बीजिंग से जय प्रकाश पांडे।
चीन का त्रिघाटी बांध न केवल बिजली उत्पादन के लिए बल्कि पर्यटन और नदी से होने वाले व्यापार के लिए भी जाना जाता है। शीलिंग घाटी के जनजाति समुदाय की शादी की परंपरा पर्यटकों को खासी पसंद आती है। पर्यटकों में से ही युवतियां दूल्हा चुनती हैं और शादी भी होती है। परंपरा के अनुसार शादी के बाद दूल्हे को ससुराल में ही रुकना होता है। यह बात अलग है कि न तो यहां यह दूल्हा रुकता है और न ही दुल्हन उसके साथ जाती है।
प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर उपयोग करना चीन से सीखा जा सकता है। चीन ने यांगत्ची नदी में त्रिघाटी बांध बनाकर न केवल बाढ़ के खतरे को कम किया है बल्कि नदी आर्थिक गलियारा भी बनाया है। इन घाटियों को पर्यटन के लिए भी विकसित किया है। बिजली उत्पादन की बात करें तो 22 हजार मेगावाट क्षमता वाला यह दुनिया का सबसे बड़ा बांध है।
यह बांध हुपेई राज्य के यीचांग शहर के पास छुथांग, वू और शीलिंग घाटियों के मध्य में है। इस विशाल बांध से 13 लाख लोगों का विस्थापन हुआ था। बांध बनाने के लिए खाली कराए गए गांवों में से जो डूब क्षेत्र में आने से बच गए उनको सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। इन घाटियों में पर्यटकों के आने जाने के लिए 400 सीटर नावें चलती हैं। गांवों में दुकान और रेस्टोरेंट भी हैं।
नाव से उतरने के बाद शीलिंग घाटी में करीब पांच किलोमीटर का राउंड है। बांध बनने से पहले यहां जनजाति के लोग रहते थे। इस रास्ते में सबसे पहले नाव पर रंगीन छतरी के साथ एक युवती खड़ी मिलती है। पुराने समय में यहां युवतियां दूल्हे का इंतजार इसी तरह करती थीं। पसंद आने पर दूल्हे को अपने साथ घर ले जाती थीं। विवाह के बाद सात महीने तक दूल्हे को ससुराल में ही रहना पड़ता था। हालांकि यह लड़की दूल्हा तो नहीं चुनती है मगर संरक्षित गांव में पहुंचने पर एक घर सजा हुआ मिलता है। आंगन में दुल्हन के लिए डोली भी रखी गई थी। नाव में साथ आए सभी पर्यटकों के पहुंचते ही वाद्य यंत्र बजने लगते हैं। इसी बीच घर के भीतर से छह लड़कियां आंगन में पहुंच दुल्हन की सुंदरता का परिचय देती हैं। दुल्हन का पिता अपनी परंपरा के बारे में बताता है। इसके बाद ये लड़कियां भीतर जाती हैं और दुल्हन के साथ बरामदे पर खड़ी हो जाती हैं। दुल्हन के हाथ में लाल रंग का कपड़ा होता है। वह इसको पर्यटकों के ऊपर फेंकती है। कपड़ा पाकिस्तानी युवक जमीर अरशदी पकड़ लेता है। उसको दूल्हे के कपड़े पहनाए जाते हैं और शादी की रस्म भी की जाती है। हालांकि शादी के कुछ देर बाद दूल्हा-दुल्हन अलग हो जाते हैं। जनजाति की सांस्कृतिक परंपरा को समझाने का यह रोचक अंदाज था। विवाह के अलावा नदी किनारे कपड़े धोने का अभिनय करती महिलाएं, जंगल में बांसुरी की धुन और पहाड़ियों से आरपार संगीत के माध्यम से होने वाला संवाद पर्यटन को जीवंत बनाता है। नाव की यात्रा और गांव का रंगमंच पर्यटकों को तीन घंटे तक बांध देता है। चीन में पर्यटन का यह अनोखा प्रयोग है। बताते हैं कि इस नाट्य मंडली के कलाकारों के पूर्वज इसी गांव के बाशिंदे थे।
किस तरह बांध निर्माण किया गया इसे जनता को बताने और इसके लिए खाली कराए गए गांवों की सभ्यता और संस्कृति को जिंदा रखने के लिए प्रदर्शनी भवन भी बनाए गए हैं। इनमें एलईडी से भी अतीत को दिखाया जाता है।
यांगत्ची नदी में बोटिंग भी पर्यटकों को आकर्षित करती है। बोटिंग पर्यटन विभाग की कमाई का अच्छा साधन भी है। यीचांग शहर के पर्यटन विभाग की डायरेक्टर लू निखुवा कहती हैं, ‘शहर से बांध तक जाने के लिए 30 शटल बसें चलाई जा रही हैं। चीनी नागरिकों से बांध में घूमने का टिकट नहीं लिया जाता है जबकि विदेशियों के लिए टिकट 150 युआन है। 2016 में इस घाटी क्षेत्र में 5.6 करोड़ पर्यटक आए।
त्रिघाटी बांध से 2012 से बिजली उत्पादन शुरू हुआ। यांगत्ची नदी की बाढ़ से चीन में भारी बर्बादी होती थी। इससे जान और माल दोनों का नुकसान होता था। बांध निर्माण के बाद चीन ने इस नुकसान को काफी कम कर दिया है। इस बांध की बाढ़ रोकने की क्षमता 22.15 अरब घन मीटर है।
यांगत्ची नदी एशिया की सबसे लंबी और दुनिया की तीसरे नंबर की लंबी नदी है। तिब्बत से निकलने वाली यह नदी चीन के नौ राज्यों से होकर 3,917 मील बहती है। बांध बनने के बाद शंघाई तक इस नदी से जहाजों का आवागमन भी आसान हुआ है। जहाजों के आवागमन के लिए जगह-जगह पर बैराज बनाकर पानी के स्तर को उठाया गया है। जहाज से सामान शंघाई भेजने में एक हफ्ता लगता है जबकि सड़क से दो दिन लगते हैं। हालांकि जहाज से माल ढुलाई सस्ती है।
माल ढुलाई के लिए नदी किनारे के अधिकांश शहरों में पोर्ट बने हैं। वुहान यांगलू पोर्ट से पिछले साल 4,15,000 टीईयू माल की ढुलाई की गई। इस पोर्ट में दस हजार भरे और 15 हजार खाली कंटेनरों को रखने की व्यवस्था है। मुख्य रूप से इस पोर्ट से शंघाई के लिए कंटेनर भेजे जाते हैं। शंघाई से सामान विदेशों के लिए भेजा जाता है। कुछ छोटे जहाज जापान, कोरिया, ताईवान और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के लिए यहां से सीधे भी जाते हैं। वुहान इंटरनेशनल कंटेनर कंपनी के मैनेजर चांग सांग बताते हैं कि ‘बेल्ट एंड रोड की पहल के बाद उनकी ढुलाई की क्षमता बढ़ी है। इस साल इसे पांच लाख टीईयू करने का लक्ष्य रखा गया है।’ यदि समय की बाध्यता और खराब होने वाला सामान नहीं है तो नदी यातायात ने चीन में ढुलाई के खर्च को काफी कम कर दिया है।
(लेखक चीन में वरिष्ठ पत्रकार हैं)