पिछले दिनों संसद में शत्रु संपत्ति कानून संशोधन विधेयक पारित हो गया। इस संशोधित कानून का उन पक्षकारों पर असर पड़ेगा जो कई वर्षों से शत्रु संपत्ति की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हीं पक्षकारों में से एक हैं महमूदाबाद रियासत के राजा मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान। उनके पिता अमीर अहमद खान 1957 में पाकिस्तान चले गए थे लेकिन उनकी पत्नी और बेटा भारत में रह गए। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में राजा महमूदाबाद की करीब 1,300 अचल संपत्तियां हैं। संशोधित शत्रु संपत्ति विधेयक को राजा महमूदाबाद दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं लेकिन कानूनी लड़ाई लड़ने का इरादा उन्होंने छोड़ा नहीं है। इस विधेयक के पास होने और इसके कानून बन जाने के बाद इससे जुड़े पक्षकारों को किन मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा, इन्हीं मसलों पर अभिषेक रंजन सिंह ने उनसे लंबी बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश :-
आप कई वर्षों से शत्रु संपत्ति पर अपने मालिकाना हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। संशोधित कानून से आपकी लड़ाई पर कितना असर पड़ेगा?
मैं पूरी तरह शत्रु संपत्ति कानून को गलत नहीं ठहराता। हुकूमत की अपनी कुछ नीतियां होती हैं। भारत सरकार ने 1968 में शत्रु संपत्ति कानून बनाया। इसके तहत जिन देशों से हमारी लड़ाइयां हुर्इं और उन देशों में जाकर बसने वाले लोगों की जो संपत्तियां भारत में रह गर्इं उन्हें सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया। देश का बंटवारा होने के बाद काफी तादाद में लोग पाकिस्तान चले गए। उनमें कुछ ऐसे भी लोग थे जो अकेले पाकिस्तान गए और उनका बाकी परिवार भारत में ही रह गया। ऐसी सूरत में उनकी भी संपत्तियों को सरकार शत्रु संपत्ति घोषित कर उस पर कब्जा कर ले, यह गैर इंसानी कार्रवाई है। मिसाल के तौर पर मेरे वालिद राजा महमूदाबाद अमीर अहमद खान 1957 में पाकिस्तान चले गए। लेकिन मैं और मेरी वालिदा यहीं भारत में रह गए। ऐसे में हमारी जायदाद को शत्रु संपत्ति घोषित कर उसे कस्टोडियन के हवाले कर देना कहां का इंसाफ है। यह मुल्क हमारा है लेकिन इस मुल्क में हमारे पुरखों की जायदाद पर हमारा कोई हक नहीं होगा यह कहां का इंसाफ और इंसानियत है? मैं इसी के खिलाफ पिछले कई वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहा हूं। जहां तक संसद में पारित नए संशोधन विधेयक का सवाल है तो उसमें कई खामियां हैं। मसलन, वर्ष 1968 के बाद जितनी भी शत्रु संपत्ति की खरीद-बिक्री हुई है उसे रद्द कर दिया जाएगा। इस बाबत कोई पीड़ित पक्ष निचली अदालत में मुकदमा दायर नहीं कर सकता। नए शत्रु संपत्ति कानून के तहत अब कोई भी अपील या मुकदमा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही किया जा सकता है। लिहाजा, गरीब आदमी जिसने दो कमरे का मकान जो शत्रु संपत्ति है, को खरीदा हो वह कहां से इतना पैसा लाएगा कि वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ सके। फर्ज करें एक ऐसा काश्तकार जिसके पास दो-ढाई एकड़ जमीन है और वह शत्रु संपदा है तो जरा उसकी परेशानियों का अंदाजा लगाएं। वह गरीब किसान अपने खेतों में हल चलाएगा कि कोर्ट का चक्कर लगाएगा। नया शत्रु संपत्ति कानून लागू होने के बाद अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ेगा। साथ ही भूमि विवाद में भी इजाफा होगा जो भविष्य में हिंसक भी हो सकता है।
आपकी कितनी ऐसी संपत्तियां हैं जिन्हें शत्रु संपत्ति घोषित किया गया है। इसके खिलाफ किन-किन अदालतों में आप मुकदमा लड़ रहे हैं?
मेरी कुल 1,300 अचल संपत्तियां हैं। इनमें 950 वक्फ संपत्ति है जिनमें कई इमामबाड़े और मस्जिदें हैं। वक्फ संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित नहीं करना चाहिए क्योंकि इन संपत्तियों से मुख्तलिफ लोगों को इमदाद दी जाती है। इसके अलावा 350 संपत्तियां खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में हैं। इन संपत्तियों में ज्यादातर काश्त की जमीनें और बाग-बगीचे हैं। हमारी तमाम संपत्तियां महमूदाबाद, लखनऊ, सीतापुर, लखीमपुर, देहरादून और नैनीताल में हैं। हमारी तमाम संपत्तियों को सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया है। इसके खिलाफ मैंने 1986 में लखनऊ सिविल कोर्ट में सक्सेशन एक्ट के तहत उत्तराधिकार वाद दायर किया। सिविल कोर्ट ने मुझे उत्तराधिकारी घोषित किया। उसके बाद मैंने बांबे हाई कोर्ट में कस्टोडियन और सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया कि वह मेरी तमाम संपत्तियों को रिलीज करे। सितंबर 2001 में जस्टिस लोढ़ा व जस्टिस म्हात्रे की बेंच ने मेरी तमाम जायदाद जिसे शत्रु संपदा घोषित कर जब्त की ली गई थी उसे रिलीज करने का आदेश दिया। मेरे हक में आए इस फैसले से केंद्र की तत्कालीन एनडीए सरकार बौखला गई। तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस बाबत खबरें भी आर्इं। केंद्र सरकार ने बांबे हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भान और अल्तमस कबीर की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए मेरी तमाम संपत्तियों को रिलीज करने का आदेश सरकार को दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भी केंद्र सरकार के लिए झटका था। उसके बाद यूपीए सरकार जुलाई 2010 में शत्रु संपत्ति कानून पर कैबिनेट से पारित एक अध्यादेश लेकर आई। इस अध्यादेश के मुताबिक, साल 1968 से एनीमी प्रॉपर्टी से जुड़े टेम्परेरी वेस्टिंग को परमानेंट वेस्टिंग करार दिया गया। केंद्र सरकार के इस अध्यादेश को मैंने अगस्त 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी। साल 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मुकदमे को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया। साल 2014 में एनडीए की हुकूमत आने के बाद 7 जनवरी, 2016 को केंद्र सरकार ने शत्रु संपत्ति से जुड़ा एक और अध्यादेश पारित किया। इस अध्यादेश में भी वैसे ही प्रावधान थे जिससे शत्रु संपत्ति पर मालिकाना हक की लड़ाई लड़ने वालों के लिए सभी रास्ते बंद हो जाएं। इसके खिलाफ मैंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है कि अगर अध्यादेश गलत है तो शत्रु संपत्ति कानून भी गलत है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में हमारी कुल 1,300 संपत्तियों को रिलीज करने संबंधी मामला लंबित है। मुझे मुल्क की आलिया अदालत पर यकीन है कि वह हमारे साथ नाइंसाफी नहीं होने देगी। राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी तमाम संपत्तियों पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश नहीं दिया होता तो सरकार हमारी संपत्तियों को खुर्द-बुर्द करने में कोई कसर नहीं छोड़ती।
क्या इससे पहले भी केंद्र सरकार ने शत्रु संपत्ति कानून में संशोधन किया है?
1968 में शत्रु संपत्ति कानून बना। कानून बनने के बाद कई लोगों की संपत्तियों को कोर्ट ने वापस करने का आदेश दिया। इस कानून में पहला संशोधन 1971 में और दूसरा संशोधन 1977 में हुआ। तब मामूली तब्दीलियां की गई थीं। लेकिन अब जिस तरह के संशोधन हुए हैं उसका मकसद पूरी तरह गलत है।
देश के किन शहरों में शत्रु संपदा अधिक हैं और कितने मामले फिलहाल अदालत में चल रहे हैं?
लखनऊ, हैदराबाद, कोलकाता, आगरा, दिल्ली, भोपाल, पटना, मुंगेर, बेंगलुरू आदि शहरों में शत्रु संपत्तियां अधिक हैं। साल 2010 में देश की विभिन्न अदालतों में शत्रु संपत्ति से जुड़े 2000 मामले लंबित थे लेकिन अब इनकी संख्या 18,000 के करीब है। शत्रु संपत्ति कानून में हालिया संशोधन के बाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों का बोझ बढ़ सकता है।
महमूदाबाद में आपकी हवेली पर तमाम बड़े स्वतंत्रता सेनानी और नेता आते थे लेकिन आपके वालिद ने सियासत में आने का फैसला क्यों नहीं किया?
मेरे वालिद का सियासत से कभी कोई वास्ता नहीं रहा। उन्हें पढ़ने-लिखने का शौक था। उन दिनों के मकबूल शायर अल्लामा इकबाल, मजाज, फैज अहमद फैज आदि शायरों से उनकी दोस्ती थी। वह चाहते थे कि पाकिस्तान भी एक धर्मनिरपेक्ष मुल्क बने जहां हर मजहब को मानने वाले लोगों को बराबर का हक मिले। अगर वह चाहते तो सियासत में आ सकते थे लेकिन यह रास्ता उन्हें कभी पसंद नहीं आया। उन दिनों कई बड़े नेताओं ने उनसे राजनीति में आने को कहा लेकिन उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला। उनका वामपंथ से ज्यादा लगाव था। मेरे वालिद ने ताउम्र खादी से बने कपड़े पहने। हमारे महमूदाबाद के महल में महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, बालगंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, चितरंजन दास, सरोजनी नायडू, आचार्य नरेंद्र देव जैसी शख्सियतों का आना हुआ है। साल 1916 का कांग्रेस अधिवेशन भी महमूदाबाद में हुआ था जिसमें मुहम्मद अली जिन्ना भी आए थे।
पिता के उलट आप राजनीति में आए और विधायक भी बने। सियासत में आने की क्या वजह रही?
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मेरी अच्छी मित्रता थी। सियासत में आने की मेरी कोई ख्वाहिश नहीं थी। लेकिन राजीव जी के दबाव में मुझे चुनाव लड़ना पड़ा। 1985 में कांग्रेस के टिकट पर मैं महमूदाबाद से चुनाव लड़ा और विधायक बना। 1989 के चुनाव में बोफोर्स घोटाले की वजह से कांग्रेस प्रत्याशी हार रहे थे, बावजूद इसके मैं चुनाव जीतने में सफल रहा। राजनीति में बढ़ते धनबल, बाहुबल और जातिवाद की वजह से मैंने सियासत से दूरी बना ली। मैंने राजीव गांधी को अपने इस फैसले की जानकारी दे दी थी।