सुनील वर्मा।
देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर विपक्षी नेता भले ही सत्ताधारी पार्टी और पुलिस को कोसते हों लेकिन हकीकत यह है कि अपराधी तत्वों को पालने एवं उन्हें संरक्षण देने में कोई भी राजनीतिक दल किसी से पीछे नहीं है। सत्ता की चाहत में बड़े से बड़े अपराधियों को भी अपने दल में शामिल करने से वे नहीं चूकते। जब सत्ता में बैठे अपराधी तत्व खाकी की सुरक्षा में चलेंगे तो कानून का राज कैसे स्थापित हो सकेगा। एडीआर की ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है कि स्वच्छ सरकार का दावा करने वाली केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में भी 31 फीसदी मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं जबकि राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में 34 फीसदी मंत्रियों के दामन दागदार हैं। वहीं राज्यों के मंत्रिमंडल में महिलाओं की नुमाइंदगी महज आठ फीसदी है।
अपराधियों को शरण देने के मामले में सभी दलों की एक ही नीति है ‘हम सब एक हैं’। हाल ही में इस संबंध में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच ने एक सर्वे किया। इसमें राज्यवार मंत्रियों के आपराधिक रिकार्ड के आंकड़े जुटाए गए जो काफी चौंकाने वाले हैं। सर्वे के अनुसार, देश के 29 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 609 मंत्रियों में से 210 (34 फीसदी) पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इनमें से 113 मंत्रियों पर हत्या, लूट, अपहरण, बलात्कार जैसे गंभीर प्रवत्ति के मामले हैं। वहीं केंद्रीय मंत्रिमंडल के 78 मंत्रियों में से 24 (31 फीसदी) पर जुर्म का बदनुमा दाग लगा हुआ है। इनमें से 14 मंत्रियों (18 फीसदी) पर गंभीर अपराधों के केस हैं।
भाजपा शासित झारखंड की बात करें तो यहां 11 में से 9 यानी 82 फीसदी मंत्रियों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी के बेटे मुन्ना मरांडी पर एक लड़की का दो साल तक यौन उत्पीड़न करने और उसके बाद एक अन्य नाबालिग लड़की से शादी करने का आरोप है। एक युवती ने गोड्डा जिले की एक अदालत में इस बारे में शिकायत दर्ज कराई है। विवादों में रहने वाले केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की सियासत उनके मंत्रियों और विधायकों की करतूतों की वजह से फीकी पड़ने लगी है। भ्रष्टाचार मुक्त और स्वच्छ सरकार का दावा करने वाली केजरीवाल सरकार के सात में से चार (57 फीसदी) मंत्रियों के दामन पर अपराध के धब्बे लगे हैं। वहीं उनकी पार्टी के 10 से अधिक विधायाकों पर अलग—अलग आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
दो साल पहले बने राज्य तेलंगाना में 17 में से 9 (53 फीसदी) मंत्रियों की छवि आपराधिक है तो महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़नवीस सरकार के 39 मंत्रियों में से 18 (46 फीसदी) मंत्रियों का रिकॉर्ड भी आपराधिक है। बिहार के सुशासन बाबू नीतीश कुमार की महागठबंधन वाली सरकार में 28 में से 11 मंत्री (39 फीसदी) अपराधी प्रवृत्ति के हैं। उत्तराखंड में सिर्फ आठ मंत्री है। उनमें से भी दो (25 फीसदी) मंत्रियों की छवि आपराधिक है।
महिला सशक्तिकरण का अभाव
एडीआर की रिपोर्ट से इस बात की भी पुष्टि हुई है कि अकेला मध्य प्रदेश ही ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा पांच महिलाओं को मंत्रिमंडल में जगह मिली हुई है। यह मंत्रियों की कुल संख्या (30) का 17 प्रतिशत है। हालांकि तमिलनाडु में भी पांच महिला मंत्री हैं लेकिन कुल संख्या (33) के अनुपात मे उनका फीसदी पंद्रह है। फीसदी के लिहाज से देखें तो मेघालय में सबसे ज्यादा 12 में से 9 यानी 25 फीसदी महिला मंत्री हैं।
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 29 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 609 मंत्रियों में सिर्फ 51 महिला मंत्री हैं। दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, पुडुचेरी, पंजाब और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं जहां एक भी महिला मंत्री नहीं है। इसके अलावा कर्नाटक में कुल 31 मंत्री हैं। इनमें से 30 यानी 97 प्रतिशत पुरुष हैं। उत्तर प्रदेश में 57 में से 55 यानी 96 प्रतिशत मंत्री पुरुष हैं। हिमाचल में 95, बिहार में 93, छत्तीसगढ़ में 92 और असम व जम्मू-कश्मीर में 91 फीसदी मंत्री पुरुष हैं।