नई दिल्ली। यूपी में कांग्रेस की सीएम उम्मीदवार दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित होंगी। उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने की। शीला ने कहा, हर चुनाव एक चुनौती होता है। हाईकमान का शुक्रिया अदा करती हूं कि उन्होंने मुझमें विश्वास जताया। निश्चित तौर पर यूपी दिल्ली से बड़ा प्रांत है, वहां चुनौती भी बड़ी है, लेकिन हम वहां हिम्मत से जाएंगे। मैं मानती हूं कि मुझे बहुत बड़ी जिम्मेदारी मिली है। इन चुनावों में हमारे लिए बेहतरीन परिणाम आएंगे। मैं चाहती हूं कि प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार करें। इसका हमें फायदा मिलेगा। दिल्ली में लगातार 15 वर्षों तक शीला दीक्षित मुख्यमंत्री रहीं और दिल्ली चुनाव में हार के बाद पार्टी ने उन्हें केरल का राज्यपाल बना दिया था।
बता दें कि कांग्रेस की नजर उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मतदाताओं पर है जो कि पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ रहे, लेकिन मंदिर और मंडल की राजनीतिक के बाद वे भाजपा की तरफ चले गए थे। ब्राह्मण वोटों का एक बड़ा हिस्सा बीच में बीएसपी के पास चला गया था। उस समय उन्होंने इस समुदाय के कई उम्मीदवारों को टिकट दिए थे। सेंट्रल और ईस्ट उत्तर प्रदेश में कई सीटों के चुनावी नतीजे इस समुदाय के सपोर्ट पर निर्भर करते हैं। यूपी में कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर शुरू से ही प्रदेश में पार्टी की तरफ से ब्राह्ण चेहरा चाहते थे।
पार्टी ने यूपी चुनाव में तैयारियों को लेकर जिम्मेदारियां सौंपी हैं और उसके लिए पार्टी नेताओं के नाम का भी ऐलान कर दिया है। कांग्रेस ने यूपी के चुनावों के लिए एक संयोजन समिति भी बनाई है, जिसके अध्यक्ष प्रमोद तिवारी होंगे। संजय सिंह को यूपी में प्रचार समिति का अध्यक्ष और आरपीएन सिंह को उपाध्यक्ष बनाया गया है। इस संदर्भ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी और गुलाम नबी आजाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर औपचारिक घोषणा की। संयोजन समिति में मोहसिना किदवाई, सलमान ख़ुर्शीद, राजीव शुक्ला, श्रीप्रकाश जायसवाल, रीता बहुगुणा, सलीम शेरवानी और प्रदीप जैन आदित्य, पीएल पुणिया, निर्मल खत्री, प्रदीप माथुर शामिल हैं।
इन वजहों से उभरा शीला का नाम
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि शीला दीक्षित के नाम पर चर्चा दो वजहों से हो रही है। पहली-दिल्ली में बतौर सीएम उनका रिकॉर्ड और दूसरी-यूपी के साथ उनकी फैमिली के रिलेशन। शीला के ससुर कांग्रेस के दिग्गज नेता उमा शंकर दीक्षित यूपी से थे। शीला को कुछ दिन पहले पंजाब में कांग्रेस के चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभालने का ऑप्शन दिया गया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था।
कुछ दिनों पहले जब शीला दीक्षित से सीएम कैंडिडेट बनाए जाने की चर्चा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगी, वे उसे निभाने के लिए तैयार हैं। तीन बार दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित पहली बार यूपी से ही संसद के लिए चुनी गई थीं। 1984 में यूपी के कन्नौज सीट से सांसद बनकर संसद पहुंची थीं। सासंद का चुनाव जीतने के बाद वह राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में पीएम ऑफिस की मिनिस्टर बनी थीं। 1998 में कांग्रेस ने उन्हें पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और चुनाव हारने के बाद उन्हें प्रदेश कांग्रेस का प्रेसीडेंट बना दिया गया।
1998 के विधानसभा चुनाव से शीला दीक्षित ने जीत का जो सिलसिला शुरू किया वह 2008 तक जारी रहा। दिल्ली में भाजपा को लगातार मात देने वाली शीला दीक्षित आम आदमी पार्टी की आंधी का सामना नहीं कर सकी। 2013 के विधानसभा चुनाव न सिर्फ कांग्रेस हारी बल्कि वह खुद भी नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव हार गईं। उन्हें अरविंद केजरीवाल ने हराया। 2013 में चुनाव हारने के बाद उन्हें केरल का राज्यपाल पार्टी ने बना दिया था। 2014 में भाजपा की सरकार केंद्र में बनने के बाद शीला ने इस्तीफा दे दिया।