सुनील वर्मा
पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का देहावसान 94 साल की उम्र में हुआ। लेकिन इस बात को कम ही लोग जानते हैं कि वाजपेयी का अपने जीवनकाल में सबसे लंबा, गहरा और करीबी रिश्ता जिस शख्स के साथ रहा वो थे उनके निजी सहायक शिवकुमार पारिक। 80 साल के पारिक करीब 51 साल मृत्यु के समय तक साये की अटल जी के साथ रहे। शिवकुमार पारिक बताते हैं कि वे अटल जी के पीर, बावर्ची, भिश्तीकर सभी कुछ थे यानी निजी सहायक के अलावा वे उनके ड्राइवर, केयर टेकर, सलाहकार, रसोइया से लेकर और सखा की भूमिका भी निभाते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी को अगर किसी ने करीब से समझा तो वे पारिक ही हैं। पचास साल से अटल जी के साथ रहे जयपुर निवासी शिवकुमार पारिक से वाजपेयी जी के देहावसान के बाद जब डिफेंस कालोनी स्थित उनके निवास पर मुलाकात हुई तो वहां बेहद गमगीन माहौल था। अटल जी से जुड़े संस्मरणों पर बातचीत के दौरान कई बार शिवकुमार भावुक हो गए और उनकी आंखों में पानी भर आया।
अतीत की स्मृतियों को कुरेदते हुए शिवकुमार पारिक फख्र से बताते हैं- ‘आज यह जो कारवां जनसंघ से बीजेपी तक पहुंचा है इसे यहां तक पहुंचाने में अटल जी की बहुत बड़ी मेहनत है।’ पारिक बताते हैं कि अटल जी ने कहा था कि एक दिन भारतीय जनता पार्टी का परचम पूरे देश में फहरेगा। चार साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी की ऐतिहासिक जीत और पूरे देश में पार्टी का परचम फहराने की खबर अटल जी ने टीवी पर देखी थी तो उन्होंने अपनी पलकें झपकाकर आंखों के इशारे से बोला था कि आज उनका सपना पूरा हो गया।
शिवकुमार बताते हैं कि वे 1967 में अटल जी के साथ बतौर निजी सहायक जुडेÞ थे। अटल जी 1951 में पत्रकार के नाते काम करते थे और संघ के प्रचारक थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उन्हीं दिनों जनसंघ की स्थापना की थी। उन्होंने गुरु गोलवलकर जी से इस राजनीतिक संगठन को बढ़ाने के लिए दो सबसे अच्छे लोग देने की मांग की तो, गुरु जी ने उन्हें जो दो लोग दिए उनमें एक थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय और दूसरे थे अटल बिहारी वाजपेयी। यहीं से अटल जी का राजनीतिक सफर शुरू हुआ। 1952 में अटल जी ने लखनऊ से सरोजनी नायडू के खिलाफ अपना पहला चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। बाद में 1957 का चुनाव उन्होंने जनसंघ के कार्यकर्ताओं के कहने पर बलरामपुर से लड़ा। दूसरा लोकसभा सभा चुनाव उन्होंने बलरामपुर के अलावा लखनऊ और मथुरा से भी लड़ा लेकिन वे लखनऊ से चुनाव हार गए और मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई। बलरामपुर में हुई जीत के बाद संसद में उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ था जिस कारण वे हमेशा खुद को बलरामपुर की जनता का ऋणी मानते थे। बलरामपुर के लोगों की मदद के लिए वे हमेशा तैयार रहते थे। एक वाकया याद करते हुए पारिक बताते हैं-अटल जी उन दिनों प्रधानमंत्री थे। वे हमेशा की तरह एक बार अपने चुनाव क्षेत्र लखनऊ में प्रतिनिधि मंडलों से मुलाकात के लिए गए हुए थे। करीब 85 साल के एक बुजुर्ग अटल जी से मिलने की जिद करते हुए एसपीजी के रोकने से लड़ने लगे तो मैंने हस्तक्षेप कर उन्हें बुलाया। अटल जी से उनकी मुलाकात कराई गई। पता चला कि बुजुर्गवार बलरामपुर से आए थे। अटल जी के पूछने पर बुजुर्ग ने कहा कि आपने पेट्रोल पंप लेने के लिए जो स्कीम निकाली है बलरामपुर का डीएम उसका रजिस्ट्रेशन नहीं कर रहा है। वह कहता है कि अगर कोई बड़ा आदमी या नेता जान पहचान का हो तो उससे लिखवा लाओ। बुजुर्ग ने अटल जी से कहा- ‘मैंने डीएम से बोल दिया है कि प्रधानमंत्री वाजपेयी से उनकी 30 साल पुरानी जान पहचान है, डीएम न कहा है कि ठीक है अगर तुम उनसे चिट्ठी लिखवा लाए तो पेट्रोल पंप मिल जाएगा।’ इतना भरोसा और विश्वास ……बस वाजपेयी जी बुजुर्ग को न जानने के बावजूद बलरामपुर निवासी होने के कारण डीएम को संबोधित एक पत्र लिखकर दिया, जिसमें लिखा था कि विधि सम्मत तरीके से उनके पेट्रोल पंप का पंजीकरण किया जाए। पारिक बताते हैं कि बाद में बुजुर्ग को पेट्रोल पंप आवंटित हो गया। इस बात को बाद में बलराम के बहुत से लोग जान गए।
अटल जी की महानता और उनके संवेदनशील मानवीय पहलुओं पर रोशनी डालते हुए पारिक एक और वाकये का जिक्र करना नहीं भूलते। वे बताते हैं कि उन दिनों मारुति वैन नई-नई बाजार में आई थी। एक मित्र ने नई वैन खरीदी, तो वह उनके पास फिरोजशाह रोड के फ्लैट पर वैन लेकर आया। मित्र ने अटल जी से वैन के सफर का आनंद लेने की जिद की तो अटल ने ग्वालियर चलने को कहा। ड्राइवर के साथ बगल की सीट पर बैठे पारिक अटल जी को लेकर मथुरा के फराह क्षेत्र से होकर गुजर रहे थे। तभी जानवरों के एक झुंड को देखकर उन्हें गाड़ी रोकनी पड़ी। जानवरों का बेड़ा निकलने के बाद जैसे ही वैन आगे बढ़ी तो पीछे कहीं दूर छूट गई एक भैंस तेजी से दौड़ती हुई आई और सड़क पार करने लगी। भैंस वैन से टकराई और वैन पलट गई, दुर्भाग्य से हादसे में भैंस की मौत हो गई। चंद लम्हों में ही सड़क पर बसे इस गांव के सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो गई। भैंस की मौत से सभी आक्रोश में थे, अटल जी उन्हें वस्तुस्थिति समझाकर उचित मुआवजा देना चाहते थे लेकिन वहां उग्र भीड़ जो उनकी पहचान से अंजान थी मरने मारने पर उतारू थी। उसके तेवर देखकर पारिक ने अपनी लाइसेंसी पिस्तौल से हवाई फायर कर पहले भीड़ को तितर बितर किया और फिर अटल जी को समझाते हुए जबरन गाड़ी में बैठाकर अपने साथ ले गए। अटल जी बेमन से वहां से चले तो गए लेकिन उन्होंने रास्ते में सबसे पहले पड़ने वाले सिकन्द्रा थाने में अपनी गाड़ी रुकवाकर पुलिस को सूचना देना अपनी ड्यूटी समझी। लेकिन किसी कार चालक ने पुलिस को पहले ही पहुंचकर बता दिया था कि हमारी वैन की टक्कर से भैंस की मौत हो गई है।
पुलिस वाले भी अटल जी को नहीं पहचानते थे। लिहाजा उन्होंने जब हमसे कटु बात करनी शुरू की तो अटल जी ने अपना परिचय दिया। उसके बाद थाने के अधिकारी उनके सम्मान में दंडवत हो गए। अटल जी ने अपनी जेब से कुछ रुपये निकालकर थाना अधिकारी को देते हुए कहा कि वे मृतक भैंस के मालिक को तलाश करके उसे उचित मुआवजा दे दें। हमारी वैन क्षतिग्रस्त हो चुकी थी लिहाजा उसे वहीं छोड़कर हम एक किराये की गाड़ी से ग्वालियर चले गए। अटल जी को लंबे समय तक दुर्घटना के बाद भाग जाने का ये प्रकरण याद रहा। अटल जी अक्सर शिवकुमार से कहते थे तुमने उस दिन अच्छा नहीं किया मुझे दबाव डालकर वहां से नहीं लाना चाहिए था। लेकिन मुझे पता था उन परिस्थितियों में यही करना उचित था। इस प्रकरण से अटल जी का सामना कई साल बाद लालकिले पर होने वाले एक कवि सम्मेलन में हुआ। कवि सम्मेलन में अटल जी के पास बैठे एक अधेड़ उम्र के कवि ने उनसे मंच पर अपना काव्य पाठ कराने की सिफारिश करने को कहा। अटल जी ने उस कवि का परिचय लेकर पूछा कि वे कहां के रहने वाले हैं तो उस शख्स ने कहा-‘वहीं का जहां आपने भैंस मारी थी।’
इतना सुनते ही अटल जी को सारा प्रकरण याद आ गया। उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा कि जिस व्यक्ति की भैंस दुघर्टना में मर गई थी उसे मुआवजा तो मिल गया न। उस व्यक्ति ने बताया कि उनके जाने के बाद पुलिस घटनास्थल पर आई और पुलिस ने ही बताया था कि गाय आपकी वैन की टक्कर से मरी है, साथ ही थानेदार ने ये भी चेतावनी दी थी कि अगर मुआवजा मांगने या बखेड़ा खड़ा करने कोई भी अटल जी के पास गया तो वे उसे सलाखों के पीछे डाल देंगे। यह सुनकर अटल जी को बेहद दुख हुआ। उन्होंने कहा कि अब वे उन कवि महोदय का काव्य पाठ तभी कराएंगे जब वे अपने गांव से उस व्यक्ति को लेकर उनके पास आएंगे जिसकी भैंस मर गई थी। उसी दिन मथुरा निवासी वह व्यक्ति अपने गांव गया और अगले दिन भैंस के मालिक को लेकर अटल जी के पास आया तो अटल जी ने उस दिन की घटना के लिए भैंस मालिक से क्षमा याचना करते हुए उसे दस हजार रुपये देकर दूसरी भैंस खरीदने के लिए कहा। ऐसा था अटल जी का उदार व्यक्तित्व।
पारिक अटल जी के व्यक्तित्व की खूबियों के बारे में बताते हैं- अटल के पास आए कुछ ही दिन हुए थे। मैं ही उनके तमाम काम देखता था। यहां तक कि उनका ड्राइवर भी मैं ही था। वे बंगलौर में किसी समारोह में शामिल होकर हवाई जहाज से दिल्ली लौट रहे थे। मैं उन्हें एयरपोर्ट से लाने के लिए तैयार था कि जगदीश चन्द्र माथुर जो बीजेपी के जनसंघ के बड़े नेता रहे वे घर पर आए और कहा कि रीगल में एक अंग्रेजी फिल्म लगी है, चलो देख आते हैं। मैंने अटल जी को लाने के लिए असर्मथता जताई लेकिन उनकी वरिष्ठता के दबाव के कारण मुझे जाना पड़ा। संयोग से फिल्म भी लंबी थी और अक्सर देर से आने वाली बंगलौर की फ्लाइट भी उस दिन वक्त से आ गई। जब मैं कार लेकर एयरपोर्ट पहुंचा तब तक फ्लाइट आ चुकी थी और पैसेंजर बाहर निकल चुके थे। वे सहमते हुए और नौकरी जाने की कल्पना के डर से कार लेकर फिरोजशाह रोड के फ्लैट पर पहुंचे। फ्लैट की चाभी उन्हीं के पास थी सो अटल जी बरामदे में अपना सूटकेस रखकर बेचैनी से टहल रहे थे। उन्हें देखकर सामान्य भाव से अटल जी ने पूछा-कहां चले गए थे शिवकुमार मैंने एयरपोर्ट पर काफी इंतजार किया कहीं दिखे नहीं तो टैक्सी लेकर चला आया।
मैंने सहज भाव से डरते हुए सच बता दिया कि जगदीश माथुर जबरन रीगल में फलां अंग्रेजी फिल्म दिखाने ले गए थे इसलिए विलंब हो गया…साथ ही मैंने माफी मांगते हुए कहा आज के बाद ऐसी गलती नहीं होगी तो वे हंसते हुए बोले- ‘अमां यार तुमने अकेले फिल्म देख ली थोड़ा रुक जाते तो हम भी देख लेते।’ यह कहते हुए अटल जी ने विषय को पलटते हुए कहा कि हमें राजमाता सिंधिया जी के यहां मीटिंग में चलना है। तुम गाड़ी निकालो, तब तक मैं कपडेÞ बदलता हूं।
अटल जी की महानता के इस किस्से को बयान करते हुए पारिक बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी एक संवेदनशील तथा पशुप्रेमी इंसान थे। इंसान तो क्या पशुओं को होने वाली पीड़ा से भी उनका मन व्यथित हो जाता था। ऐसे ही एक प्रसंग को याद करते हुए पारिक बताते हैं कि अटल जी उन दिनों फिरोजशाह रोड के सरकारी फ्लैट में रहते थे। वहां उन्होंने एक खरगोश पाला हुआ था। खरगोश के प्रति उनका लगाव इसी बात से समझ सकते हैं कि वे बाहर जाने से पहले अपनी गोद में लेकर उसे लाड दुलार करते और दूध पिलाते थे, फुर्सत के पलों में उससे बात करते। कभी कभी तो उसे कविता सुनाने लगते। एक दिन अटल जी संसद से लौटे तो देखा कि खरगोश की मौत हो गई है। अटल जी ने उनके साथ मिलकर खुद बंगले के पीछे लॉन में उसकी कब्र खोदी और बाजार से नया कपड़ा मंगवाया जिसमें लपेटकर उसके शव को वहां दफनाया। खरगोश की मौत से वे इतने दुखी थे कि तीन दिन तक ठीक से खाना भी नहीं खाया।
पारिक बताते हैं कि वैचारिक रूप से नेहरू जी से मतभेद होते हुए भी अटल पर नेहरू की गहरी छाप थी। पारिक स्मृतियों को कुरेदते हुए राजीव गांधी के उस किस्से को बयान करना भी नहीं भूलते जब बीमारी के इलाज के लिए राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए अटल जी को सदस्य न होने के बावजूद संयुक्तराष्ट्र भेजे एक प्रतिनिधि मंडल का सदस्य बनाकर भेजा था। पारिक बताते हैं कि अटल जी को जीवन में सबसे ज्यादा कष्ट उस वक्त महसूस हुआ जब वे प्रधानमंत्री थे और एसपीजी सुरक्षा व प्रोटोकाल के कारण लोगों से खुलकर नहीं मिल पाते थे। ऐसे में वे अक्सर कहते-ऐसे पद, ऐसी प्रतिष्ठा किस काम की जो इंसान को अपनों से दूर कर दे। लेकिन पारिक कहते हैं कि तमाम प्रतिबंधों के बाद भी अटल जी हमेशा लोगों के दिलों में रहे और हमेशा रहेंगे।