाता है। आखिर अवामी लीग सरकार ऐसी घटनाओं को रोकने में नाकाम क्यों हैं?
अल्पसंख्यकों पर हमला दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारी सरकार ऐसी घटनाओं पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाती है। बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों में हिंदुओं की आबादी सर्वाधिक करीब 11 फीसद है। यहां अल्पसंख्यकों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। सरकारी नौकरियों और राजनीति में भी उन्हें उचित भागादारी है। मेरे संसदीय क्षेत्र मदारीपुर में कुल तीन लाख मतदाता है, जिनमें पचास हजार हिंदू मतदाता है। यह सच है कि हालिया कुछ वर्षों से अल्पसंख्यकों खासकर हिंदू पुजारियों, लेखकों और ब्लॉगरों पर हमले और उनकी हत्याएं हुई हैं। लेकिन हमलावरों की गिरफ्तारी और उन्हें कानून सम्मत सजा भी मिले हैं। दरअसल, हिंदुओं पर होने वाले हमलों के पीछे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों का हाथ है। ये लोग बांग्लादेश को पाकिस्तान की तरह इस्लामिक देश और यहां शरियत कानून लागू करना चाहते हैं। वैसे भी बीएनपी प्रमुख बेगम खालिदा जिया का पाकिस्तान प्रेम कोई नया नहीं है। बीएनपी और जमात चाहती है कि बांग्लादेश पूरी तरह इस्लामिक मुल्क होना चाहिए, जहां कोई गैर मुसलमान नहीं रहे। उनका यह ख्वाब कभी पूरी नहीं होगा, क्योंकि यह बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की भूमि है। उनकी नजरों में बांग्लादेश पर जितना हक मुसलमानों का है, उतना ही हक हिंदुओं का है। 1971 के मुक्ति युद्ध के समय हिंदुओं की बड़ी संख्या मुक्ति वाहिनी में शामिल थे। हमारी अवामी लीग सरकार ने अल्पसंख्यकों की जमीन जायदाद की सुरक्षा के लिए एनेमी प्रॉपर्टी एक्ट (संशोधन) विधेयक को भी मंजूरी दी है। इसके तहत अल्पसंख्यकों से छीनी गई जमीनें उन्हें मिल सकेगी।
शेख मुजीब की हत्या को कई साल बीत गए, लेकिन इस हत्याकांड की कोई मुक्कमल जांच रिपोर्ट नहीं आई है, जबकि अवामी लीग कई वर्षों तक सत्ता में रही और अभी भी इसी की सरकार है?
यह कहना सही नहीं है कि बंगबंधु शेख मुजीब की हत्या के बाद गठित जांच समिति की रिपोर्ट नहीं आई है। 1999 में जांच कमिटी ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। उसके बाद युद्ध अपराध में शामिल जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी के कई समर्थकों को फांसी की सजा दी गई। बांग्लादेश में यह बात किसी से छुपी नहीं है कि बंगबंधु शेख मुजीब की हत्या में किनका हाथ था। पाकिस्तान के इशारे पर इस बर्बर घटना को अंजाम दिया गया। बंगबंधु की शहादत हमें प्रेरणा देती है। हमें उनके सपनों का बांग्लादेश बनाना है और प्रधानमंत्री शेख हसीना की अगुवाई में हमारी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है।
नेशनल एसेंबली के चुनाव में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी ने हिस्सा नहीं लिया, क्योंकि उन्होंने अवामी लीग पर चुनावी धांधली का आरोप लगाया था। क्या आगामी चुनाव में ये दोनों पार्टियां शिरकत करेंगी? अगर नहीं करेंगी तो बगैर विपक्ष के लोकतंत्र कैसा होगा?
चुनावों में निष्पक्षता नहीं है और इसमें धांधली होती है, यह सिर्फ बहानेबाजी है। दरअसल, बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी को अपनी हार का अंदाजा पहले हो गया था, इसलिए चुनाव लड़ने की बजाय इन्होंने इसका बहिष्कार कर दिया। इससे बांग्लादेश के लोकतंत्र पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अवामी लीग की सरकार में बांग्लादेश का चौतरफा विकास हो रहा है। यहां रहने वाले सभी समुदाय के लोगों को बराबरी का हक हासिल है। आप बीएनपी के पुराने शासन को याद कीजिए किस तरह उस वक्त बांग्लादेश में हिंसा और आगजनी का दौर था। हम चाहते हैं कि आगामी चुनाव में दोनों पार्टियां हिस्सा लें, ताकि चुनावी लोकतंत्र और मजबूत हो। हालांकि, अगले चुनाव में दोनों पार्टियों को चुनावी मैदान में उतरना होगा, वरना बांग्लादेश चुनाव अधिनियम के तहत दोनों दलों की मान्यता रद्द हो जाएगी।