उमेश सिंह
देश गेरुआ रंग की ओर बढ़ रहा है। वह भी गाढ़ा गेरुआ रंग की ओर। त्रिपुरा का अभेद्य वामपंथी लाल दुर्ग ध्वस्त हो चुका है। वहां गाढ़ा गेरुआ ध्वज लहरा रहा है। त्रिपुरा की जीत में योगी आदित्यनाथ की महत्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। यहां पर नाथ संप्रदाय की अच्छी-खासी आबादी है। बंगालियों की आबादी में पैंतीस फीसदी लोग नाथ पंथ को मानते हैं। नाथ मतानुयाई बहुल इलाकों जुवराजनगर, धरमनगर, अगरतला, कंचनपुर, कमलपुर, खायरपुर, मुजलिशपुर पबिचेरा ओर सबरूम में योगी की सभाएं हुर्इं और रोड शो भी हुआ। इन नौ विधानसभाओं में सिर्फ एक को छोड़कर आठ सीटों पर कमल खिल गया। जीत की अहमियत इस आंकड़े से जाहिर है कि पिछले विधानसभा चुनाव में त्रिपुरा में भाजपा को महज डेढ़ फीसदी वोट मिला था जो इस बार बढ़कर तेंतालीस फीसदी हो गया। यह ‘गाढ़ा गेरुआ रंग’ का उभरा प्रतीक अब केरल की ओर बढ़ रहा है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सियासत में ‘गाढ़ा गेरुआ रंग के राष्ट्रीय प्रतीक पुरुष’ के रूप में उभर चुके हैं। पिछले एक वर्ष से मिल रहे सियासी संकेत बता रहे हैं कि सियासत में यह ‘गेरुआ रंग’ अगले लोकसभा चुनाव का वर्ष 2019 आते-आते और भी गाढ़ा हो जाएगा। आजादी के बाद से ही अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण का जो दौर चला, कहीं यह उसकी प्रतिक्रिया तो नहीं है। यदि प्रतिक्रिया है तो क्या अब सत्तर बरस तक देश में बहुसंख्यकों के इर्द-गिर्द ही राजनीति की सूई घूमती रहेगी? जो मठ-मंदिर जाने से झिझकते थे, मत्था टेकने से हिचकते थे, आखिर वे भी तो झिझक और हिचक को छोड़ वहां जाने लगे। गुजरात चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उतने मंदिरों में नहीं गए, जितने ज्यादा धर्मस्थलों पर राहुल गांधी ने मत्था टेका। उधर मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मां नर्मदा की अनथक यात्रा कर रहे हैं। देश की सियासी अंतर्धारा की जो गति है, वह ‘हिंदू-हिंदुत्व-हिंदुस्तान’की ओर बढ़ रही है। इसी अंतर्धारा में ‘सबका साथ-सबका विकास’ की लहर भी है। भगवा रंग को लेकर अल्पसंख्यकों के बीच डर का जो नाहक सियासी भ्रम पैदा किया गया था, उसे भी तोड़ने की सधी कोशिशें लगातार चल रही हैं। दरअसल, विपरीत परिस्थितियों में हिंदुत्व ने खुद को आक्रांता होने से बचाए रखा। यही उसका सनातन संस्कार और परंपरा की पूंजी थी और है। हिंदुत्व की संवेदना इतनी सघन व घनीभूत है कि वह चिद्ब्रह्मांडीय संवेदना के शिखर स्तर को स्पर्शित करती है। गुजरात में जो भय दिखाया गया था, वह भ्रम साबित हुआ। उत्तर प्रदेश में भी भगवा सत्ता को लेकर अल्पसंख्यकों में भय दिखाया गया था, वह भी झूठा साबित हो रहा है। दरअसल यही भय दिखाकर सियासी दल अल्पसंख्यकों का वोट हथियाते रहे हैं।
संघ व भाजपा के लिए गुजरात की जमीन ‘सियासी प्रयोगशाला’ के रूप में प्रयोग की जाती रही है। गुजरात के पिछले तीन दशक की सियासी तासीर बखूबी संकेत कर रही है कि चुनावी ब्रह्मास्त्रों की शुरुआत गुजरात से ही होती है। गुजरात की प्रयोगशाला में हिंदुत्व के कठोर आग्रहवादी छविधारी योगी आदित्यनाथ को इस बार आजमाया गया। इसका नतीजा रहा कि बुरी तरह से घिरने के बाद भी गुजरात की जमीन पर एक बार फिर कमल खिल गया। नाथ पंथ का गुजरात में व्यापक प्रभाव है। चुनाव के दौरान कच्छ जिले के चौबारी गांव (कच्छ भूकंप का केंद्र) में रामजी मेरिया मिले थे और उन्होंने बताया था, ‘यहां पर गोरक्षपीठ का जनता के बीच बड़ा प्रभाव है क्योंकि कच्छ में पीठ के दो केंद्र हैं और योगी यहां पर दो बार आ चुके हैं।’ सियासत में दशकों से जो परंपरागत तौर-तरीके थे, उनकी विदाई का काल चल रहा है। मिथक तोड़ नई-नई राहें बनाई जा रही हैं और उस पर चला जा रहा है। नई राह बनाने में न हिचक और न ही झिझक। संघ परिवार व भाजपा हिंदुत्व के इर्द-गिर्द बुनी हुई विचारधारा को लेकर ही उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक चल रहे हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उन्हें इसमें भरपूर सफलता भी मिल रही है। जिस ढंग से योगी आदित्यनाथ का देश के विभिन्न हिस्सों में सभा और रोड शो चल रहा है, वह संकेत दे रहा है कि गाढ़े गेरुआ रंग की राजनीति की वे धुरी बनते जा रहे हैं। गोरक्षपीठ के पत्र हिंदवी के संपादक रहे व गोरखपुर स्थित महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज के प्राचार्य डॉ. प्रदीप राव ने देश में नाथपंथ के विस्तार व प्रभाव के बारे में कहा, ‘नाथ पंथ के बड़े केंद्र उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा राज्य में हैं। जबकि उत्तर में हिमाचल, पंजाब, हरियाणा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश में गोरक्षपीठ का समाज के बीच गहरा संपर्क है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भी नाथ पंथ को मानने वाले बड़ी तादाद में हैं। दक्षिण की ओर केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में भी नाथ मत के अनुयाई हैं। गुजरात और राजस्थान में गोरक्ष परंपरा की धारा ज्यादा वेगवान है। इन्हीं सब कारणों से आदित्यनाथ जी देश के हर हिस्से में जा रहे हैं।’
गौरतलब है कि इतने वृहत्तर क्षेत्र में सदियों से सारंगी लिए जोगियों ने लोगों की चेतना को झंकृत किया है और उन्हें जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सदियों से दाता बनकर सिर्फ दिया है, लिया कुछ भी नहीं। पहली बार उसे कर्ज उतारने का मौका मिला है, आदित्यनाथ योगी के रूप में। आरएसएस और भाजपा योगी को आगे कर उस भक्तिभाव का अपनी सियासी ताकत के बढ़ाने में उपयोग कर रहे हैं। जनता को योगी के रूप में भगवामय बेदाग आक्रामक हिंदुत्व व्यक्तित्व मिला है जो तेजस्वी-ओजस्वी और अनंत संभावनाओं से भरे हैं। इसी का परिणाम है कि वे जहां खड़े हो जाते हैं वहीं सभा जैसा माहौल बन जाता है, जहां चलते हैं वहीं रोड शो सरीखा दृश्य उपस्थित हो जाता है। गोरखनाथ परंपरा के अध्येता व पत्रकार राजीव ओझा ने कहा, ‘योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के प्रति गहरी प्रतिबद्धता वाले राजनेता हैं। भाजपा से जुड़े होकर भी समय-समय पर हिंदुत्व के मुद्दों पर अलग राय जाहिर करते रहे हैं। शायद यही वजह है कि वह राजनीति में हिंदुत्व का विश्वसनीय चेहरा बन चुके हैं। नाथ संप्रदाय का योगी होने के कारण देश के विभिन्न प्रांतों में इनके व्यक्तिगत अनुयाई हैं। गोरक्षपीठ लंबे समय से देश भर में अपनी शिष्य परंपरा को सहेजे हुए है।’