क्यों निशाना बनाई जाती हैं मूर्तियां

उमेश सिंह

अफगानिस्तान के बामियान में डेढ़ दशक पहले अहिंसा और शांति के बड़े प्रतीक महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को जमींदोज कर मुल्ला उमर ने हमें रुलाया था। हमारी तहजीब है कि हम भले रोते रहें लेकिन जल्दी किसी को रुलाते नहीं हैं। आखिर ये कौन लोग हैं जो त्रिपुरा में लेनिन के बुत को जमींदोज कर रहे हैं और कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति पर कालिख पोत तोड़फोड़ कर रहे हैं। मेरठ में डॉ. भीमराव आंबेडकर की मूर्ति गिरा रहे हैं। रमास्वामी पेरियार के बारे में अभद्र भाषिक व्यवहार कर रहे हैं? दरअसल यह सभ्यता की आड़ में छिपी बर्बरता है जो जगह-जगह अपने विकृत सोच को प्रकट कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन घटनाओं की निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है। ऐसे विध्वंसात्मक सोच वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

भारत की संस्कृति-सभ्यता का सिरा जिस आदिम बिंदु पर जाकर ठहरता है, उस युग से हम मूर्तिपूजक हैं। लोथल, कालीबंगा, धौलावीरा, हड़प्पा, मोहेजोदड़ो आदि स्थानों की पुरातात्विक खुदाई में भी विकसित अवस्था में मूर्तिकला के दिव्य दर्शन होते हैं। और तो और, हम तो नदी, पहाड़, पेड़ और कण-कण में आस्था ढूंढ लेते हैं। महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, दीन दयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भीम राव अंबेडकर, पेरियार, लेनिन और मंडेला जैसे युग पुरुष मूर्ति या प्रतिमाओं के मोहताज नहीं होते। मूर्ति बनाना एक कलाकार की साधना का प्रताप है, उसकी सुंदर कृति है और उसका भंजन करना बर्बर और असभ्य लोगों का कृत्य है। डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजय प्रताप सिंह ने कहा, ‘मूर्तियों पर कालिख पोतने, उन्हें तोड़ने का मकसद पहले के दौर की सोच को मिटाना होता है। उस दौर के प्रतीकों को नष्ट करना होता है। इसलिए कहा जाता है कि अगर आप किसी देश को अच्छी तरह से समझना-परखना चाहते हैं तो यह मत देखिए कि उन्होंने कौन से प्रतीक लगाए हैं, यह देखिए कि उन्होंने कौन से प्रतीक नष्ट किए हैं। आखिर इन प्रतीकों को क्यों नष्ट किया।’

गौरतलब है कि जब सत्ता बदलती है तो बदलाव में वाहक बने लोगों को महसूस होता है कि पिछले दौर में जो हुकूमत में थे, उन्हीं के कारण अन्याय और शोषण की चक्की में हम पिस रहे थे। और इसी अन्याय और शोषण के प्रतीकों को मिटाने की कोशिशें शुरू हो जाती हैं। वैश्विक स्तर पर देखें तो अमेरिका ने अपनी आजादी का एलान किया तो उस दिन उत्साहित भीड़ ने न्यूयार्क शहर में लगी ब्रिटिश राजा जार्ज तृतीय की कांस्य की मूर्ति को रस्सी से खींचकर गिरा दिया था। न्यूयार्क के बाउलिंग ग्रीन में स्थित जार्ज तृतीय की मूर्ति गिराने की इस घटना को अमेरिका की आजादी के एलान का सबसे बड़ा प्रतीक माना गया। सोवियत संघ के विघटन के बाद तो वहां पर बुतों को जमींदोज करने का लंबा सिलसिला चला था। ईराक में सद्दाम हुसैन और लीबिया में कर्नल गद्दाफी के पतन के बाद उनके बुतों को ढहा दिया गया था। दुनिया में अहिंसा और शांति के बड़े प्रतीक माने जाने वाले महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को अफगानिस्तान के बामियान में तोड़ा गया। मुल्ला उमर के इस घृणित कार्य की निंदा समूची दुनिया में हुई। आखिर महात्मा बुद्ध किसी भी युग में न तो अन्याय के और न ही शोषण के प्रतीक रहे। यह कट्टरवादी इस्लाम का घिनौना तालिबानी कृत्य था। इटली के सिएना शहर में खूबसूरती और सेक्स की देवी वीनस की मूर्ति को लोगों ने हटा दिया था। एक युद्ध में हारने के बाद बुत ढहाने वालों को लगा कि इस नग्न मूर्ति के दर्शन के कारण ही ईश्वर उनसे कुपित हो गए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *