लखनऊ।
उत्तर प्रदेश सरकार केंद्र से कर्ज लेकर किसानों का कर्ज माफ करना चाहती है। इसके लिए नियमों में कुछ छूट भी चाहती है। दरअसल, कर्ज मिलने में भी राज्य सरकार को दिक्कत है। राज्य सरकार प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 3 प्रतिशत के बराबर ही कर्ज ले सकती है। ऐसे में सरकार कर्ज को तीन प्रतिशत की सीमा से मुक्त रखना चाहती है, ताकि प्रदेश के विकास कार्यों पर असर न पड़े। प्रदेश में सितंबर 2016 तक बैंकों का 1.26 लाख करोड़ रुपये कृषि कर्ज बकाया था, जिसमें से 92,121.85 करोड़ रुपये फसली कर्ज है।
उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि पहली कैबिनेट बैठक में ही किसानों की कर्ज माफी पर फैसला हो जाएगा। मौर्य ने कहा, ‘’उत्तर प्रदेश के किसानों को पता है कि बीजेपी एक-एक वादा पूरा करेगी। कुछ तकनीकी पक्षों की जांच और व्यवस्था करके किसानों का कर्ज जरूर माफ किया जाएगा।’’
वित्त विभाग के आला अधिकारियों के मुताबिक किसानों की कर्जमाफी के लिए राज्य सरकार को करीब 63,000 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी। संकल्प पत्र में किए गए वादे के मुताबिक प्रदेश में 2.15 करोड़ ऐसे किसान हैं, जिनका कर्ज माफ किया जाना है। इनमें 1.85 करोड़ सीमान्त किसान और 30 लाख लघु किसान हैं। बजट में इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था कैसे की जाएगी। इसके लिए मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व वित्त विभाग के अधिकारियों के साथ वित्तमंत्री राजेश अग्रवाल ने बैठक की।
वित्तमंत्री राजेश अग्रवाल ने कहा, ‘कर्जमाफी के लिए राज्य सरकार अलग-अलग विकल्पों पर विचार कर रही है। किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा हमारे संकल्प पत्र में था। हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए अधिकारियों के साथ भी बैठकें हुईं हैं।
दरअसल, कर्ज लेने पर राज्य सरकार को ब्याज का भी भुगतान करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में एक बड़ी चुनौती यह होगी कि कमाई का एक बड़ा हिस्सा ब्याज में ही चला जाएगा। कर्जमाफी के बाद बैंकों को भुगतान किया जाए। राज्य सरकार विचार कर रही है कि बैंक पहले किसानों के कर्ज को माफ कर दें। बाद में राज्य सरकार बैंकों को भुगतान करे। हालांकि इसके लिए बैंक राजी हों, यह जरूरी नहीं है।