मलिक असगर हाशमी
हरियाणा में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो पर उसे चलाते नौकरशाह ही हैं। वह भी अपनी मनमर्जी से। ऐसे कई उदाहरण सामने आ चुके हैं। इसी कड़ी में ताजा मामला सामने आया है जिसमें चार सौ ऐसे निजी खातों का पता चला है जिसे सरकारी निगमों, बोर्डों के अध्यक्षों ने अपने नाम से खुलवाया था पर इसमें जमा कराया जाता था विकास कार्य सहित अन्य कार्यों के लिए आया सरकारी धन। इनसे मिलने वाला लाखों-करोड़ों का ब्याज विभागाध्यक्ष खुद डकार जाते थे।
पिछली सरकारों से चला आ रहा यह गोरखधंधा मौजूदा सरकार में भी जारी रहा। इस पर सूबे के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु बेबस होकर कहते हैं, ‘कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि ऐसे अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा सके।’ हालांकि ऐसे ही एक मामले में इसी भाजपा सरकार में एक अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है और अभी सीबीआई जांच चल रही है। पंचकूला के जिला राजस्व अधिकारी रहे नरेश श्योकंद पर आरोप है कि उन्होंने सरकार से मिले 1,300 करोड़ रुपये अपने निजी खाते में जमा करा कर इससे मिलने वाला ब्याज डकार लिया। इस मामले में श्योकंद जमानत पर चल रहे हैं।
दरअसल, अधिकारियों का यह गोरखधंधा हाल ही में आए महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से सामने आया है। इसमें कहा गया है कि विभागाध्यक्ष सरकारी कार्यों के लिए मिलने वाले धन को अपने निजी खाते में डलवा कर इससे मिलने वाला ब्याज हड़प रहे हैं। सीएजी ने ऐसे 400 निजी खातों का ब्योरा भी दिया है। हरियाणा में 85 सरकारी निगम और 83 निगम-बोर्ड हैं। ब्याज खाने का सारा खेल इन्हीं निगम-बोर्डों में चल रहा है। मजे की बात है कि इस गोरखधंधे की खबर पिछली हुड्डा सरकार को भी थी और मौजूदा खट्टर सरकार को भी। मगर न तो पिछली सरकार ने ऐसे अधिकारियों पर हाथ डालना जरूरी समझा और न ही मौजूदा सरकार ऐसे मामले में अपनी इच्छा शक्ति दिखा रही है। प्रदेश सरकार में प्रधान सचिव और रॉबर्ट वाड्रा-डीएलएफ जमीन सौदे के म्यूटेशन रद्द कर सुर्खियों में आए अशोक खेमका कहते हैं, ‘निजी खातों में सरकारी पैसे रखना और उसका किसी तरह का दुरुपयोग अपराध की श्रेणी में आता है। सरकार को ऐसे मामले में मुकदमा दर्ज कराने का अधिकार है।’ हरियाणा के एडवोकेट जनरल बलदेव राज महाजन के मुताबिक, ‘किसी अफसर के अपने नाम से खाता खुलवाना मिस कंडक्ट तो है। रहा सवाल कार्रवाई का तो यह वित्तीय हानि और सरकार के रुख पर निर्भर करता है।’ इसी तरह प्रदेश के सीएम फ्लाइंग के आईजी राजेंद्र कुमार की राय है कि ऐेसे मामलों में एफआईआर का प्रावधान है। यह अलग बात है कि सरकार मुकदमा दर्ज कराती है या नहीं।
ऐसे में सवाल उठा रहे हैं कि यदि सरकारी पैसे का निजी कार्यों पर खर्च करने पर मुकदमे का प्रावधान है तो पिछली सरकारों और मौजूदा सरकार ने 400 खाताधारकों के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की? इस बाबत वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु कहते हैं, ‘इसका पता चलते ही ऐसे समस्त खातों की पहचान करा कर उसे बंद करा दिया गया। रहा सवाल दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का तो एक प्रक्रिया होती है और किसी भी गुंजाइश से इनकार नहीं किया जा सकता।’
दरअसल, हरियाणा में नौकरशाही इस कदर हावी है कि सरकार चलाने वालों की उनके सामने चलती ही नहीं। तमाम प्रयासों के बावजूद वही चलता रहता है जो नौकरशाह चाहते हैं। इस तरह की खबरें अकसर आती रहती हैं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उनके मंत्रियों की अधिकारी सुनते ही नहीं हैं। खट्टर सरकार की 1,400 घोषणाएं ऐसी हैं जो अधिकारियों को पुचकारने और हड़काने के बाद भी अब तक पूरी नहीं हो पाई हैं। इससे मुख्यमंत्री और मंत्री इस कदर परेशान हैं कि चुनावी वर्ष में उन्होंने नई घोषणाएं करने से तौबा कर ली है। पुरानी 1,400 घोषणाओं मेंं प्रदेश से अपराध के खात्मे के लिए हरकोका, हरियाणा आपदा प्रबंधन फोर्स का गठन, हरियाणा पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में योग शिक्षा शुरू करना, कैदियों की नीति में विशेष सुधार, हरियाणा पुलिस ट्रेनिंग सेंटर के लिए साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये की लागत से 3,060 आवास बनाना भी शामिल है। खट्टर सरकार ने अब तक 4,600 घोषणाएं की हैं जिनमें से 3,200 ही सिरे चढ़ पार्इं। बाकी 1,400 घोषणाएं सरकार के गले का फांस बनी हुई हैं। इस कारण सरकार विपक्ष ही नहीं अपनों का भी निशाना बनी हुई है।
यही नहीं, अधिकारी सूबे के सत्तारूढ़ दल के सुशासन की अवधारणा की राह में भी रोड़ा बने हुए हैं। फरीदाबाद के तिगांव से कांग्रेस विधायक ललित नागर कहते हैं, ‘घोटालों एवं भ्रष्टाचार में घिरी खट्टर सरकार की साख गिरी है। अधिकारी भ्रष्टाचार की रोकथाम में खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। 22 विभागों से मिली भ्रष्टाचार की 202 शिकायतों को लेकर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिशें अतिरिक्त मुख्य सचिवों एवं विभागाध्यक्षों ने रद्दी की टोकरी में डाल रखी है। भ्रष्टाचार की सर्वाधिक शिकायतें नगर योजना विभाग और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण से संबंधित हैं। दूसरे नंबर पर विकास एवं पंचायत विभाग एवं तीसरे पर सहकारिता विभाग है।’ विजिलेंस का भी आरोप है कि अधिकारियों की कारगुजारियों की जानकारी उनके विभागाध्यक्षों को पहले से थी। फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। मुख्यमंत्री मनोहर लाल से नाराज चल रहे विधायक आरोप लगा चुके हैं कि मुख्यमंत्री सचिवालय में कई ऐसे आला अधिकारी तैनात हैं जिनके भ्रष्टाचार में लिप्त रहने के खिलाफ वे सत्ता में आने से पहले से आंदोलन करते रहे हैं।