अरुण पांडेय
हीरे के कारोबार में हीरे से भी ज्यादा कीमत है जुबान की। जुबान की कीमत खत्म तो चमकदार हीरा भी कंकड़ पत्थर के बराबर समझो। सूरत और मुंबई में हीरे के कारोबार में गारंटी मांगो तो जवाब यही मिलेगा कि पूरे धंधे का तंबू भरोसे के बंबू पर टिका है लेकिन नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने इसे ही उखाड़ फेंका और भरोसे को चकनाचूर कर दिया। हीरे के बिजनेस को करीब से देखिए तो पता चलेगा कि करोड़ों रुपये का कारोबार सिर्फ भरोसे पर होता है। तो क्या पंजाब नेशनल बैंक को भी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने इसी भरोसे के जाल में फांस लिया। जांच एजेंसियां इस बात की जांच में जुट गई हैं कि बैंक में गलती किससे हुई, कैसे 11,400 करोड़ रुपये का फ्रॉड होता रहा और बैंक सोता रहा?
मामा-भांजा दोनों जालसाज
किसी भी कारोबारी की साख के बारे में सबसे पहले और सबसे ईमानदार जानकारी उस धंधे से जुड़े लोग ही देते हैं। इस बिजनेस से जुड़े लोगों का कहना है कि मामा-भांजा यानी नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी दोनों के कारोबार करने के तरीके में शुरू से ही जालसाजी और धोखाधड़ी का अंदाज मिलता था। हीरा कारोबारियों के मुताबिक इस बिजनेस का एक ही मंत्र है साख और वही मामा-भांजा की सबसे बड़ी कमी थी। दुनिया के सबसे बड़े डायमंड हब सूरत के कई हीरा कारोबारियों के मुताबिक उन्होंने सालों पहले ही चोकसी के गीतांजलि ग्रुप से धंधा करना बंद कर दिया था क्योंकि वो पेमेंट करने में अक्सर गड़बड़ी करता था और जुबान की कीमत नहीं रखता था।
डायमंड कारोबारियों के मुताबिक अभी तो पिक्चर बाकी है, यह तो सिर्फ ट्रेलर है। चोकसी और नीरव ने सिर्फ बैंकों को ही नहीं बल्कि हीरा खरीदने वालों को भी जमकर चूना लगाया है। कोई हैरानी की बात नहीं जब पता चलेगा कि जिन लोगों ने नीरव मोदी और गीतांजलि के ब्रांड के नाम पर हीरे खरीदे हैं वो ठगे गए हैं, दाम और गुणवत्ता दोनों में।
कैसे हुआ घोटाला
यह घोटाला पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई स्थित ब्रैडी ब्रांच का है। हालांकि इस ब्रांच से रकम का लेन-देन नहीं हुआ बल्कि फर्जी गारंटी का लेनदेन हुआ और रकम भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से निकाली गई। दरअसल, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी की कंपनियों ने इस ब्रांच के अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी लेटर आॅफ अंडरटेकिंग (एलओयू) ली। एलओयू के आधार पर आयातकों को विदेशों में बायर्स क्रेडिट मिल जाता है जिससे उन्हें भुगतान करने में आसानी होती है। इसका मतलब एक तरह से गारंटी लेना होता है। मतलब बैंक ने गारंटी ली कि उस कंपनी को आप कर्ज दे सकते हैं और बैंक इसकी गारंटी लेता है कि अगर डिफॉल्ट हुआ तो रकम एलओयू जारी करने वाला बैंक चुकाएगा। फर्जी एलओयू के आधार पर इन लोगों ने सरकारी बैंकों की विदेशी शाखाओं से जमकर कर्ज लिया। वैसे तो ये घपला 2011 से चल रहा था पर 2016-17 के बाद इसकी रफ्तार तेज हो गई।
फर्जी एलओयू की जानकारी पीएनबी प्रबंधन को इसलिए नहीं लगी क्योंकि ये लोग कर्ज लेते थे लेकिन उसके बदले में ब्याज और कर्ज की किस्त चुका देते थे। इस तरह लेटर आॅफ अंडरटेकिंग का खेल लंबे वक्त तक चलता रहा। अगर पहरेदार बेईमान हो जाए तो खजाने को खाली होने से कौर रोकेगा और पीएनबी में यही हुआ। एलओयू और स्विफ्ट सिस्टम (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंकिंग फाइनेंशियल टेलिकम्युनिकेशन) के जरिये बैंक को चूना लगाने के लिए भी कम से कम तीन बैंक कर्मियों की मदद लेनी जरूरी है। इसी सिस्टम के जरिये बैंक दूसरे बैंकों को वित्तीय लेन-देन की जानकारी देते हैं। किसी भी बैंक में एक अधिकारी इसे तैयार करता है, दूसरा चेक करता है और तीसरा उसकी पुष्टि करता है। ये सिस्टम खासतौर पर आयात और निर्यात के लिए ज्यादातर इस्तेमाल होता है। यानी इसमें विदेश में किसी बैंक ब्रांच में लेन-देन होता है। इसलिए जो बैंक रकम देता है वो इसकी जानकारी संबंधित बैंक को भी भेजता है।
पंजाब नेशनल बैंक की ब्रैडी हाउस ब्रांच के रिटायर्ड डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी पर नीरव मोदी और मेहुल चोकसी को फ्रॉड में मदद करने का आरोप है। हालांकि बैंक के 20 से ज्यादा कर्मचारी अब गिरफ्तार हो चुके हैं। जाहिर है इसमें कई और कर्मचारी भी शामिल होंगे वरना सात साल तक घोटाला छिपा नहीं रहता।
कैसे लगा घोटाले का पता
पंजाब नेशनल बैंक ने 5 फरवरी को बताया कि 280 करोड़ रुपये का फ्रॉड सामने आया है। लेकिन दस दिन बाद ये बढ़ते-बढ़ते 11,400 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। हैरानी की बात ये है कि बैंक ने अपनी तरफ से घोटाले का पता नहीं लगाया बल्कि घोटाला करने वाले खुद ही ज्यादा के लालच की वजह से जाल में फंस गए। पीएनबी के मुताबिक इस साल 16 जनवरी को नीरव मोदी की कंपनी के कर्मचारी एलओयू बनवाने बैंक पहुंचे तो बैंक ने उनसे सौ फीसदी कैश मार्जिन मांगा यानी पूरी रकम के बदले गारंटी मांगी। इस पर उन कर्मचारियों ने विरोध किया और राज खोल दिया कि वो बिना किसी गारंटी और कैश मार्जिन के सालों से एलओयू बनवा रहे हैं। यह सुनने के बाद वहां मौजूद बैंक अधिकारियों के होश उड़ गए। जब उन्होंने रिकॉर्ड खंगाले तो सामने आया हजारों करोड़ रुपये का सबसे बड़ा बैंक घोटाला।
इसके बाद बैंक अधिकारियों ने नीरव मोदी की कंपनी के कर्मचारियों को बिना एलओयू दिए भेज दिया लेकिन मामले की अंदरूनी पड़ताल शुरू कर दी। 25 जनवरी से बैंक के अंदर ही मामले की तह खुलने लगी। फिर नीरव मोदी के मामा मेहुल चोकसी की गीतांजलि ग्रुप का भी नाम इस घोटाले में जुड़ गया। इसके बाद तो पिटारा ही खुल गया। आदित्य ईश्वरदास रसिवासिया और ईश्वरदास अग्रवाल का नाम भी इसमें जुड़ गया।
नीरव मोदी का खेल
नीरव मोदी पर्ल और डायमंड आयात करता था। भारत में उनकी प्रोसेसिंग होती थी और गहने तैयार किए जाते थे। फिर वह दुनियाभर में उसे बेचता था। पर्ल और रफ डायमंड आयात के लिए उसे रकम की जरूरत थी। विदेशी कर्ज सस्ता होता है इसलिए उसने एलओयू के जरिये इसे हासिल किया। कहानी में मोड़ तब आया जब उसने बिना कुछ गिरवी रखे, बिना कैश मार्जिन दिए एलओयू के आधार पर कर्ज ले लिया। जो सुविधा आयात करने के लिए दी गई थी उसका इस्तेमाल कर्ज लेने के लिए किया गया। आमतौर पर आयातक जिस बैंक से एलओयू लेते हैं उसी बैंक में वे फिक्स्ड डिपॉजिट भी कराकर रखते हैं और बैंक इसी के एवज में एलओयू जारी करता है। हैरान करने वाली बात ये है कि सात सालों में पीएनबी ने नीरव मोदी एंड कंपनी से कोई मार्जिन ही नहीं मांगा और यहीं से 11,400 करोड़ रुपये के घोटाले का जन्म हुआ। पीएनबीकी मुंबई ब्रांच ने 2011 में पहला एलओयू जारी किया। उसमें भरोसा दिया गया कि आप नीरव मोदी की कंपनी को रकम दे सकते हैं और बैंक इसकी गारंटी लेता है। बस क्या था कई भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं ने इस गारंटी के बदले बिना झिझक उसे पैसा दे दिया। नियम तो है कि पैसा पीएनबी के नॉस्ट्रो अकाउंट में आया होगा। हर बैंक नॉस्ट्रो अकाउंट रखता है जिसमें कारोबार के मकसद से विदेशी मुद्रा में आई रकम रखी जाती है। पीएनबी ने इस रकम से उस निर्यातक को भुगतान कर दिया जिससे नीरव मोदी ने माल (डायमंड) खरीदा था। होना तो ये चाहिए था कि नीरव मोदी इन रफ डायमंड और पर्ल को पॉलिश करता, प्रोसेस करता और ज्वैलरी एक्सपोर्ट करके पीएनबी को हर एलओयू खत्म होने से पहले ही रकम चुका देता। इसके बाद पीएनबी विदेशी बैंक को उसकी फीस, ब्याज समेत रकम लौटा देता। आयात-निर्यात में यही तरीका चलता है।
अगर ऐसा हो रहा होता तो कोई फ्रॉड नहीं होता लेकिन ऐसा लगता है कि नीरव मोदी ने पीएनबी को कभी पैसा चुकाया ही नहीं। वो आयात के नाम पर बैंकों से पैसा ले जरूर रहा था लेकिन शायद उस रकम का इस्तेमाल विदेश में संपत्ति जुटाने या दूसरे कामों या फिर अय्याशी के लिए कर रहा था। लेकिन सात साल तक वो इस सुविधा का इस्तेमाल कैसे करता रहा वो भी बिना रकम लौटाए? ये बात होश उड़ाने वाली है।
कर्ज चुकाने के लिए नया कर्ज
बैंकिंग सिस्टम में ऐसा अकसर होता है कि एक कर्ज चुकाने के लिए दूसरा कर्ज लिया जाता है। लेकिन ये सिस्टम बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता क्योंकि इसमें ब्याज ज्यादा होता है और जल्द ही विकल्प खत्म हो जाते हैं। ब्रैडी हाउस ब्रांच के अफसर गोकुलनाथ शेट्टी की मदद से एक एलओयू का पैसा चुकाने के लिए दूसरी एलओयू जारी कराई गई और इस तरह एलओयू का जाल सा बन गया। नीरव मोदी और मेहुल चोकसी एक के बाद एक नई एलओयू जारी करवाते रहे और इस तरह उनका कर्ज बढ़ता ही चला गया। ब्रैडी ब्रांच में जब तक गोकुलनाथ शेट्टी रहा तब तक मामा-भांजे का खेल बेरोकटोक चलता रहा। लेकिन शेट्टी पिछले साल रिटायर हो गया और उसकी जगह आए नए अफसर ने बिना मार्जिन नई एलओयू जारी करने से इनकार कर दिया। बस यहीं नीरव-मेहुल का पर्दाफाश हो गया।
घोटाला छिपा कैसे रहा
एलओयू की एवज में हर बैंक फीस भी लेता है, बैंक की बैलेंसशीट में ये बात छिपी कैसे रह गई? अगर फीस की रकम बताई गई थी तो किसी अधिकारी के कान क्यों नहीं खड़े हुए? एलओयू के बदले तय रकम हर उसी बैंक के नॉस्ट्रो अकाउंट में आती है जिससे बैंक उस निर्यातक को पेमेंट करता है जिससे आयातक ने माल खरीदा है। ऐसी रकम ट्रांसफर पर किसी की नजर क्यों नहीं पड़ी? क्या नीरव मोदी और मेहुल चोकसी आयात के नाम पर धोखा कर रहे थे और पूरी रकम अपनी ही फर्जी कंपनियों और खातों में डाल रहे थे?
नीरव मोदी जनवरी 2018 तक पीएनबी को उसकी फीस और दूसरे चार्ज चुका रहा था और सात साल से इतनी सारी एंट्री आॅडिटर्स और अकाउंटेंट की नजर से छिपी कैसे रह गई? रिजर्व बैंक भी समय-समय पर सभी बैंकों के नॉस्ट्रो अकाउंट की जांच करता रहता है लेकिन इस मामले में उससे भी चूक हो गई, उसकी नजर में ये बातें क्यों नहीं आर्इं? हालांकि रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को इस बारे में कई बार चेतावनी भी दी थी लेकिन साफ है कि पीएनबी ने इस चेतावनी की अनदेखी कर दी। इन सबके बावजूद सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये संभव है कि एक डिप्टी मैनेजर अकेला 11,400 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन करा दे और सिस्टम में किसी को पता न लगे?
अब क्या होगा
पूरा आयात और निर्यात कारोबार निगरानी में आएगा। आयातकों को सहूलियत देने के लिए सरकार और बैंकों ने एलओयू जैसी सुविधाएं दे रखी हैं लेकिन इनका गलत इस्तेमाल हो रहा है। कई फर्म तो सिर्फ ब्याज कमाने के लिए इसका फायदा उठा रही हैं। ऐसे कई मामले पहले भी आ चुके हैं जब आयात के फर्जी बिल बनाए गए और घोटालेबाजों ने अपने ही खातों में रकम ट्रांसफर करा ली। जेम्स और ज्वैलरी सेक्टर को भारतीय बैंकों ने दिसंबर 2017 तक 69,000 करोड़ रुपये का कर्ज दे रखा है। इस पूरे पर अब नए सिरे से बैंकों को आॅडिट करना होगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के बिना घोटाला मुमिकन नहीं है। पर ऐसा सिस्टम तैयार होना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता हो ताकि इस तरह का बड़ा ट्रांजेक्शन छिपा न रह सके। अगर ब्रैडी हाउस ब्रांच की इस कारगुजारियों के बारे में दूसरी ब्रांचों को निगरानी व्यवस्था दी जाती तो शायद नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे लोगों के घोटाले लंबे वक्त तक नहीं चलते। इस कांड ने एक बार फिर भारतीय बैंकों के कामकाज के तरीके और निगरानी व्यवस्था पर बड़े सवाल उठा दिए हैं। रिजर्व बैंक पर जिम्मेदारी है कि वो बैंकों को इस बारे में अगाह करे और उनके लिए सिस्टम तैयार करने की निगरानी करे।