शब्दों के जादूगर गुलजार साहब फिल्म रंगून से लिखे गीत से चर्चा में हैं। फिल्म के गाने ब्लडी हेल को गुलजार साहब ने गीतबद्ध किया है। ‘ब्लडी हेल’ जैसे बोल गुलजार साहब को पढ़ने सुनने वालों के लिए हैरान करने वाले हैं ऐसे में प्रख्यात गीतकार-फिल्मकार गुलजार का मानना है कि समय के साथ बदलते फिल्मी संगीत में कुछ भी गलत नहीं है और व्यक्ति को इसे अपनाना चाहिए और इसे आत्मसात करना सीखना चाहिए।
गुलजार के फिल्म रंगून के लिखे गीत ‘ब्लडी हेल’ की तुलना उनके लिखे 60 के दशक के गानों से हो रही है जिसमें माधुरय था, शब्दों में सहजता थी ऐसे में गुलजार कहते हैं कि किसी फिल्म में किरदार के मिजाज के मुताबिक गाने लिखे जाते हैं और इन गानों की तुलना 50 और 60 के दशक के गानों से करना अनुचित है।
भाषा से हुई बातचीत में गुलजार कहते हैं, ‘‘ गाने फिल्म के मुताबिक होंगे। यदि कोई किरदार शराब के नशे वाला कोई गाना गाना चाहता है तो वह ‘दिल ए नादान.’ नहीं गाएगा, बल्कि ‘गोली मार भेजे में’ गाना गाएगा। किरदारों के मुताबिक भाषा बदलती है।’’ गुलजार ने कहा, ‘‘ समय बदलेगा और संगीत भी। हमारी रफ्तार बदली है, कपड़े बदले हैं, खाने की आदतें बदली हैं तो संगीत जस का तस क्यों रहना चाहिए? वह भी बदलेगा।’’