सिक्किम सीमा से मनोज कुमार।
रात में सीमा के आखिरी गांव कुपुक में जहां रुका, वह एक बुजुर्ग का घर था। घर क्या एक टीन का झोपड़ा था। उसने मुझे वहां रात रहने दिया। ड्राइवर ने उसे समझा दिया था। मैंने उसे तुरंत पैसे दिए। वह खुश हो गया। झोपड़ा तीन हिस्सों में बंटा था। एक में दुकान थी, एक तरफ रसोई और एक ओर सोने की जगह। पर्दे से पार्टिशन था। मैं एक कमरे में आ गया। इस गांव की आबादी मात्र सौ सवा सौ लोगों के करीब होगी। जबकि यहां फौजियों की संख्या पांच सौ के आसपास थी। अंधेरा होते ही फौजी उस दुकान पर आ गए। दुकान के साइड में खाली जगह पर बैठ कर अंदर से मैं उनकी बात सुन रहा था। इसमें कुछ फौजी बार्डर से आए, कुछ जाने वाले थे। वहीं पता चला कि जाट रेजिमेंट को बार्डर पर लगाया गया है। इसमें भी उन फौजियों को लगाया जो छह फीट लंबे हैं। क्योंकि चीनी सैनिकों का कद छोटा है। एक नया सैनिक बता रहा था बारिश में वह अपना मुंह भी साफ नहीं करता। उसने बताया कि बरसात की वजह से मुंह लाल हो गया, लेकिन मजाल है एक बार भी ड्यूटी के दौरान वह हाथ आंखों पर लेकर आया हो। एक सैनिक बोल रहा था कि साले चीनी इतने छोटे हैं कि मन करता है दबोच लूं। लेकिन आर्डर नहीं है ना…। अंदर कमरे में बैठा मैं उनकी सारी बातें सुन रहा था। फौजियों की बातों से लग रहा था कि जंग तो शायद ही होगी। तभी एक यंग फौजी ने वह किस्सा सुनाया कैसे चीनी पोकलेन (सड़क बनाने की बड़ी मशीन) के सामने हमने डोजर (अर्थमूविंग मशीन) लगा दी है। फौजियों ने कहा कि यार बार्डर पर जंग जैसी बात तो नहीं है, लेकिन मीडिया ने ऐसा हौवा बना दिया कि घरवालों का रोज फोन आ रहा कि क्या हुआ। इस दुकान पर फौजी रात तकरीबन साढ़े 12 बजे तक महफिल जमाते रहे। यहां काफी रणनीतिक बातचीत भी हुई। मेरा मानना है, इसे सार्वजनिक करना देश हित में सही नहीं होगा। वहीं मुझे पता चला कि एक बार फिर से सेना बोफोर्स तोप पर यकीन कर रही है। इसे ही थर्ड लाइन में लगाया गया है। यहीं पर पता चला कि फर्स्ट लाइन में फौजियों को बिना हथियार के तैनात किया गया है। दूसरी लाइन के फौजियों के पास हथियार हैं। चीनी सैनिक भी ऐसा ही कर रहे हैं। फौजी उस घटना को भी याद कर रहे थे जब चीनी सैनिकों के साथ उनकी हाथापाई हुई। इसका वीडियो भी वे एक दूसरे को दिखा रहे थे। इस बैठक में एक सैनिक वह भी था जो इस हाथापाई में शामिल था। मैं सांस रोके उनकी बातचीत सुन रहा था। निश्चित था कि सैनिकों को मेरी उपस्थिति का पता नहीं चला था।
और खुल गया भेद
बुजुर्ग ने मुझे खाने के लिए पूछा। उसने बताया कि नानवेज और चावल है। भूख जबदस्त थी, लेकिन नानवेज खा नहीं सकता था, इसलिए मना कर दिया। जो बिस्तर मिला उसमें खटमल थे, पूरी रात करवट बदलते निकल गई। यहां सूरज कुछ जल्दी ही उग जाता है। रात भर बारिश के बाद सुबह धूप खिली हुई थी, मैं भी खुद को गर्म करने के लिए बाहर आ गया। बारिश के बाद गांव काफी सुंदर लग रहा था। मैं इसकी फोटो लेने के लिए एक चोटी पर चला गया। यह मेरी बहुत बड़ी गलती थी। सेना की नजर मुझ पर पड़ गई। गनीमत यह रही कि उसी वक्त वहां एक टैक्सी आई, इसमें वहां के स्थानीय लोग आए थे। सैनिकों को लगा कि मैं पर्यटक हूं और इसी टैक्सी में आया हूं। तभी व्हाट्सएप पर गंगटोक से मेरा परमिट बन कर आ गया। मैं निश्चिंत था और पूरे आत्मविश्वास के साथ सैनिकों के सवालों का जवाब देने लगा। सैनिक लगभग मेरी बातों में आ गए। लेकिन तभी एक सैनिक ने सारी जानकारी अपने कंपनी कमांडर को दे दी जो बार्डर पर था। उसने कहा कि सारे कागज चेक करो। तब सैनिकों ने मेरे कागज चेक किए। मैंने उन्हें दिल्ली सेना मुख्यालय के पीआरओ का पत्र दिखाया। इससे वे थोड़े संतुष्ट हुए, लेकिन मुझे कहा कि यहां से तुरंत वापस चले जाओ। मैंने कहा कैसे जाऊं, तो जो टैक्सी आई थी, इसके चालक को उन्होंने मुझे वापस छोड़ने के लिए कहा। मेरा भी काम लगभग पूरा हो गया था। मैं वापसी के लिए निकल पड़ा।
मुझे बंदूक की नोक पर हिरासत में लिया
अभी हम तकरीबन पंद्रह या बीस किलोमीटर गए होंगे, कई रातों से जगा था, काम हो गया था, इसलिए निश्चिंत था। मैं गाड़ी में सो गया। इसी बीच किसी ने मुझे झकझोर कर उठाया। मैंने पूछा क्या हुआ। अभी आंखें मल ही रहा था कि आठ दस सैनिकों ने पूरी गाड़ी को घेर लिया। मैं समझ गया, भेद खुल गया। अब क्या होगा। मेरे पास ऐसा कुछ नहीं था जो मुझे संदिग्ध बनाए। लेकिन मोबाइल में फोटो थी। जिस पर सैनिकों को आॅब्जेक्शन हो सकता था। मैं गाड़ी में ही बैठा रहा, चालक उतर गया। उसे सैनिक अपनी चौकी में ले गए, चार सैनिक गाड़ी के पास खड़े थे। अब मेरी पहली चिंता मोबाइल को ठिकाने लगाने की थी। एक मन हुआ मौका मिलते ही मोबाइल को नीचे फेंक दंू, लेकिन तब फोटो का क्या होगा? इतनी मेहनत फोटो के लिए ही तो की थी। क्या करें, मन में यही सवाल चल रहा था। इसी बीच एक और सैनिक आया, उसने मुझे कहा कि नीचे आ जाओ सर, आपको पानी पिलाना है। इसके बाद एक सैनिक आपकी गाड़ी में वापस कुपुक जाएगा। वहां हमारे साहब आपसे पूछताछ करेंगे। मैंने सोचा अब मोबाइल का खेल खत्म। मेरा दिमाग तेजी से काम कर रहा था। मैं किसी भी कीमत पर अपना मोबाइल सैनिकों के हाथ में नहीं देना चाहता था। हालांकि कोई ऐसी फोटो नहीं थी जो सुरक्षा की दृष्टि से आॅब्जेक्शन लायक हो। फिर भी सेना तो सेना है, क्या कर सकते हैं। मेरे पास दो मोबाइल थे। एक मोबाइल बंद था। मैंने तुरंत वही मोबाइल हाथ में लिया, दूसरा मोबाइल मेरी जेब में था। मैंने एक मोबाइल सामने खड़े फौजी को देते हुए कहा चेक कर लो, लेकिन इससे पहले इसे चार्ज करना होगा। यह डिस्चार्ज है। इसमें से एक फौजी चार्जर लेने चला गया। वहां अब दो फौजी रह गए। मैं भी चौकी में चला अया। वहां पेट्रोमैक्स जल रहा था। इसी बीच एक कॉल आई। वह उनके कमांडर की थी, उसने कहा कि मोबाइल चेक कर लो। इधर फौजी एक चार्जर लेकर आए, मोबाइल में लगाकर चार्ज होने का इंतजार करने लगे। इसी बीच मुझे मौका मिल गया। गाड़ी के पास आया, तेज बारिश थी, इसलिए गाड़ी में बैठने का बहाना बनाते हुए ड्राइवर की साइड से जेब में रखा मोबाइल गाड़ी की छत पर रख दिया। क्योंकि यह टैक्सी थी, इस पर सामान रखने का जाला सा होता है। इसमें मोबाइल आते ही मैं निश्चिंत हो गया। इधर चौकी में फौजी मेरे मोबाइल का मुआयना करने में लग गए। उन्हें मोबाइल की ज्यादा जानकारी नहीं थी, फिर भी जितना कर सकते थे किया, इस मोबाइल में कुछ था ही नहीं। लिहाजा मिलता भी क्या। वे बार-बार अपने कमांडर को सारी बात बता रहे थे। इसी बीच वे यह भी कोशिश कर रहे थे कि उनकी इस जांच का मैं बुरा न मानूं, इसलिए वे मेरे साथ कड़क लेकिन अदब से बात कर रहे थे। इस मोबाइल में कुछ नहीं मिला। उन्होंने कहा कि दिल्ली सेना मुख्यालय का पत्र दिखाओ… अब नई समस्या।
क्योंकि वह पत्र तो उस मोबाइल में था, जो गाड़ी की छत पर पड़ा था। मैंने उन्हें कहा कि इसी मोबाइल में वह पत्र था, मैंने कुछ फोटो लिए थे, लेकिन कुपुक में जब सैनिकों ने मुझे फोटो लेने से मना किया तो मैंने सारे फोटो डिलीट कर दिए। वह पत्र भी इसी में डिलीट हो गया। लेकिन कमांडर को यकीन नहीं आ रहा था। उसने कहा कि पूरी गाड़ी की तलाशी लो। मेरा सारा सामान चेक किया, अब लैपटॉप मिल गया। उन्होंने लैपटाप की जानकारी अपने कमांडर को दी। गुजारिश की कि साइबर विशेषज्ञ को भेज दो, ताकि लैपटाप और मोबाइल की जांच अच्छे से हो सके। मैं निश्चिंत था कि चाहे जिसे मर्जी बुला लें, अब इनके काबू नहीं आने वाला। आखिकार वे मेरी तलाशी लेकर थक गए। इसी बीच उन्होंने कहा कि सर खाना खाया, मैंने कहा नहीं। उन्होंने कहा चलो आपको खाना खिलाते हैं। मैने गुस्सा दिखाते हुए मना कर दिया। इसी बीच उन्होंने थर्मस से चाय निकाली और मुझे दी सर चाय पी लो हमसे नाराज मत हो हमारी ड्यूटी है।
आखिरकार उन्हें कुछ मिलना भी नहीं था। उन्होंने कमांडर से पूछा अब क्या करें, कमांडर ने कहा रिपोर्टर से बात कराओ। उसने सॉरी बोला और कहा कि उनकी ड्यूटी है, इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं। मैंने कहा कि आपने गलत किया। हथियार दिखा कर इस तरह से किसी को आप हिरासत में नहीं ले सकते। इसी बीच वहां एक ओर आॅफिसर जिप्सी में आ गया। उसने वहां हमें देख कर पूछा क्या हुआ। बेरिकेटड के सैनिकों ने उन्हें पूरी बात बताई, इस पर उसने कहा कि ये रिपोर्टर है। कपड़ों में भी कैमरा छुपा सकते हैं। अच्छे से तलाशी लो। खैर खूब तलाशी हुई, जब कुछ नहीं मिला तो फाइनली हमें जाने की इजाजत मिल गई। लेकिन इसी बीच उन्हें यह पता चल गया कि मेरे पास यहां आने का परमिट है। अब यह परमिट कैसे बना, कमांडर इस खोजबीन में लग गया। इधर हमें जाने दिया। लेकिन एक जिप्सी हमारे पीछे-पीछे आ रही थी। मैं जैसे ही गेस्ट हाउस गया, वहां के मैनेजर ने मुझे तुरंत कमरा खाली करने को कहा। मेरा भी काम हो गया था। मैंने गाड़ी वाले को रोक लिया। उसे चाय पिलाई। इसी बीच मैंने गाड़ी के फुटरेस्ट पर चढ़ कर देखा तो पाया कि मोबाइल वहीं पड़ा था। मैंने तुरंत मोबाइल उठा कर जेब में डाल लिया। गेस्ट हाउस से सामान ले, मैं तुरंत सिलीगुड़ी की ओर रवाना हो गया।
रास्ते में मुझे फिर यही लगा कि कोई पीछा कर रहा है। लेकिन फिर हुआ कुछ नहीं। मैं सिलीगुड़ी से होता हुआ सीधा बागडोगरा एयरपोर्ट आया। चेकइन किया, लेकिन तभी पता चला हवाई जहाज दो घंटे लेट है। मैं परेशान, यह एयरपोर्ट डिफेंस का है, ऐसे में कुछ भी हो सकता था। फिर भी सोचा जब इतने मामले से निकल आए तो यहां भी देख लेंगे। आखिरकार सात बजे फ्लाइट आई, मैं लगभग भागते हुए फ्लाइट की ओर बढ़ा। कागज चेक कराए। लगभग पंद्रह मिनट बाद जब फ्लाइट टेकआॅफ के लिए तैयार हुई, तब भी लगा कि कुछ हो न जाए। आखिरकार वह क्षण भी आ गया जब फ्लाइट ने टेकआॅफ के लिए स्पीड पकड़नी शुरू कर दी। एक झटके में जैसे ही फ्लाइट ने रनवे को छोड़ा मैंने एक लंबी सांस ले खुद को कुर्सी पर ढीला छोड़ दिया। अब कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मेरा मिशन पूरा हो चुका था।