मृत्युंजय कुमार
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अभी एक साल का समय है लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। लोकसभा चुनाव में इस प्रदेश ने भाजपा को 73 सांसद (इनमें दो सहयोगी दल के हैं) दिए। इसलिए उत्तर प्रदेश का चुनाव पार्टी ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लिए राष्ट्रीय राजनीति की सबसे बड़ी चुनौती है। जाहिर है कि पार्टी का प्रयास 2017 में सत्ता हासिल करने का है। सरकार की बात हो तो मुख्यमंत्री के उम्मीदवार की बात कैसे नहीं होगी। इस पद के दावेदारों की भरमार है।
2012 में दावेदारों की बड़ी संख्या देखकर ही पार्टी चाहकर भी उमा भारती को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित कर पाई। मामला इस बार भी कुछ वैसा ही है। लेकिन एक बुनियादी फर्क आया है कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की कमान अमित शाह के पास है और केंद्र में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की आशातीत कामयाबी के कारण ही प्रधानमंत्री ने अमित शाह को चुनाव का मैन आॅफ द मैच कहा था। उनके पार्टी अध्यक्ष बनने में भी उत्तर प्रदेश की बड़ी भूमिका है।
विधानसभा चुनाव आने तक भाजपा को उत्तर प्रदेश में सत्ता से बाहर हुए 15 साल हो जाएंगे। राज्य के कुछ लोगों की अधूरी और कुछ की अतृप्त इच्छाएं आजकल जोर मार रही हैं। तीन बार मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह एक बार फिर मैदान में कूदने को तैयार हैं। इसका संकेत इसी बात से मिलता है कि राजस्थान का राज्यपाल होने के बावजूद उन्होंने अपना जन्म दिन जयपुर में नहीं लखनऊ में मनाया। वे कह रहे हैं कि सक्रिय राजनीति में एक और पारी खेलने के लिए तैयार हैं। 2003 में दल बदल से बनी मुलायम सिंह यादव की सरकार को वैधता दिलाने वाले केसरी नाथ त्रिपाठी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं। वे कह रहे हैं कोलकाता से इलाहाबाद के लिए कोई सीधी विमान सेवा नहीं है फिर भी वे ट्रेन से इलाहाबाद आते रहते हैं क्योंकि उन्हें इलाहाबाद की जनता की चिंता है।
उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में जातीय विभाजन के सामने कहीं खड़ी नहीं दिखती भाजपा के लिए योगी आदित्यनाथ सबसे सक्षम शस्त्र के रूप में दिखते हैं। सपा के साथ मुसलिम यादव का माई समीकरण है तो बसपा के साथ बड़ा दलित वोट बैंक है
दावेदार कलराज मिश्र भी हैं। उन्हें अब तक मुख्यमंत्री न बन पाने का जितना दुख है उससे ज्यादा दुख इस बात का है कि राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बन चुके हैं। केंद्रीय मंत्री उमा भारती को 2012 में पार्टी मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश विधायक बनवाने के लिए तो नहीं ही लाई थी। लेकिन नेतृत्व उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का साहस नहीं जुटा पाया। वह उत्तर प्रदेश से ही सांसद हैं लेकिन लगता है कि पार्टी उन्हें भूल गई है। कुछ लोग चर्चा तो केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की भी कर रहे हैं। शायद लोकसभा चुनाव में अमेठी में राहुल गांधी को कड़ी टक्कर देने के कारण। उत्तर प्रदेश से ईरानी का इससे ज्यादा का वास्ता नहीं है। जाहिर है कि उनका नाम चलाने वाले भाजपा के शुभचिंतक तो नहीं ही हो सकते। अब भाजपा को तय करना है कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव राज्य के नेताओं की अतृप्त इच्छाओं पर न्यौछावर करना चाहती है या जीत के लिए गंभीर प्रयास।
मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ का नाम उत्तर प्रदेश की राजनीति में सरगर्मी पैदा करने वाला होगा। इस बात की चर्चा है कि अगले कैबिनेट विस्तार में योगी को स्थान देकर उनका कद बढ़ाए जाने की शुरुआत हो सकती है
राज्य में नेतृत्व की पहेली सुलझाने के लिए संतों ने एक नाम आगे किया है। नाम है योगी आदित्यनाथ का। ऐसा नहीं है कि पार्टी नेतृत्व के ध्यान में उनका नाम नहीं है। राज्य की लगभग एक दर्जन विधानसभा सीटों के उपचुनाव के समय पार्टी ने उन्हें जांचने की कोशिश की थी। उस समय कामयाबी नहीं मिली क्योंकि समय और मुद्दे दोनों ही गलत थे। योगी आदित्यनाथ को हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनी प्रतिबद्धता साबित करने के लिए किसी फौरी मुद्दे की जरूरत नहीं है। इसके लिए उनका नाम ही काफी है। उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के बिना भाजपा की नैया पार होने वाली नहीं है।
पहले दिल्ली फिर बिहार के झटके ने भाजपा के लिए एक बात साफ कर दी कि सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर राज्यों में चुनाव नहीं जीते जा सकते। यही वजह है कि असम में केंद्रीय मंत्री सर्वांनद सोनेवाल को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया गया। यही फार्मूला उत्तर प्रदेश में अपनाने की तैयारी है। अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर स्थानीय चेहरे को आगे करेगी। इसके लिए गोरखपुर के फायरब्रांड सांसद योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री और चर्चित टीवी अभिनेत्री स्मृति ईरानी, पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री महेश शर्मा, जल संसाधन मंत्री उमा भारती और लघु-मध्यम उद्योग मंत्री कलराज मिश्र के नाम चर्चा में हैं। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा तो चुनाव के कुछ महीने पहले ही होगी पर अभी जो संकेत मिल रहे हैं उससे लगता है कि योगी आदित्यनाथ का नाम इस रेस में सबसे आगे है। अगर कोई बड़ा बदलाव न हुआ तो संघ की सहमति से भाजपा नेतृत्व उत्तर प्रदेश में योगी पर दांव लगा सकता है।
मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ का नाम उत्तर प्रदेश की राजनीति में सरगर्मी पैदा करने वाला होगा। वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोकसभा क्षेत्र गोरखपुर से लगातार पांचवीं बार सांसद और गोरक्षपीठ के महंत हैं। उनसे पहले उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ और अवैद्यनाथ के गुरु महंत दिग्विजयनाथ यहां से सांसद रहे। गोरखनाथ मंदिर की यह राजनीतिक विरासत योगी आदित्यनाथ की बड़ी ताकत है। परंपरा से मिली इस धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक ताकत का योगी ने विस्तार किया और विपरीत परिस्थितियों में भी भाजपा को अपने प्रभाव क्षेत्र में मजबूत बनाए रखा। इस बात की चर्चा है कि अगले कैबिनेट विस्तार में योगी को स्थान देकर उनका कद बढ़ाए जाने की शुरुआत हो सकती है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में जातीय विभाजन के सामने कहीं खड़ी नहीं दिखती भाजपा के लिए योगी आदित्यनाथ सबसे सक्षम शस्त्र के रूप में दिखते हैं। सपा के साथ मुसलिम यादव का माई समीकरण है तो बसपा के साथ बड़ा दलित वोट बैंक है। इसमें अन्य जातियां स्थानीय नेताओं के प्रभाव से जुड़कर उनकी जीत सुनिश्चित करती हैं। लेकिन भाजपा और कांग्रेस के पास स्थायी तौर पर कोई जातीय आधार नहीं बचा है। दूसरी तरफ इतिहास गवाह है कि भाजपा की जीत उत्तर प्रदेश में तभी होती है जब कोई लहर जातीय विभाजन को पाट देती है। जैसे अयोध्या आंदोलन की लहर और 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर। ये दोनों ही स्थितियां धार्मिक आधार पर बनीं। लोकसभा चुनाव में गुजरात का विकास इसका सहयोगी रहा। लेकिन सिर्फ विकास का मुद्दा विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को आंदोलित नहीं करता अन्यथा भाजपा को बिहार और दिल्ली गंवाना नहीं पड़ता।
योगी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने का भाजपा को फायदा और नुकसान दोनों होगा। नुकसान यह होगा कि मुसलिम वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। फायदा यह होगा कि पार्टी का आम कार्यकर्ता उत्साहित होगा। बिना कुछ बोले हिंदुत्व का माहौल बनेगा और लोकसभा चुनाव की तरह जातीय खांचे टूट सकते हैं। चुनावों में भाजपा से नाखुश रहने वाले हिंदूवादी संगठन जी जान से सहयोग कर सकते हैं। योगी की छवि के कारण उन समर्थकों का भरोसा लौट सकता है जो राम मंदिर आंदोलन पर भाजपा से धोखा खाया हुआ महसूस कर रहे हैं। गोरखपुर भाजपा के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष कामेश्वर सिंह कहते हैं कि जिस प्रकार कार्यकर्ता मोदी जी के कारण लोकसभा चुनाव में उर्जावान हो गया था, ऐसा ही योगी को आगे करने पर भाजपा का सामान्य कार्यकर्ता उत्साहित हो जाएगा और पार्टी प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करेगा।
कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके शीतल पांडेय कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में जातिवाद काफी पहले से है। जब कांग्रेस सत्ता में थी तब ब्राह्मण, हरिजन और मुसलिम का गठबंधन हुआ। जब चौधरी चरण सिंह सत्ता में आए तो अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत यानी अजगर जातीय गठबंधन बना। और अब माई या सेक्युलर गठबंधन बने हैं। लेकिन मोदी लहर में ये जातीय गठबंधन टूट गए। वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन शाही का मानना है कि जातीय आधार पर जब भी चुनाव होंगे तो सपा और बसपा मुख्य लड़ाई में होंगे और भाजपा तीसरे स्थान पर रहेगी। प्रदेश भाजपा की मौजूदा लीडरशिप में कोई चेहरा ऐसा नहीं है जो इस स्थिति को परिवर्तित करने में सक्षम दिखता है। ऐसे में भाजपा के पास एकमात्र विकल्प योगी हैं। यह जरूर होगा कि इसके बाद भाजपा को कुछ दिन सेक्युलर दलों के हमले झेलने के लिए तैयार रहना होगा।
योगी के संगठन हिंदू युवा वाहिनी के मीडिया प्रभारी इंजीनियर रविंद्र प्रताप कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की छवि एक जननेता की है। अगर योगी को पार्टी आगे करती है तो भाजपा में जो गुटबाजी है वह रुकेगी। भाजपा को एक जननेता भी मिलेगा और जातीय आधार पर ध्रुवीकरण करने में लगी पार्टियों पर अंकुश भी लगेगा, जिससे भाजपा को वोटों का लाभ मिलेगा। उनके बेहद करीब रहे रविंद्र कहते हैं कि उनकी मूल ताकत कर्मठता है। वह उन जगहों पर खुद जाना पसंद करते हैं जहां जनता की कोई समस्या हो और संगठन को लाभ हो सकता हो। उनमें जबरदस्त संगठन क्षमता है। भाजपा सांसद के रूप में न भी देखें तो वह साधुओं के सबसे बड़े संगठन नाथ संप्रदाय के मुखिया हैं।
योगी की छवि मुसलिम विरोधी है। मुसलमानों को लेकर उनके पहले दिए गए बयान इस छवि को मजबूत भी करते हैं। एक वर्ग का मानना है कि योगी को आगे करने पर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण होगा। इसका लाभ भाजपा विरोधी दलों को होगा। सपा और बसपा के नेताओं की मानें तो योगी मुस्लिम समुदाय के लिए खलनायक की तरह हैं। उनके लव जेहाद को लेकर दिए गए बयानों से उनमें बेहद नाराजगी है। लेकिन गोरखपुर के ही मुस्लिम नेता इफ्तिखार जुदा राय रखते हैं। वे कहते हैं कि योगी का मुसलमान विरोधी होना धारणा ज्यादा है। यहां गोरखपुर में कई मुस्लिम परिवार मिल जाएंगे जिन्हें मुसीबत में योगी ने व्यक्तिगत तौर पर मदद की है। गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने वालों में बड़ी तादाद मुस्लिमों की है। प्रतिक्रिया सिर्फ उन लोगों में होगी जो मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं।
व्यापारी कैफीउल वारा कहते हैं कि इसी प्रकार की एक धारणा लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी के लिए बनी थी कि मोदी अगर देश के प्रधानमंत्री हो गए तो अकलियत के लोगों का रहना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने कभी कोई ऐसी बात नहीं कही या की, जिससे मुस्लिम समुदाय को कोई नुकसान हुआ हो। यही बात योगी के लिए है। नाम न छापने की शर्त पर एक भाजपा नेता कहते हैं कि मुसलमान वोट तो वैसे भी भाजपा को न के बराबर मिलता है पर योगी के आगे आने से हिंदू वोट तो बढ़ ही जाएगा।
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