तमिलनाडु की कल्कि सुब्रमण्यम आज एक ऐसा नाम है जिसे देश ही नहीं दुनियाभर में पहचान मिली है। वह सामाजिक कार्यकर्ता हैं, कवियत्री हैं, लेखिका हैं, एक्टर हैं और उससे भी आगे वह ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक उम्मीद की किरण हैं। कल्कि समाज की उन सभी धारणाओं को तोड़कर आगे बढ़ी हैं जो ट्रांसजेंडर को एक स्थापित छवि में देखता है। वह सफल हैं और उनकी सफलता समाज को अपना नजरिया बदलने के लिए बाध्य करने के साथ ट्रांसजेंडर समुदाय को आगे बढ़ने का हौसला देती है। उन्हें हाल ही में लॉरियल पेरिस एंड एनडीटीवी ने वुमेन आॅफ द वर्थ सम्मान से नवाजा। उनसे संध्या द्विवेदी की बातचीत के प्रमुख अंश :
ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन एंड राइट) विधेयक, 2016 के बारे में आपकी क्या राय है?
मैं बेहद उत्साहित थी कि सरकार एक सकारात्मक कदम उठाने वाली है मगर इस विधेयक के आने के बाद मेरे हाथ निराशा ही लगी। सबसे पहली बात ट्रांसजेंडर्स को इसमें सही ढंग से परिभाषित ही नहीं किया गया। पहली जरूरत तो ट्रांसजेंडर समुदाय को सही ढंग से जानने-समझने की है। पहला कदम ही अस्पष्ट है। यह विधेयक सुरक्षा की बात तो करता है लेकिन यह स्पष्ट नहीं करता कि स्कूल में ट्रांसजेंडर बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव, मौखिक और शारीरिक हिंसा से कैसे सुरक्षा करेंगे। शिक्षा और रोजगार के मौकों के बारे में भी स्पष्टता नहीं है। स्कूल में ही शिक्षा छोड़नी पड़ेगी तो आगे जाने के रास्ते ही बंद हो जाते हैं। आरक्षण के बारे में भी स्पष्टता नजर नहीं आती। कुल मिलाकर यह विधेयक निराश करने वाला है।
भारत में ट्रांसजेंडर्स की मौजूदा स्थिति के बारे में आप क्या सोचती हैं?
नब्बे प्रतिशत ट्रांसजेंडर्स आज भी अपने परिवारों द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाते हैं। यहां तक कि ट्रांसजेंडर समुदाय के बीच भी कई बार स्थापित और वरिष्ठ लोगों द्वारा कम उम्र के बच्चों को प्रताड़ित किया जाता है। मतलब अभी भी समाज में ट्रांसजेंडर्स को लेकर स्वीकार्यता कम ही है।
आपके परिवार में जब पता चला कि आप ट्रांसजेंडर हैं तो क्या प्रतिक्रिया थी?
बचपन से ही मेरे भीतर लड़कियों के गुण थे। मेरे मां-बाप को यह पता था। लेकिन जब मैं एक औरत के रूप में सामने आई तो परिवार के लिए चौंकाने वाला था। मेरी मां को मुझे इस पहचान के साथ स्वीकार करने में थोड़ा वक्त लगा। मैंने उन्हें भरोसा दिया कि मैं अपनी इस नई पहचान को सम्मानजनक दर्जा समाज में दिलाऊंगी।
क्या आप राजनीति में आना चाहती हैं? किसी राजनीतिक पार्टी ने कभी आपसे संपर्क किया है?
हां, बिल्कुल मैं आना चाहती हूं। मुझसे तमिलनाडु की कुछ पार्टियों ने संपर्क भी साधा लेकिन उनके अपने एजेंडे हैं। मेरी सोच उन पार्टियों की सोच से अलग है। मैं इंतजार कर रही हूं एक सही मौके का। मिलेगा तो जरूर उतरूंगी राजनीति में क्योंकि राजनीति में प्रतिनिधित्व होगा तो ट्रांसजेंडर समुदाय के हितों की रक्षा भी होगी।
आप एक पत्रकार भी हैं। आपको क्या लगता है कि मीडिया में आजकल ट्रांसजेंडर्स को जैसा दिखाया जा रहा है, उनकी छवि बनाई जा रही है, वह सही है?
मीडिया में आजकल ट्रांसजेंडर्स और उनके मुद्दों को मिल रही कवरेज को लेकर मैं बहुत खुश हूं। मुझे लगता है कि चीजें काफी बदली हैं और बदल रही हैं। मीडिया बेहद संवेदनशील हुआ है और ट्रांसजेंडर को उसके वास्तविक रूप में स्वीकार भी किया है।
ट्रांसजेंडर समुदाय में आपका कोई रोल मॉडल है?
हां, भारतनाट्यम डांसर और गायक नर्तकी नटराज, आशा किरण, अमेरिका की ख्याति प्राप्त ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट कैलपरनिया एडम्स मेरी आदर्श हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय से अलग सुष्मिता सेन, लेडी डायना और मेरी मां राजमणि मेरी आदर्श हैं।
आपने फिल्म भी की है। कुछ बताएंगी इस फिल्म के रोल के बारे में?
हां, मैंने फिल्म नर्तकी में लीड रोल किया है। फिल्म में मैंने ट्रांसजेंडर वुमेन का बेहद बोल्ड किरदार निभाया है। इस फिल्म में मेरा नाम कल्कि ही है। दर्शकों ने इसे काफी सराहा। इसे 2012 में नार्वे तमिल फिल्म फेस्टिवल में सामाजिक जागरूकता फैलाने के लिए सम्मानित किया गया था। उसके बाद मुझे कई आॅफर भी आए पर मुझे जब तक मेरी आत्मा को सुकून देने वाला रोल नहीं मिलेगा मैं तब तक फिल्म नहीं करूंगी। ऐसे आॅफर का मुझे इंतजार है।
अपनी कविता के बारे में कुछ बताएं, आपके पसंदीदा कवि/कवियत्री कौन हैं?
मेरी कविता को एमए तमिल के शैक्षिक पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है। कई कविताएं मैं लिख चुकी हूं। मेरी पहली कविता संग्रह है कुरिअरुथियन (फेलस, आई कट)। मेरे पसंदीदा कवि उमर खय्याम और खलील जिब्रान हैं।
आज आप सफल हैं। कैसा महसूस करती हैं?
जन्मजात पहचान से असली पहचान पाने के बीच मुझे कठिन दौर से गुजरना पड़ा। वह दौर मेरे लिए अंतरद्वंद्व से भरा था। लेकिन अब मैं अपनी असली पहचान के साथ जीने के लिए आजाद हूं। मैं खुद को मुक्त महसूस करती हूं।