प्रदीप सिंह।
गुजरात में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के साथ जो हो रहा है वह राजनीति तक सीमित नहीं है। एक बच्ची से बिहार के एक मजदूर के दुष्कर्म की दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने बड़ा रूप अख्तियार कर लिया है। उत्तर भारतीयों पर हमले हो रहे हैं। वे जान बचाने के लिए भागकर अपने प्रदेश लौट रहे हैं। हमला करने वालों में कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर की ठाकोर सेना सबसे आगे है। यह और चिंता की बात है। गुजरात में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। ऐसे में उसके नेताओं से ऐसे किसी काम की उम्मीद नहीं की जाती जो प्रदेश और अंतत: देश का अहित करे। गुजरात देश के सबसे विकसित और औद्योगीकृत राज्यों में है। विकास का गुजरात मॉडल 2014 लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की जीत का एक बड़ा कारण रहा है। राज्य में ऐसे भी उद्योग हैं जो लेबर इन्टेंसिव यानी ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले हैं। जाहिर है कि वहां कामगारों की मांग ज्यादा है। इस आधार पर गैर कृषि कामों के लिए मिलने वाली मजदूरी ज्यादा होनी चाहिए। पर गुजरात में यह आमदनी राष्ट्रीय औसत से दस फीसदी कम है। इस विरोधाभास की वजह यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार से कामगारों की आमद बहुत ज्यादा है। इसलिए गुजरात के उद्योगों को सस्ते मजदूर मिल जाते हैं। राज्य के उद्योगों के विकास में इसकी बहुत बड़ी भूमिका है। सस्ते श्रमिक गुजरात के उद्योगों को ज्यादा प्रतियोगी बनाते हैं। साल 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक प्रवासी श्रमिकों की आवक के मामले में गुजरात देश में दूसरे नम्बर पर है। ऐसे में इन मजदूरों का पलायन नहीं रुका तो गुजरात के उद्योगों में श्रमिकों पर होने वाला खर्च बढ़ जाएगा। यह स्थिति राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत नुकसानदेह होगी। जो लोग इन हमलों के पीछे हैं उन्हें पता है कि वे राज्य की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहे हैं। फिर भी पिछले दो हफ्ते से हमलों का सिलसिला रुक नहीं रहा। वैसे तो कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। पर कोई समस्या जब राजनीति का मुद्दा बन जाए तो सरकार का काम और कठिन हो जाता है। अल्पेश ठाकोर का वीडियो सामने आया है जिसमें वे लोगों को प्रवासी श्रमिकों के खिलाफ भड़का रहे हैं।
गुजरात पिछले तीन साल से ज्यादा समय से किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिल्ली आने के बाद से प्रदेश में शांति कम और अशांति का माहौल ज्यादा रहा है। पहले पाटीदार आंदोलन की आग में प्रदेश जलता रहा। इसकी वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की कुर्सी गई। उसके अगले साल नोटबंदी ने नकद पर चलने वाले कारोबार की कमर तोड़ दी। फिर जीएसटी के झटके ने राज्य के व्यापारी समुदाय को नाराज कर दिया। यह समुदाय भाजपा का परम्परागत वोट रहा है। उसे मनाने में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को पसीना छूट गया। इन सब मुद्दों की वजह से गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा को भारी मशक्कत करनी पड़ी। प्रधानमंत्री ने अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी। विधानसभा चुनाव के बाद से लग रहा था कि गुजरात धीरे धीरे पटरी पर आ रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री की समस्या यह है कि हर समय उनकी तुलना मोदी के कार्यकाल से होती है। प्रशासन और पार्टी संगठन पर मुख्यमंत्री की वैसी पकड़ नहीं है जैसी मोदी की थी। उत्तर भारतीयों पर हमले और उनके पलायन के मुद्दे पर सरकार को जिस सख्ती और मुस्तैदी से कदम उठाना चाहिए था, वैसा होता दिखा नहीं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गुजरात के मुख्यमंत्री से बात करनी पड़ी।
कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर साल 2017 के विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस में शामिल हुए थे। दरअसल उनके संगठन ठाकोर सेना का गठन हार्दिक पटेल के पाटीदार आंदोलन के विरोध के लिए हुआ था। अल्पेश तो कांग्रेस में शामिल हो गए पर हार्दिक बाहर से ही कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद से पार्टी में अल्पेश का कद काफी बढ़ गया गया है। वे गुजरात कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में शुमार किए जाते हैं। उनके भड़काऊ बयान से उत्तर भारतीयों के खिलाफ माहौल और ज्यादा बिगड़ा है। पर अल्पेश यह मानने को ही तैयार नहीं हैं कि स्थिति गंभीर है। उनके मुताबिक कुछ छिटपुट घटनाएं हुई हैं। अल्पेश के इस रवैये से ज्यादा चिंताजनक इस पूरे वाकये पर राहुल गांधी की प्रतिक्रिया है। राहुल गांधी ने एक ट्वीट में कहा कि रोजगार न मिलने की वजह से गुजरात के युवकों में निराशा है। सरकार रोजगार के अवसर नहीं जुटा पा रही है इससे युवकों में नाराजगी है जो प्रवासी श्रमिकों पर हमले के रूप में दिख रही है। राहुल गांधी का यह बयान एक तरह से उत्तर भारतीयों पर हमले को जायज बताता है। यह बहुत ही खतरनाक और चिंताजनक स्थिति है क्योंकि सरकार की रोजगार के अवसर पैदा कर पाने की नाकामी उत्तर भारतीय श्रमिकों के खिलाफ हिंसा का बहाना नहीं हो सकती। ऐसा करने से तो राज्य में रोजगार के जो अवसर हैं वे भी कम हो जाएंगे क्योंकि इन श्रमिकों के पलायन का सीधा असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। राज्य की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाकर राहुल गांधी और उनकी पार्टी किसका भला करना चाहती है। कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी से क्षेत्रीय दल जैसे व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती, जो तात्कालिक और छोटे राजनीतिक फायदे के लिए ऐसी विभाजनकारी हरकतें करते हैं। कारण कोई भी हो उसके लिए किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता। यह बात देश की सबसे पुरानी पार्टी को दूसरे राजनीतिक दलों को समझानी चाहिए। पर यहां तो वह इसे सही ठहराने की कोशिश कर रही है।
गुजरात की घटनाएं पूरे देश के लिए चिंता का सबब हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ ऐसे हिंसक अभियान कई बार चलाए हैं। गुजरात जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में यह बीमारी नई है। देश का संविधान प्रत्येक देशवासी को देश के किसी हिस्से में कामकाज करने या बसने का अधिकार देता है। कोई राजनीतिक दल या सरकार इसे रोक नहीं सकते। पर ऐसा करने के लिए सकारात्मक स्थितियां बनाना और हर नागरिक को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। यह उनकी जिम्मेदारी है कि लोग सुरक्षित महसूस करें। प्रवासी श्रमिक किसी भी राज्य के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। उन्हें पलायन के लिए मजबूर करके राज्य उन श्रमिकों से ज्यादा अपना नुकसान करते हैं। कांग्रेस को शायद लग रहा है कि इससे न केवल गुजरात की सरकार के लिए मुश्किल खड़ी की जा सकती है बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए उत्तर भारत और खासतौर से वाराणसी में प्रतिकूल माहौल बनाया जा सकता है। किसी भी राजनीतिक दल को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि मतदाता इतना नासमझ होता है कि इन बातों को समझ न पाए। वह राजनीतिक दलों और नेताओं का छिपा हुआ चेहरा भी देख लेता है। किसी ने गलत नहीं कहा है-ये पब्लिक है, सब जानती है। हिंसा और विभाजन की राजनीति क्षण भंगुर होती है। ऐसी राजनीति करने वाले विरोधी से ज्यादा अपना नुकसान करते हैं।
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