वीरेंद्र नाथ भट्ट।
समाजवादी पार्टी अगले वर्ष अक्टूबर में 25 साल की हो जाएगी। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में यह पहली क्षेत्रीय पार्टी है जो इस मुकाम तक पहुंचने में सफल रही है। लेकिन इसका जश्न मनाने की तैयारी के स्थान पर पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव आमने सामने हैं। लोग इसे चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश यादव के बीच कुर्सी की लड़ाई भी मानते हैं। स्वयं अखिलेश भी कह चुके हैं कि पार्टी और परिवार में कोई विवाद नहीं है केवल कुर्सी की लड़ाई है। बाप-बेटे की इस लड़ाई में मुलायम सिंह खुल कर अपने भाई शिवपाल यादव के साथ हैं। पार्टी अभी भले ही दो फाड़ ना हुई हो लेकिन मुलायम का परिवार स्पष्ट तौर पर बंट चुका है। पार्टी और परिवार के लोग अब मान चुके हैं कि अखिलेश यादव अलग पार्टी बनाने की घोषणा कभी भी कर सकते हैं।
मुलायम के पैतृक गांव सैफई जो बड़ा नगर बन रहा है, वहां पिछले एक साल से यह चर्चा आम है। क्षेत्र के जो लोग शिवपाल यादव से मिलने जाते थे उनसे कहा जाता था कि शिवपाल यादव जल्दी ही मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। उसके बाद उनका काम हो जाएगा। जाहिर है वो लोग यह बात अखिलेश यादव को भी बताते थे। हरिद्वार के स्वामी कैलाशानंद की भी सैफई में बहुत चर्चा है कि शिवपाल यादव उनके अंध भक्त हैं। 2015 के सैफई महोत्सव में उनकी खूब आवभगत हुई थी। स्वामी कैलाशानंद ने शिवपाल यादव को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए तांत्रिक अनुष्ठान व यज्ञ आयोजित किए थे।
राजद सुप्रीमो लालू यादव के रिश्तेदार और सपा के विधान परिषद सदस्य जीतेंद्र यादव भी शिवपाल को मुख्यमंत्री बनवाने के अभियान में शामिल हैं। एक अन्य तांत्रिक ने भी इसके लिए हरियाणा में तंत्र साधना की है। यह सारी बातें सैफई और इटावा में आम लोगों की जानकारी में है। इन बातों में कितना सच है और कितनी कहानी ये तो मालूम नहीं लेकिन यह सच है कि इन सब बातों की चाचा-भतीजे के बीच तनाव बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वामी कैलाशानंद के शिवपाल के लखनऊ और इटावा के घर पर लगातार आने जाने का भी कुछ महत्व तो होगा ही।
(पूरी खबर ओपिनियन पोस्ट पत्रिका के 16-31 अक्टूबर 2016 के अंक में पढ़ें)