उत्तराखंड के मंत्री और कोटद्वार के विधायक डॉ हरक सिंह रावत का कहना है कि जल्दी ही कण्व ऋषि के आश्रम का स्वरूप बदलेगा और देश दुनिया के लोग इसे देखने आएंगे। ऐतिहासिक, पौराणिक और आस्था के प्रतीक इस स्थल को उसकी गरिमा और सौंदर्य प्रदान की जाएगी। राज्य सरकार इस स्थल को दर्शनीय बनाने के लिए तत्पर है और हर स्तर पर कदम उठाया जाएगा। उनका कहना है कि कण्व आश्रम और उसके आसपास के स्थलों को धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन के महत्व के रूप में विकसित किया जाएगा। उनसे हुई बातचीत के अंश:-
इतने महत्वपूर्ण स्थल की उपेक्षा क्यों हुई?
अब तक क्या हुआ, इस पर मैं कुछ नहीं कहूंगा। लेकिन क्षेत्र की जनता ने जब मुझे जनप्रतिनिधि चुना तो अपने प्रारंभिक कामों में मैंने इस स्थल का कायाकल्प करने की सोची है। मैं इस स्थल को उसका सम्मान दिलाना चाहता हूं। राज्य सरकार ने इस दिशा में प्रयास शुरू भी कर दिया है। अफसोस की बात यह है कि इस स्थल के महत्व के बारे में उत्तराखंड के लोग भी ज्यादा नहीं जानते हैं। लेकिन हम जिस तरह प्रयास कर रहे हैं, दुनिया के लोग इस स्थल की ओर उमड़ेंगे।
किस तरह की शुरुआत हो रही है?
देखिए, इस काम में वन और पर्यटन मंत्रालय मिलकर काम रह रहे हैं क्योंकि जमीन जंगल की है और उस पर काम वन विभाग अपनी तरह से करता है। इसे किस स्वरूप में लाना है पहले इसकी योजना बनाई गई है। इस आश्रम के पास नदी में एक झील बनाई जा रही है। सबसे पहले कोशिश मालिनी नदी में पानी लाने की है क्योंकि यह नदी लगभग सूख रही है। मालिनी नदी के तट पर एक सुंदर लंबा ट्रैकिंग रूट बनाया जाएगा। यह सैलानियों को प्रभावित करेगा। यहां की खासियत अंतराष्ट्रीय स्तर का चिड़ियाघर होगी। चिड़ियाघर स्थापित करने की प्रेरणा कण्व ऋषि के आश्रम से ही ली गई है जहां पशु-पक्षी स्वतंत्र रूप से विचरण करते थे। उस स्वरूप को लाने के लिए हम हर तरह से प्रयास कर रहे हैं।
पौराणिक महत्व की चीजों को किस तरह संजोएंगे?
इस पर हम इतिहासकारों, शोधकर्ताओं, पुरातत्ववेत्ताओं की मदद लेने जा रहे हैं। हमारी कोशिश है कि इस आश्रम के लिए वो सभी अनुकूल चीजें स्थापित की जाएं जिससे हम इसे एक आश्रम का स्वरूप दे सकें। बेहतर होगा कि यहां आए लोगों को महसूस हो कि वह किसी पौराणिक स्थल पर आए हैं। हम मूर्तियां, प्रस्तर खंड जो भी चीजें हैं उन्हें यहां लाएंगे। श्रीनगर विश्वविद्यालय या जहां कहीं भी इस गाथा से जुडी वस्तुएं हैं उन्हें यहां लाकर म्यूजियम का रूप दिया जाएगा। महाकवि कालीदास की प्रतिमा को भी यहां स्थान दिया जाएगा। दूसरे म्यूजियमों में राजा भरत से संबंधित जो दस्तावेज हैं उसे भी यहां लाने की कोशिश की जाएगी। इसके लिए व्यापक शोध किया जाएगा।
इस आश्रम के कायाकल्प की कब तक उम्मीद करें?
लगभग दो साल के अंदर यह काम हो जाना चाहिए। वन्य भूमि होने के चलते थोड़ी कानूनी अड़चनें हैं मगर क्या-क्या करना है इसके बारे में सरकार लगभग फैसला ले चुकी है।