मोहन सिंह।
पांच सौ और एक हजार रुपये के पुराने नोट बंद होने का असर एक महीने बाद जमीनी स्तर पर दिखने लगा है। अब यह दूसरे दौर में प्रवेश कर गया है। आम आदमी पर ठंड और बाजार की सुस्ती की दोहरी मार पड़ रही है। पहले दौर में लोगों में उम्मीद जगी थी कि उनके जीवन में कुछ नया होने जा रहा है। कोई है जो उनके लिए कुछ करने की दिशा में पहल कर रहा है। यह कोशिश कब, कितना और कैसे कामयाब होगी इसकी चिंता उसे नहीं है। मगर करेंसी की सप्लाई सामान्य नहीं होने से लोगों की दिक्कतें अब बढ़ने लगी है। हालांकि तमाम परेशानियों के बावजूद आम आदमी अभी नाउम्मीद नहीं हुआ है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता डीपी त्रिपाठी कहते हैं, ‘आम आदमी यह समझ रहा है कि धन्नासेठों के खिलाफ किसी सरकार ने पहली बार हल्ला बोला है। लंबी अवधि में इसका फायदा आम जन को मिलेगा।’ बनारस के लोहता जैसी जगहों पर खाता खुलवाने, पैसा निकालने और पुराने नोटों की वापसी के लिए सुबह आठ बजे से ही बैंकों के सामने लंबी कतारें लगनी शुरू हो जाती है। लोहता और बजरडीहा जैसी जगहों पर जहां बुनकरों की तादाद ज्यादा है वहां बैंकों और एटीएम के सामने लगी लंबी कतारें इस बात की गवाह है कि बनारस के साड़ी उद्योग में लेनदेन की पुरानी पद्घति अभी चल रही है। हालांकि बुनकरों के बावनी के सरदार अब शरीयत आधारित बैंक खोलने की मांग कर रहे हैं। शरीयत के मुताबिक ब्याज लेना और देना दोनों अपराध माना जाता है। इसलिए इस समाज के लोगों का काम ज्यादातर नकदी में ही होता है।
नोटबंदी से दिहाड़ी मजदूरों पर भी असर पड़ रहा है। शहर के गुरुधाम चौराहे, मडुवाडीह और डीएलडब्ल्यू के आसपास के इलाके जहां मजदूरों की मंडियां सुबह से ही लगती है वहां मजदूर दिनभर काम के बिना बैठे रहते हैं। लोगों के पास मजदूरों को भुगतान करने के लिए नकदी नहीं है इसलिए उनसे काम नहीं करवा रहे हैं। काम नहीं मिलने की वजह से असंगठित मजदूरों की हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। यह दौर कब तक चलेगा यह बताने की स्थिति में कोई नहीं है। हालांकि स्थायी मजदूरों को इस फैसले से खुशी है क्योंकि अब उनका भुगतान सीधे उनके बैंक खाते में पहुंचेगा। लोहता में कंक्रीट के स्लीपर बनाने के काम में लगे बिहार और झारखंड से आए मनोहर, श्याम और कन्हैया जैसे मजदूरों को खुशी इस बात की है कि अब उनकी पगार बिना किसी हुज्जत और हीलाहवाली के सीधे उनके खाते में पहुंच जाएगी। मजदूरों के मेठ और कारखाने के मालिक पगार के वक्त उनसे हुज्जत करते हैं। खेती-बाड़ी और धान की बिक्री के बारे में पूछने पर इन मजदूरों ने बताया, ‘स्थानीय सोसायटी ने इस बार बीज सवाई (एक के बदले सवा) पर दिया था। धान की इस साल अच्छी पैदावार हुई है। उसे सोसायटी पर ही दे आया हूं। एक-दो महीने में वहां से पैसा मिल जाएगा।’ गांवों में आम आदमी के लेनदेन का यह परंपरागत तरीका रहा है। इन तरीकों से आम आदमी अब उब चुका है क्योंकि कई बार इसके जरिये भुगतान में देरी हो जाती है। अब वह इसमें बदलाव चाहता है। यही वजह है कि इस दिशा में जब केंद्र सरकार की ओर से कदम उठाया गया तो वे उसका समर्थन कर रहे हैं।
पीयूसीएल के राष्ट्रीय नेता चितरंज सिंह कहते हैं, ‘नोटबंदी की मुहिम में जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साथ दे रही है। रही बात वामपंथी दलों के विरोध की तो जनता उनके साथ कहां खड़ी दिख रही है। वे चाहे जो कहें मगर उनके कहने का जनता पर कितना असर पड़ रहा है?’ आमतौर पर वामदल जनता के सवाल पर गोलबंद होकर सड़क पर उतरते हैं मगर विडम्बना देखिए कि 28 नवंबर को भारत बंद के दौरान यह सिर्फ रस्म अदायगी भर रह गई। उत्तर प्रदेश में लोहिया की विरासत के दावेदारों का भी यही हश्र हो रहा है। संसद में सपा सांसद रामगोपाल यादव नोटबंदी के खिलाफ दहाड़ तो रहे हैं मगर सड़क पर उतरने की पार्टी की हिम्मत नहीं हो रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बैंकों की कतार में लगे यूपी के लोगों के मरने पर दो लाख रुपये मुआवजे का ऐलान तो कर दिया मगर नोटबंदी के मुद्दे पर ममता बनर्जी का साथ देने से कतरा गए। ऐसे मौके पर डॉ. राममनोहर लोहिया याद आ रहे हैं। उन्होंने कहा था, ‘संसद आवारा हो जाती है जब सड़क पर संघर्ष नहीं होता है।’ संसद के शीतकालीन सत्र में क्या हुआ यह सबको मालूम है मगर क्यों हुआ यह कम ही लोगों को मालूम है। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में बातचीत की गुंजाइश ही नहीं बनी।
बैंकों और एटीएम की लंबी कतारों में नोटबंदी की जलालत झेल रहे लोग एक दूसरे से अपना दुख साझा कर रहे हैं। नकदी संकट के इस दौर में सब्जी उत्पादकों और विक्रेताओं की जैसे शामत आ गई है। बेहतर रखरखाव न हो तो सब्जियां जल्दी खराब हो जाती है। ऐसे में उत्पादक और विक्रेता इसे कम कीमत पर बेचने को मजबूर हैं। बीएचयू गेट लंका के सामने सब्जी का ठेला लगाने वाले मंगरू का कहना है कि कम कीमत के बावजूद ग्राहक उनके पास फटक नहीं रहे। वहीं कॉलोनियों में घूम-घूम कर सब्जी बेचने वाले तिलकधारी का कहना है कि सब्जी के इस मौसम में भी लोग कम सब्जी खरीद रहे हैं। पहले जहां प्रति किलो पांच रुपये कमाई हो जाती थी अब तीन रुपये ही हो रही है। नए नोटों का प्रचलन बाजार में कम होने के बारे में भारतीय स्टेट बैंक के एक अधिकारी का कहना है, ‘लोग नए नोट खर्च करने की बजाय दबा कर रख रहे हैं। हालांकि पेट्रोल पंपों के जरिये नए नोट बैंकों में वापस आ भी रहे हैं मगर उस मात्रा में नहीं जितनी आनी चाहिए।’ यह भी देखा जा रहा है कि 500 रुपये के नए नोट अभी बाजार में उतनी मात्रा में नहीं आ पाए हैं जिसकी वजह से छुट्टे की दिक्कत हो रही है। दो हजार रुपये के नए नोट से कम सामान खरीदना लोगों को भारी पड़ रहा है। कम सामान लेने पर ज्यादातर दुकानदार दो हजार रुपये का नोट लेने से मना कर रहे हैं।
नोटबंदी उन परिवारों के लिए भी मुसीबत बनती जा रही है जिनके घर में शादी है। बैंकों से निर्धारित सीमा से अधिक रकम मिल नहीं पा रही है इसलिए कई बैंकों में दौड़ लगानी पड़ रही है। बनारस आए गोरखपुर के जनार्दन यादव ने बताया, ‘पिछले दिनों घर में शादी थी। पैसे निकालने के लिए चार लड़कों को बैंकों की दौड़ लगानी पड़ी तब जाकर पैसे का इंतजाम हुआ। नसबंदी ने इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल किया था नोटबंदी मोदी सरकार को ले डूबेगी।’ इस फैसले से कितना नफा-नुकसान हुआ इसकी तस्वीर अभी साफ नहीं है मगर इतना तय है कि मोदी उस तबके को यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं जो भाजपा के पाले में नहीं रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि मोदी उनके लिए कुछ कर रहे हैं। चौखंडी रेलवे स्टेशन के पूर्वी फाटक पर मिले कल्पनाथ बताते हैं, ‘पिछले साल जीरो बैलेंस वाला जनधन खाता खुला। अचानक इन खातों में पैसे कहां से आ रहे हैं यह सबको मालूम है। गरीबों के लिए अच्छा काम हुआ है। धनी परेशान है।’ जनधन खातों के दुरुपयोग की शिकायतें खूब आ रही हैं। आगरा में मोदी के इस ऐलान के बाद कि इन खातों में आए पैसे के बारे में वे सोच रहे हैं से आम जनों में उम्मीद जगी है तो उन लोगों की धुकधुकी बढ़ गई है जिन्होंने इन खातों में पैसे जमा कराए हैं। इस श्रेणी में दबंग और नक्सली भी हैं। झारखंड में एक निजी कंपनी में बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर कार्यरत बीके सिंह बताते हैं, ‘झारखंड में नक्सलियों ने बैंक कर्मचारियों को पीट-पीट कर 30-30 हजार रुपये इन खातों में जमा कराए हैं। गरीब और भोले-भाले आदिवासी डर से यह बता भी नहीं सकते कि ये पैसे किसके हैं और जमा कराने से मना भी नहीं कर सकते।’ इन शिकायतों की जांच और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम केंद्र सरकार को करना होगा।