अभिषेक रंजन सिंह
नई दिल्ली। प्रगति मैदान में सप्ताह भर चलने वाले विश्व पुस्तक मेले में इस बार उतनी रौनक नहीं है, जितनी पिछले कई वर्षों में देखने को मिली। वैसे तो इस फीकेपन की कई वजहें हैं, लेकिन विमुद्रीकरण की वजह से भी पुस्तक प्रेमियों की आमद इस बार मेले में कम हुई है। ऐसा कई प्रकाशकों एवं लोगों का मानना है। विमुद्रीकरण के बाद सरकार ने देश की जनता से डिजीटल लेन-देन को बढ़ावा देने की अपील की। सरकार की इस पहल का सकारात्मक असर भी हुआ। शायद यही वजह है कि देश में छोटे कारोबारियों से लेकर आम लोगों तक ने डिजीटल लेन-देन के प्रति अपनी दिलचस्पी दिखाई।
बात अगर पुस्तक मेले की करें तो यहां अंग्रेजी और हिंदी कुछ बड़े और लोकप्रिय प्रकाशनों को छोड़ ज्यादातर प्रकाशन नकदी में ही किताबों की बिक्री कर रहे हैं। नतीजतन पुस्तक मेले में आने वाले लोग इससे काफी निराश भी हैं। इसका असर पुस्तकों की बिक्री पर भी देखा जा रहा है। जिन प्रकाशकों द्वारा डिजीटल लेन-देन किया जा रहा है उनका भी कहना है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार लोगों की संख्या कम है। वहीं छोटे प्रकाशकों का कहना है कि नकदी की कमी के कारण इस बार किताबों की बिक्री प्रभावित हुई है। कई प्रकाशकों का यह भी कहना था कि जितना खर्च एक स्टॉल लगाने में हुआ है, अगर उसकी कीमत भी वसूल हो जाए तो काफी है। बात अगर दूसरे देशों के प्रकाशन की करें तो इस बार मेले में वहां लोगों की भीड़ कम देखने को मिली। पहले पाकिस्तान से कराची और लाहौर से तीन-चार प्रकाशनों के स्टॉल लगे होते थे। लेकिन इस बार पाकिस्तान से सिर्फ प्रकाशन लाहौर से आया था। वह भी भारत के एक प्रकाशन के साथ समझौते के तहत। इस बार मेले में बांग्लादेश से एक भी प्रकाशन ने पुस्तक मेले में हिस्सा नहीं लिया। इससे भारत के पुस्तक प्रेमियों को मायूस होना पड़ा। पुस्तक मेले में आने वाले लोग कई घंटों तक रहते हैं। यहां खाने-पीने के कई रेस्तरां भी मौजूद हैं, लेकिन वहां खाना खाना लोगों को महंगा पड़ रहा है। मिसाल के तौर पर जो छोटे-भटूरे प्रगति मैदान से बाहर 30-40 रुपये में मिल जाते हैं, उसकी कीमत यहां 120 रुपये हैं। सिर्फ छोटे-भटूरे ही नहीं, बल्कि पानी की सीलबंद बोतल एवं अन्य फूड पैकेटों की कीमतें भी यहां कई गुना महंगा है। सामान्य आदमी इतने महंगे कीमत पर भोजन करने का साहस नहीं जुटा पाते। ऐसे में कई लोग अपने घर से भी खाना लाना बेहतर समझते हैं। पुस्तक मेले में कई ऐसी परेशानियां हैं, जिससे लोगों को हर साल दो-चार होना पड़ता है। ऐसे में आयोजकों को चाहिए की वह इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए, ताकि देश-विदेश से आने वाले प्रकाशनों और पुस्तक प्रेमी नई दिल्ली से एक अच्छी यादें लेकर जाएं।