तीन बार तलाक कह कर तलाक लेने की प्रथा को लेकर मुस्लिम लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का रूख करने का मन बना लिया है। बोर्ड का कहना है कि वह इस प्रथा में किसी भी तरह के बदलाव या छेड़छाड़ को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में जाकर विरोध करेगा।
दरअसल, उत्तराखंड की शायरा बानो ने तीन बार तलाक कह कर तलाक लेने की प्रथा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जिसमें इस प्रथा को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी।
अदालत ने शायरा बानो की इस याचिका को स्वीकार कर लिया था और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा पर भी गौर करने की बात कही थी। इस मामले का मुस्लिम लॉ बोर्ड ने कड़ा विरोध किया है और इसमें विरोधी पक्ष बनने का फैसला किया है। बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी हैं। जिलानी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड के विरोधी पक्ष बनने की अपील को मंजूर कर लिया है।
बता दें कि इससे पहले 1985 में इंदौर की शाह बानो ने भी इस मामले में उच्चतम न्यायालय में केस किया था। शाह बानो की महिला जो की मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली एक मुस्लिम महिला थीं। 62 साल की उम्र में उनके पति ने उन्हें तलाक दे दिया था दिया। उस वक्त उनके पांच बच्चे थे रोजगार का कोई जरिया नही था। उन्होंने तलाक के बाद अपने पति से गुजारा भत्ता मांगा था। लेकिन पति ने देने से मना कर दिया था । बानो मामले को लेकर कोर्ट गई , जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया था। न्यायालय ने शाह बानो के तर्क को स्वीकार करते हुए 23 अप्रैल 1985 को उनके पक्ष में फैसला दे दिया था। फिर, राजीव गांधी सरकार में मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 बना जिसके तहत मुस्लिम महिलाओं से गुजारा भत्ता का हक छीन लिया गया। वहीं इस अधिनियम के लागू होने के बाद शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बाद में खारिज भी कर दिया गया था।