पार्टी बनाकर फंस गए रजनीकांत!
तमिल फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत ने जब राजनीति में कदम रखने का निर्णय लिया था, तो ऐसा लग रहा था कि वह साल 2019 में चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उन्होंने अचानक न लडऩे का ऐलान कर दिया. जोर-शोर से अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले रजनीकांत ने शायद अपनी पार्टी बनाकर भूल कर दी. अकेले चुनाव लडऩे की स्थिति में वह हैं नहीं और भाजपा ने उनकी पार्टी को तवज्जो नहीं दिया. ऐसे में उन्हें चुनाव न लडऩे का निर्णय लेना पड़ा. कहा जा रहा था कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी या भाजपा के साथ तालमेल करेगी. लेकिन, भाजपा ने उनसे बात नहीं की. असल में भाजपा नेता चाहते थे कि रजनीकांत उनकी पार्टी में शामिल हों, लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. भाजपा ने राज्य में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन कर लिया. यही नहीं, भाजपा ने तमिलनाडु में पीएमके, डीएमडीके, पीटी, ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस के साथ भी गठबंधन कर लिया. ऐसे में रजनीकांत के लिए अकेले चुनाव लडऩा मुश्किल हो रहा था. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी रजनी मक्कल मंद्रम लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेगी और किसी पार्टी का समर्थन भी नहीं करेगी.
भाजपा के लिए समस्या बने नारायण राणे
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के कारण भाजपा की मुसीबत बढ़ती नजर आ रही है. राणे को पलटी मारने की आदत है. उन्होंने शिवसेना और भाजपा के बीच बढ़ती दूरी को देखते हुए भाजपा के साथ आने का निर्णय लिया था, लेकिन दोनों के बीच गठबंधन हो जाने के बाद वह भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन गए हैं. शिवसेना ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन बाद में उन्होंने इस पार्टी से किनारा कर लिया और कांग्रेस-एनसीपी सरकार में मंत्री बन गए. अब उन्होंने महाराष्ट्र स्वाभिमानी पक्ष नामक अपनी पार्टी बना रखी है और खुद भारतीय जनता पार्टी से राज्यसभा सांसद हैं. भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन होने के बाद उन्होंने घोषणा की कि उनकी पार्टी हर उस सीट पर उम्मीदवार उतारेगी, जहां से शिवसेना का उम्मीदवार होगा. ध्यान रहे, भाजपा से शिवसेना की नाराजगी का एक कारण राणे भी रहे हैं. शिवसेना नेता चाहते हैं कि भाजपा राणे को समझाए. अगर राणे चुनाव से हटते हैं, तो वह इसकी बड़ी कीमत वसूलेंगे. विधानसभा सीटों को लेकर वह अच्छा-खासा मोलभाव कर सकते हैं.