इस्लाम और वहाबियत के बीच मुसलमान

अखलाक अहमद उस्मानी

बांग्लादेश की राजधानी ढाका के एक कैफे में आतंकवादी हमले के बाद शेख हसीना सरकार ने भारत से विवादास्पद तथाकथित इस्लामी विद्वान जाकिर नाइक की शिकायत लगाई। बांग्लादेश का मानना है कि उसके भटके हुए युवाओं को जाकिर से प्रेरणा मिली और उन्होंने इस आतंकवादी घटना को अंजाम दिया। लंबे समय से भारत में जाकिर नाइक का विरोध कर रहे सूफी और शिया समुदाय की शिकायतों पर भारत सरकार ने कभी इतना ध्यान नहीं दिया जितना बांग्लादेश की शिकायत पर दिया गया। जाकिर नाइक ओसामा बिन लादेन को आतंकवादी नहीं मानता, सुसाइड बॉम्बिंग को जायज ठहराता है और अफगानिस्तान में बुद्ध की प्रतिमा को तोड़े जाने को सही बताता है। जाकिर नाइक के बहाने देश में एक बार फिर यह बहस तेज हुई है कि क्या यही इस्लाम का असली चेहरा है?

अब तक दुनिया में आतंकवादी घटनाओं के बहाने मुसलमानों पर चर्चा होती रही है लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवी जाकिर नाइक से यह बहस इस्लाम पर आ गई है। यानी जाकिर नाइक जिसे इस्लाम कहता है अगर वही विचारधारा प्रमुख है तो इसमें आश्चर्य नहीं है कि इस पर सवाल न खड़े किए जाएं। जाकिर नाइक के जहरीले बोल को सुनकर गैर मुस्लिम या निष्पक्ष समाज क्यों न इस्लाम के बारे में पूर्वाग्रह पाले? जाकिर नाइक का विरोध कर रहे लोगों की बात सुनने से पहले यह समझना आवश्यक है कि मुसलमानों में इस्लाम की सही व्याख्या को लेकर कितना मतांतर है?

मुस्लिम समाज को मुख्य रूप से शिया और सुन्नी कैंप के तौर पर देखा जाता है। यह भी धारणा है कि दुनिया में जितने भी इस्लामी आतंकवादी गुट हैं वह सब सुन्नी हैं। लेकिन अलकायदा के उभार और पतन, खतरनाक आतंकवादी गुट इस्लामिक स्टेट के उद्भव और हालिया जाकिर नाइक विमर्श के बाद मुसलमानों में एक नई विचारधारा वहाबियत उर्फ वहाबीवाद उर्फ वहाबिज्म का बहुत जिक्र हो रहा है। शिया मानते हैं कि वैचारिक रूप से उनका समुदाय सुन्नी विचारधारा से बहुत दूर नहीं है। सुन्नी कहते हैं कि उनका शिया से कोई गंभीर विवाद नहीं है लेकिन दोनों समुदाय कहते हैं कि वहाबियत से हम सब को खतरा है। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त संगठनों के सरगना जैसे अबु बकर अल बगदादी, अमान अल जवाहिरी से लेकर हाफिज सईद तक खुद को सुन्नी बताते हैं। सुन्नी और शिया कहते हैं यही लोग वहाबी हैं। यही लोग जाकिर नाइक को भी वहाबी कहते हैं। इस मौके पर यह बहस होना लाजिमी है कि वहाबियत आखिर है क्या? जानकार बताते हैं कि सऊदी अरब में अट्ठारहवीं शताब्दी में जन्मा इब्न अब्दुल वहाब इस विचारधारा का जनक है और आज दुनिया में इस्लामिक आतंकवाद में संलिप्त सभी आतंकवादी वैचारिक रूप से वहाबी हैं। सऊदी अरब के तानाशाह परिवार पर कई वर्षों से यह गंभीर आरोप लगते रहे हैं कि वह वहाबी विचारधारा के पोषक हैं और अपनी इस विचारधारा को मुसलमानों के बीच आम करने में उन्होंने पानी की तरह पैसा बहाया है।

वहाबी विचारधारा का पसमंजर

वहाबी विचारधारा इसके संस्थापक इब्न अब्दुल वहाब के नाम पर पुकारी जाती है। शुरुआत में इब्न अब्दुल वहाब ने बताया कि मुसलमानों में इस्लाम के मूल सिद्धांत तौहीद यानी एकेश्वरवाद में बहुत खामियां पैदा हो गर्इं जिसे एक सुधार आंदोलन से ठीक किया जा सकता है। ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई 6 के एजेंट पर्सी कोक्स के मित्र इब्न अब्दुल वहाब को ब्रिटेन का पूरा समर्थन हासिल था। दरअसल, ब्रिटेन उस्मानिया खिलाफत (पूर्व तुर्की सल्तनत) को तोड़ नहीं पा रहा था। ब्रिटेन ने इब्न अब्दुल वहाब की विचाधारा को अरब के लुटेरे परिवार अलसऊद के साथ मिला दिया। मुसलमानों में बिखराव की वजह बने इब्न अब्दुल वहाब ने मुसलमानों पर ही कुफ्र(एकेश्वरवाद के विरोधी) के फतवे लगाकर उनकी हत्याओं को जायज ठहराना शुरू कर दिया। वाजिबुल कत्ल यानी हत्या की अनिवार्यता के सिद्धांत के बल पर इब्न अब्दुल वहाब ने अपने चेलों को नरसंहार का लाइसेंस दे दिया। ‘जो हमारे साथ नहीं है, उसे मरना होगा’ के फतवे की बदौलत अलसऊद गिरोह के लुटेरों ने उस्मानिया खिलाफत को ब्रिटिश हथियार से हरा दिया। उस्मानिया खिलाफत के टुकड़े होने के बाद अलसऊद गिरोह को हिजाज, नज्द और रबीउल खाली का इलाका मिलाकर सल्तनत दे दी गई जिसे इन्होंने अपने परिवार के नाम पर सऊदी अरब कर दिया। सऊदी अरब ने वहाबियत को आधिकारिक धर्म घोषित किया और इब्न अब्दुल वहाब को इमाम माना।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद न्यू वर्ल्ड आॅर्डर में सोवियत संघ को अफगानिस्तान से बेदखल करने में सऊदी अरब की मदद से भोले अफगानियों पर वहाबियत का सफल प्रयोग किया गया। सोवियत संघ के विघटन के बाद एकतरफा वैश्विक ताकत संयुक्त राज्य अमेरिका ने फौरन अलसऊद परिवार और उनकी विचारधारा वहाबियत को प्रमोट किया। तेल की लूट, हथियारों की बिक्री, हथियारों की टेस्टिंग और विरोधी देशों में आतंकवाद को प्रमोट करने में वहाबियत ने बहुत मदद की। इस्लामी आतंकवादियों यानी वहाबी आतंकवादियों के पास इब्न अब्दुल वहाब की 18 पुस्तकों का आधार होता है। इब्न अब्दुल वहाब की किताबों और सऊदी अरब के पैसों की मदद से गली गली इस्लाम के नाम पर वहाबी विचारधारा की तबलीग करने वालों ने कभी मुसलमानों की मूल समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य को ठीक करने की तो कोई तरकीब नहीं बताई अलबत्ता उन्हें वहाबी बनाकर छोड़ दिया।

इस तबलीग के झांसे में आने वाले हर पढ़े लिखे और अनपढ़ का चाहे रोजगार और तालीम लक्ष्य ना हो लेकिन वह मन में इस्लामी खिलाफत की स्थापना का सपना संजोए बैठा है। यही विचार उसे केरल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से ही नहीं, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लेकर दुनिया के 100 देशों के युवाओं को इस्लामिक स्टेट (आईएस) से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है। बिना रजिस्ट्रेशन और बेनामी खातों में हासिल सऊदी पेट्रो डॉलर से चलने वाले वहाबी आंदोलन ने सूफी और अन्य सुन्नी मत के मानने वाले लाखों नौजवानों को गुमराह किया है।

कौन था इब्न अब्दुल वहाब

वर्तमान सऊदी अरब के उत्तरी प्रांत नज्द में 1703 में इस्लामी विद्वान अब्दुल वहाब के घर उसका जन्म हुआ। इस्लामी माहौल में पले बढ़े इब्न अब्दुल वहाब ने अपने पिता की सूफी विचारधारा से इनकार करते हुए माना कि मुसलमान दरगाह और मन्नत मानने लगे हैं जो इस्लाम के मूल विचार तौहीद यानी एकेश्वरवाद के खिलाफ है। इस्लाम को सलफ यानी बुजुर्गों के मार्ग पर लाना होगा। इसलिए उसने अपनी विचारधारा को सलफी कहा। वहाबी खुद को सलफी कहते हैं जबकि उसके विरोधी उसे वहाबी पुकारते हैं। उसके जीवनकाल में अरब का मशहूर लुटेरा गिरोह अलसऊद ब्रिटेन के साथ मिलकर उस्मानिया खिलाफत को समाप्त करने में लगा था। ब्रिटेन ने अलसऊद को इब्न अब्दुल वहाब से मिलकर उसकी विचारधारा को स्थापित करने को कहा क्योंकि अलसऊद को तत्कालीन अरब की जनता ने स्वीकार नहीं किया था। मुसलमानों में बिखराव के अलावा ब्रिटेन को इब्न अब्दुल वहाब का अत्यधिक हिंसा का विचार भी रास आ रहा था। इब्न अब्दुल वहाब के 89 साल की उम्र में 1792 में निधन होने तक अलसऊद ने वर्तमान सऊदी अरब के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया था।

भारत में वहाबी विचार का विरोध

दुनिया में वहाबी विचारधारा के विरोध में अरब के बाहर पहला फतवा बरेली के मशहूर इस्लामी विद्वान और चिंतक अहमद रजा खां साहब ने जारी किया था। आज भी अरब से अधिक भारत में वहाबी विचारधारा का विरोध हो रहा है। ओपिनियन पोस्ट ने इस मुद्दे पर दो प्रमुख लोगों के विचार जानने की कोशिश की जो वहाबियत के विरुद्ध जागरूकता फैला रहे हैं।

भारत में मुसलमानों के सबसे बड़े छात्र संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स आॅर्गनाइजेशन आॅफ इंडिया के महासचिव शुजात कादरी कहते हैं कि ‘उनके संगठन में 30 साल की उम्र या उससे कम के 10 लाख सदस्य हैं। कट्टरता से बचाव के मुद्दे पर साल भर हम कार्यक्रम करते हैं और वहाबी विचारधारा के दुष्परिणामों से लोगों को आगाह करते हैं। हम बताते हैं कि

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