निशा शर्मा ।
टीवी स्क्रीन ने लम्बा दिखना खूबसूरती का सबसे बड़ा मापदंड साबित कर दिया है । यही वजह है कि लोग कम लम्बाई को अपनी खूबसूरती में बाधा मानने लगे हैं। लड़का हो तो वो खुद को रितिक रोशन से कम नहीं देखना चाहता वहीं लड़की हो तो वो खुद को सुष्मिता सेन से कम नहीं आंकना चाहती। यही वजह है कि आजकल खासकर युवा पीढ़ी में अपने लम्बाई को बढ़ाने की प्रवृति दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इसके लिए ये पीढ़ी किसी भी तरह का जोखिम उठाने से भी परहेज नहीं कर रही है। हालांकि डॉक्टरों का मानना है कि थोड़ी सी लम्बाई के लिए ये पीढ़ी अपने भविष्य को खतरे में डालने को भी तैयार है।
देश में अंगो को लम्बा करने का एक अनियंत्रित उद्योग लगातार पैर पसार रहा है। जिसकी तरफ युवा चुम्बक की तरह आकर्षित हो रहे हैं। इतनी जटिल सर्जरी को करवाने के पीछे वजह लोगों के मन में उम्मीद है कि वो उस सर्जरी से लम्बे हो जाएंगे, जिससे कि वो खूबसूरत तो दिखेंगे ही साथ ही उन्हे अच्छी नौकरी और अच्छा जीवन साथी भी मिल जाएगा।
लम्बाई की इस दौड़ में भारत ही नहीं विदेशी भी शामिल हैं। विदेशों से आए लोग कुछ ईंच के लिए अपनी जिन्दगी को दाव पर लगाने से भी नहीं कतरा रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि यह सर्जरी इतनी जोखिम भरी है कि लोगों को अपंग तक कर सकती है लेकिन इसके बावजूद लोग इस सर्जरी की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
भारत में उस उद्योग के अनियंत्रित होने की वजह से कई जगह ऐसे सेंटर उपल्बध हैं जो इस सर्जरी को करते तो हैं लेकिन सर्जरी सफलता और असफलता का भरोसा नहीं देते । लोग अच्छे भविष्य की संभावनाओं के चलते इस सर्जरी की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। रिसर्च बताते हैं कि ऐसे भी लोग हैं जिनका कद थोड़ा छोटा है वो खुद में हीनभाव का शिकार हो जाते हैं। जिसकी वजह से ऐसे लोग इस तरह की सर्जरी की ओर आकर्षित होते हैं। कई युवाओं को यह भी लगता है कि अच्छे जीवनसाथी और अच्छी नौकरी के लिए लम्बा कद होना जरूरी है। हालांकि कई ऐसे मामले भी हैं जिसमे सर्जरी के बाद लोगों की लम्बाई में बिना नुकसान के बढोतरी हुई है। जिसके बाद उन्होने माना कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा है साथ ही उन्होने कई लोगों को ये सर्जरी करवाने की सलाह भी दी है।
जबकि देश की राजधानी दिल्ली में हड्डियों के डॉक्टर अमर सरीन के मुताबिक यह सर्जरी सबसे कठिन सर्जरी में से एक है और लोग एक से दो महीने के बीच में इसे अंजाम दे देते हैं जो की खतरनाक साबित हो सकता है। सरीन बताते हैं कि देश में अब तक कोई भी ऐसी संस्था नहीं बनी है जो इस तरह की सर्जरी को करने की ट्रेनिंग देती हो लेकिन इसके बावजूद ऐसी सर्जरी बडे स्तर पर हो रही हैं।
माना जाता है कि इस तरह का पहला आप्रेशन सिबेरिया के कुर्गन नाम के छोटे से कस्बे में पोलिश के गैवरिल लिजारोव नाम के एक शख्स ने 1950 में करवाया था। आप्रेशन का मतलब जन्म की विकलांगता को ठीक करना था। आप्रेशन की इस प्रक्रिया में हड्डियों को तोड़ कर उन्हे बढ़ाना था। मरीज को तब तक ब्रेसिज पहनने थे जब तक कि जन्म की विकलांगता ठीक ना हो जाए और वो पहले की तरह ही चलने फिरने लग पड़े। यहीं से इस सर्जरी की शुरूआत हुई।
आज के समय में भारत इस तरह की र्सजरी का प्रमुख केन्द्र बन गया है । डॉक्टर सरीन पिछले पांच सालों से इस व्यवसाय से जुड़े हैं और अब तक करीब 300 लोगों की सर्जरी कर चुके हैं। यही नहीं सरीन का कहना है कि उनके पास प्रतिदिन करीब 20 फोन इस सर्जरी के लिए आते हैं। जिसमें से एक तिहाई लोग भारतीय होते हैं। विदेशों से लोगों का आने का मुख्य कारण यही है कि भारत में कम पैसों में अच्छे डॉक्टरों के जरिये इलाज हो जाता है। वहीं अमेरिका और यूरोप की बात करें तो भारत से चार से पांच गुना कीमत पर यह इलाज उपल्बध है।