जायरा वसीम ‘रोल मॉडल’ क्यों नहीं हो सकती ?

निशा शर्मा।

एक 16 साल की लड़की, गोरा रंग, मासूम सा चेहरा जिसमें कोई बनावट नहीं फिल्म दंगल से लोगों के दिलों में उतर जाती है। किसी को नहीं पता कि वह कौन से मजहब से ताल्लुक रखती है और कहां से है। सब जानते हैं वह फिल्म में गीता फोगाट के बचपन का किरदार है। उसकी अदाकारी मजबूर करती है कि उसके बारे में जाना जाए और लोग उसे जानने लगते हैं। कोई गूगल पर सर्च करता है, कोई सोशल साइट पर उसे ढूंढता है और वह सबको जहां उसे ढूंढा गया मिलती है एक नाम से – जायरा वसीम।

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जायरा वसीम को उसकी अदाकारी ने लोगों के बीच पहुंचाया लेकिन अब इस नाम ने डर के कुछ अल्फाजों से सुर्खियां बटोर ली हैं, कहा जा रहा है कि यह अल्फाज उसके नहीं थे। उसमें आ गए डर ने लिखवाए थे। अपने इन अल्फाजों में जायरा अपनी सफलता से खुश नहीं है। यह वही लड़की है जो 16 साल की है, इस उम्र के जवान बच्चों में उत्साह होता है, एक उमंग होती है कुछ करने की और अगर उन्हें इस उम्र में सफलता मिल जाए तो वह आसमान को छूने की बात करते हैं इसके उलट जायरा दुखी है अपनी सफलता से। वह इस कदर दुखी है कि वह अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखती है कि उसके नक्शेकदम पर कोई ना चले।

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बता दें कि दसवीं बोर्ड में 92 प्रतिशत अंक लाने पर जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जायरा से मुलाकात की थी और कहा था कि ‘प्रतिभा के मामले में कश्मीर के युवा किसी से कम नहीं हैं.’ इस मुलाकात के बाद जायरा को ट्विटर पर जमकर ट्रोल किया गया था। कहा जा रहा है कि इस वजह से जायरा ने यह पोस्ट किया था।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब कश्मीर की किसी लड़की ने यह शोहरत पाई हो या पाने की कोशिश की हो। जाहिरा से पहले भी प्रगाश नाम के बैंड को शोहरत और नाम मिला था। यह बैंड कश्मीर की कुछ लड़कियों ने मिलकर बनाया था। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लड़कियों के गाने बजाने से ही आहत महसूस करने लगे थे। उनका मानना था कि इससे इस्लाम का अपमान होता है। इस्लाम में संगीत हराम है, संगीत सुनने के बाद मर्द उत्तेजित हो जाते हैं। फतवों की उस दुनिया में फिर वह लड़कियां गुमनामी के अंधेरे में कहां गुम हुई किसी को पता नहीं।

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कश्मीर में ऐसे कई तत्व मौजूद हैं जो नहीं चाहते कि कश्मीरी लडकियां कुछ करें या शोहरत पाएं। कुछ लोगों का मानना है कि यह पाकिस्तानी तत्व है जो नहीं चाहते कि कश्मीर के युवा पढ़ें-लिखें या नफरत की पाठशाला के बाहर भी झांके। ऐसे तत्व नहीं चाहते कि कश्मीर और दिल्ली के बीच की दूरी कम हो क्योंकि इन लोगों को ऐसा करने के पैसे मिलते हैं जो पाकिस्तान देता है।

वहीं सबसे बड़ा जिम्मेदार वहां का सोशल मीडिया और मीडिया है जो ऐसी सकारात्मक चीजों के लिए सक्रिय नहीं है। जायरा वसीम के लिए कश्मीरी मीडिया ने कुछ नहीं छापा जिससे वह प्रोत्साहित हो सकती। किसी ने नहीं कहा कि हमारी बेटी दंगल जैसी फिल्म के लिए चुनी गई है ऐसे और लड़कियां भी अपना मुकाम हासिल कर सकती हैं। कश्मीरी मीडिया चुप्पी साधे रहा और वही लोग जिन्हें जायरा की हौसलाफजाई करनी चाहिए थी वह कह रहे हैं उन्होंने उसे डराया- धमकाया नहीं। अगर जायरा वसीम को धमकाया नहीं गया तो उसे प्रोत्साहित भी नहीं किया गया। जायरा को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया। कश्मीर में वो लोग भी हैं जो ज्ञानपीठ के हकदार रहे हैं। वो संवेदनशील कवि कहां हैं, लेखक कहां है जो कश्मीर में बदलाव की बयार बहा सकते हैं। अगर वह इसी तरह चुप्प बैठे रहेंगे तो कश्मीर और कश्मीर की बेटियों को ट्रोल होने से कोई नहीं बचा पाएगा।

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करीब सवा करोड़ की आबादी वाला जम्मू कश्मीर भारत का एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य है। कश्मीर घाटी की 97 फीसदी जनता मुसलमान है। अलगाववादियों का एक ही एजेंडा रहता है कि वहां पर आजादी का झूठा प्रचार किया जाता रहे या फिर इस्लाम का डंका बजता रहे । यही वजह है कि आज कश्मीर में पहले से ज्यादा लड़कियां वह नहीं कर पाती जो वह करना चाहती हैं। धर्म को उनके काम के आड़े ला दिया जाता है। जायरा का फेसबुक पर पोस्ट कि ‘वह रोल मॉडल नहीं बनना चाहती’ उन अलगाववादियों की सनक और घबराहट का सबूत है जो नहीं चाहते कि कश्मीर के युवा मुख्यधारा से जुड़ें। जायरा ऐसे राज्य की रोल मॉडल कैसे हो सकती है जहां रोल मॉडल के तौर पर सोशल मीडिया पर एके 47 लिए आतंकवाद प्रचारित किया जाता हो।

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जायरा को हौसला देने के लिए कश्मीर की अवाम चुप्प जरुर है लेकिन देश उसके साथ खड़ा नजर आ रहा है। अब ट्विटर पर जायरा वसीम को #Rolemodel के रूप में प्रसारित किया जा रहा है।

https://twitter.com/aamir_khan/status/821245282746646528

जम्मू-कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती ने भी कहा है कि जायरा वसीम कश्मीर के रोल मॉडल हैं। ऐसा किया जाना जरुरी भी है उस राज्य के लिए जहां शांति एक आस हो गई है, जहां आतंकवाद कुछ लोगों का धंधा हो गया है, जहां लड़कियां गुलामी की जिन्दगी जी रही हैं, जहां बंदूकों के अलावा किसी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाना जुर्म हो गया हो। ऐसा किया जाना इसलिए भी जरुरी है ताकि वो लोग उन मंसूबों में कभी कामयाब ना हों सकें जिनके इरादों में उस राज्य, देश की शांति भंग करना हो।

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