सकीना इट्टू को कश्मीर में आयरन लेडी के तौर पर जाना जाता है। नूराबाद से नेशनल कांफ्रेंस की प्रत्याशी और पूर्व सामाजिक कल्याण मंत्री रही सकीना इट्टू पर करीब तेरह बार आतंकी हमला हुआ है और इन हमलों से बचकर वह सलामत निकली हैं। सकीना शुरू से ही आतंकियों के निशाने पर रहीं हैं।फारूक अब्दुल्ला सरकार में सकीना अकेली महिला विधायक और मंत्री रही। सकीना के रिहाईशी इलाके दमहाल हांजीपोरा में भी एक पुलिस स्टेशन को बुरहान की मौत के बाद प्रदर्शनकारियों ने जला दिया जिसमें करीब 50 लोग घायल हो गए। ओपिनियन पोस्ट संवाददाता निशा शर्मा ने सुलगते कश्मीर की हकीकत जानने की कोशिश की और बात की पूर्व नेशनल कांफ्रेंस मंत्री सकीना इट्टू से।
प्रदर्शनकारियों ने दमहाल हांजीपोरा पुलिस स्टेशन से हथियार लूटने के बाद 20 पुलिसकर्मियों को बंधक बना लिया और पुलिस स्टेशन को आग के हवाले कर दिया। क्या वजह मानती हैं आप अपने शांत इलाके में हुई अशांति की इस घटना की?
यह इलाका शुरू से ही शांत रहा है पिछले 20-25 सालों में यहां कोई ऐसी वारदात नहीं हुई लेकिन अचानक यह घटना क्यों हुई इसके बारे में साफ कहना मुश्किल है। लेकिन मैंने लोगों से बात की तो लोगों का कहना था कि वह शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन पुलिस ने उन पर कार्रवाई की जिसके वजह से मामला बिगड़ा और स्थिति जानमाल के नुकसान तक जा पहुंची।
कश्मीर के मिजाज में आते इस उबाल का क्या कारण है?
दरअसल,, कश्मीर मुद्दे को लेकर लोगों में गुस्सा है। लोगों को सरकार से शिकायत है कि कश्मीर मुद्दे पर बात नहीं की जा रही है। उसे मौजूदा सरकार ने ठंडे बसते में डाल दिया है। लोग चाहते हैं कि कश्मीर का मसला हल हो लेकिन इस मसले पर मौजूदा सरकार कुछ नहीं कर रही है लोगों को कोई हल होता नजर नहीं आ रहा है जिसकी वजह से लोग गुस्से में है और यही गुस्सा कश्मीर के शांत मिजाज को उबाल दे रहा है।
आप एमबीबीएस छोड़कर राजनीति में आईं इसके क्या कारण रहे?
देखिए मेरे पिता वली मोहम्मद इट्टू को आतंकियों ने 1994 अपनी गोली का निशाना बनाया था। वली नेकां के बड़े नेता थे और विधानसभा स्पीकर रह चुके थे। लोग उन्हे चाहते थे और चाहते थे कि मैं उनकी जगह लूं। यही वजह थी कि 1996 में मैंने मेडिकल की पढ़ाई को बीच में छोड़कर अपने पिता की विधानसभा सीट नूराबाद से चुनाव लड़ा और लोगों ने मुझे जीत दिलाई।
आप पर आतंकियों ने एक दर्जन से ज्यादा हमले किए हैं। कई बार आप गंभीर रूप से घायल भी हुईं लेकिन आपने हिम्मत नहीं हारी। डर लगता है ऐसे हमले होते हैं तो?
नेचुरली डर तो लगता है।जिन्दगी जाने का डर तो बना रहता है। 2001 में मेरे चाचा की भी आतंकियों ने हत्या कर दी थी। 2006 में मुझ पर हमला हुआ जिसमें पूर्व एमएलसी गुलाम नबी दार समेत पांच लोगों की मौत हो गई थी और मेरे काफिले के 41 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। कई घंटों तक में दहशत में रही थी, मुझे सुरक्षाबलों ने बचा लिया था। हालांकि उसके बाद में कई दिनों तक सो नहीं पाई थी। गोलियों की आवाज़े मेरे जहन से कई दिनों तक नहीं गई। लेकिन जब आपके साथ आवाम खड़ी होती है और अल्ला ताला का साथ हो तो हौंसला खुद ब खुद आ जाता है।
क्या लगता है आपको जलते कश्मीर को राहत पहुंचाने में मुफ्ती सरकार किस कदर कामयाब हो पा रही है?
सरकार कहीं नजर नहीं आ रही है। 1300 लोग जख़्मी हैं, कर्फ्यू लगा हुआ है। लोग घरों में है। अगर कोई बीमार है तो उसके लिए दवाई नहीं है। उसे अस्पताल पहुंचाने के लिए कोई सुविधा नहीं है। सरकार तो छोड़िए जिला प्रशासन अधिकारी तक लोगों का हाल जानने में नाकाम साबित हो रहे हैं। घरों की बिजली काट दी गई है लोग परेशान हैं लेकिन उनकी परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है। 2009 में जब ऐसे हादसा हुआ था तब हम लोगों से मिलने जाते थे। निशा जी लोग गालियां देते थे लेकिन फिर भी हम लोगों से मिलते थे। लेकिन मौजूदा सरकार को लोगों से कोई लेना-देना नहीं है। यही वजह है कि लोगों का गुस्सा बढ़ता है और ऐसे मामले कश्मीर को सुलगाते हैं और स्थिति बेकाबू हो जाती है।
मौजूदा सरकार ने ऐसा क्या नहीं किया जो सरकार को करना चाहिए था ?
सरकार ने अगर लोगों से बात की होती तो यह स्थिति नहीं बनती। सरकार को लोगों को कॉनफिडेंस में लेना चाहिए था लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। मौजूदा सरकार सो रही है। ना ही सरकार का कोई मंत्री काम कर रहा है ना ही खुद मुख्यमंत्री। सब बिजी हैं लेकिन पता नहीं कहां।