उमेश सिंह।
रामनाथ कोविंद के बारे में आम लोगों को अभी इतनी ही जानकारी है कि वह भाजपा के नेता रहे, राजनीति में सक्रिय रहे और सादगी, सहजता व विनम्रता उनके स्वभाव में है। लेकिन उन्हें उस गांव की नजर से देखना एक अलग ही अनुभव है जहां वह बड़े हुए …और जब बड़े बने तो भी हमेशा गांव के ही बने रहे।
असामान्य परिस्थितियों में असाधारण व्यक्तित्व का सृजन होता है। रामनाथ चार वर्ष के थे तो मां की स्नेहिल छाया छिन गई। संघर्ष की बदौलत यूपीएसएसी में अपनी मेधा का झंडा लहराया। तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई के निजी सचिव रहे। हाईकोर्ट से सुप्रीमकोर्ट तक वकालत की। दो बार राज्यसभा सदस्य रहे। फिर भी इनके रसूख का जरा सा भी असर कुटुंब के किसी भी सदस्य पर नहीं दिखता। इसे ‘शक्ति-सत्ता का विवेकपूर्ण’ प्रयोग कहेंगे। कमोबेश पीएम मोदी जैसी त्वरा रामनाथ कोविंद में भी है। घर के भाई-भतीजे कपड़े की दुकान से लेकर प्राइवेट नौकरी जहां-तहां कर रहे हैं। सभी का रामनाथ कोविंद से घना संपर्क भी है। ‘सत्ता शक्ति-सौंदर्य’ की वैसी ही त्रिवेणी कोविंद में भी बह रही है जैसी भारतीय परंपरा में कुर्सी पर सत्तासीन व्यक्तियों से अपेक्षित रही है। अब्दुल कलाम, नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ जैसा वीतरागी भाव इनमें भी प्रवाहित सा प्रतीत होता है।
पुश्तैनी घर गांव को समर्पित
पिता स्व. मैकूलाल की स्मृति में 25 नवंबर 2001 को रामनाथ कोविंद ने पुश्तैनी घर को मिलन केंद्र बनवाकर गांव को समर्पित कर दिया। यहां पर दो बड़े कमरे व बरामदा है। एक कमरे में बेड लगा है जिसमें सिरहाने पर रामनाथ कोविंद के चित्र रखे गए हैं। सार्वजनिक कार्य में मिलन केंद्र का प्रयोग होता है।
पुश्तैनी घर के पड़ोसी
स्व. मैकूलाल के पुश्तैनी घर से सटा घर हवलू का है। लोगों का रेला देख हवलू हकबका गए हैं। वह यह नहींं जान पा रहे कि आखिर क्या हो गया है। ठीक सामने स्व. भीखा बाबा के वंशज हैं। वहां रामभरोसे के तीन पुत्रों अनिल कुमार, प्रमोद कुमार व विनोद कुमार का 18 सदस्यीय परिवार रहता है। संगीत कुमार, धीरेंद्र कुमार, पिंकी, खुशबू, संध्या, सुमित, वंदना, स्वाती, विवेक, अभिषेक, ज्योति, मोती और पलक आदि ने बाबा की उपलब्धि पर आह्लाादित हो फोटो खिंचवाए और आने-जाने वालों के लिए चाय-पानी की जिम्मेदारी भी संभाल रखी है।
पड़ोसी के कुएं के चबूतरे पर करते थे स्नान
मिलन केंद्र के बगल भदौरिया परिवार के अहाते में बड़ा सा कुंआ आज भी प्रथम नागरिक के स्नान का गवाह बना हुआ है। इसी के चबूतरे पर स्नान के साथ ही बचपन में रामनाथ कोविंद की बैठकी भी होती थी। भदौरिया परिवार भावुक हृदय से कुंए को टुकुर-टुकुर निहार रहा था।
बदल गया ‘विद्या के बुनियादी संस्कार’ का स्वरूप
पुश्तैनी घर से सौ मीटर की दूरी पर प्राथमिक स्कूल परौंख था। बगल के तालाब का पानी बरसात में छलक तत्कालीन पगडंडी को डुबो देता था। गांव के समृद्ध गौर परिवार ने ज्ञान का उजियारा फैलाने के लिए अपने घर के एक हिस्से को विद्यालय के लिए दे रखा था जिसमें वर्ष 1957 तक स्कूल चला। इसके बाद यह स्कूल पथरी देवी मंदिर के पास सरकारी भवन में स्थानांतरित हो गया। गौर परिवार के गोपाल सिंह, रणधीर सिंह, रामवीर सिंह व नरेंद्र सिंह आदि ने कहा कि ‘हमारे पूर्वजों का विद्या के प्रति जो समर्पण था, उसका इतना बड़ा परिणाम अब जाकर आया है’ यहां के दो कमरों में ताला लटका हुआ था और भैंस पागुर कर रही थी। अहाते में पीपल का पेड़ अपनी नैसर्गिक आभा के साथ विराजमान है।
परौंख गांव से आठ किलोमीटर दूर जूनियर हाईस्कूल खानपुर डिलवल है जहां रामनाथ कोविंद ने कक्षा छह, सात और आठ की पढ़ाई की। तत्कालीन जमींदार गौरवंशीय पचघरा (पांच हवेली एक ही परिवार की) की समृद्धि व वैभव अपने शिखर पर थी जिसका गवाह आज भी हवेलियों का यह समूह है। गौरवंशज शुभम सिंह ने हवेली के बगल स्थित स्कूल के ध्वंसावशेषों को दिखाते हुए कहा कि दो दशक पहले तक यहां पर स्कूल चलता था।
मां पथरी देवी का मिला आशीर्वाद
गांव का प्राचीन पथरी देवी का मंदिर मिट्टी के टीले के रूप में था, जो ढह गया था। बरगद के पेड़ की जड़ ने ही प्राकृतिक रूप से मंदिर जैसी आकृति बना रखी थी। स्व. मैकूलाल ने यहां पर मिट्टी से मंदिर का निर्माण किया। कालांतर में पुन: पक्के मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर के प्रति रामनाथ कोविंद की गहरी आस्था है। जीवन में उन्हें जब भी कोई बड़ी उपलब्धि मिलती है तो वे सिर नवाने यहां जरूर पहुंचते हैं। गांव के लोगों का पथरी देवी मंदिर में भजन के जरिये रामनाथ कोविंद के प्रति मंगलगान लगातार जारी है। ये कलाकार आशुकवि भी हैं… तत्काल रचते हैं और ढोल-मंजीरा, हारमोनियम और करतल की धुन गा रहे हैं-
‘मैं क्या पूरा देश खुशी में है/ मोदी तेरे निर्णय पर / कुर्सी पर तुझे बिठाके/ गजपति तुझे बनाके/ खुशियां मनाएंगे हम…
पथरी मां तेरी कृपा से/ निर्बल का बल बनाके/ राष्टÑपति तुझे बनाके/ दुनिया बनाएंगे हम…’
…इसलिए गांव में खुलवाया इंटर कालेज
कक्षा आठ के बाद गांव में पढ़ाई की व्यवस्था नहींं थी। बच्चों को काफी दूर जाना पड़ता था। प्राचीन शिवमंदिर के बगल ही रामनाथ कोविंद ने वीरांगना झलकारी बाई इंटर कालेज खुलवाया। कमलेश कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि रामनाथ जी ने जब आग्रह किया तो हमने एक एकड़ जमीन स्कूल के लिए दान कर दी। यहां पर साढ़े तीन सौ छात्र पढ़ते हैं। गौरतलब है कि जब भी रामनाथ कोविंद गांव आते हैं तो इस प्राचीन शिवमंदिर में जरूर मत्था टेकते हैं।
सन 52 में परौंख आए थे डॉ. लोहिया
डॉ. राम मनोहर लोहिया का परौंख से गहरा रिश्ता था। जसवंत ने घर के सामने कुएं की जगत को दिखाते हुए कहा कि मेरे बड़े भाई बजरंग उनके अनुयाई थे। इसी जगत पर डॉ. लोहिया ने वर्ष 1952 में पंचायत लगाई थी।