लखनऊ।
प्रदेश के निजी स्कूलों की मनमानी पर योगी सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। अब मनमानी फीस नहीं बढ़ाई जा सकेगी, क्योंकि मनमानी फीस पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश सरकार अध्यादेश लाने जा रही है।
सरकार ने निजी स्कूलों की सालाना फीस वृद्धि का फॉर्मूला तय कर दिया है, जिसके तहत निजी स्कूल नवीनतम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में पिछले सत्र के शुल्क का पांच प्रतिशत जोड़ते हुए हर साल इतनी ही फीस बढ़ा सकेंगे।
शर्त यह होगी कि इस तरह से निर्धारित शुल्क स्कूल के शिक्षकों और कर्मचारियों की मासिक प्रति व्यक्ति आय में हुई वृद्धि के औसत से अधिक नहीं होगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में उप्र स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क का निर्धारण) अध्यादेश, 2018 के प्रारूप को मंजूरी दे दी गई है। कैबिनेट बैठक के बाद इस फैसले की जानकारी उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने दी।
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कैबिनेट के फैसले की प्रमुख बातें
- निजी स्कूलों को हर साल फीस बढ़ाने पर रोक, 7-8% से ज्यादा फीस वृद्धि अब नहीं हो सकती। क्लास 12 तक सिर्फ एक ही बार एडमिशन फीस ली जा सकेगी।
- 12वीं तक सिर्फ 1 बार एडमिशन फीस, 20 हजार से ज्यादा फीस लेने वाले स्कूल दायरे में आएंगे।
- नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर होगी कार्रवाई, अगर स्कूल नियमों का उल्लंघन करते हैं तो ऐसा पहली बार करने पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा। दूसरी बार ऐसा करने पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा। अगर तीसरी बार भी नियमों को उल्लंघन किया गया तो स्कूल की मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
- अगर स्कूल फीस बढ़ाना चाहते हैं तो तो अध्यापकों के वेतन वृद्धि के आधार पर ही ऐसा संभव हो सकेगा। यह भी 7-8% से अधिक नहीं। अभी 100% तक फीस बढ़ा दी जाती थी।
- अधिकांश स्कूल अपने यहां कॉमर्शियल एक्टिविटी करते हैं। उसकी आय को उन्हें स्कूल की आय में दिखाना होगा। इससे स्कूल की आय बढ़ जाएगी। अभी तक स्कूल यह कहते थे कि स्कूल की आय कम है। अब जब आय बढ़ेगी तो अध्यापकों की फीस बढ़ेगी और बच्चों की फीस कम होगी।
- अगर कोई अभिभावक या प्रबंधक इससे असहमत होता है तो एक अपीलिंग कमेटी बनेगी वहां सुनवाई की जा सकेगी।
- स्कूल रेजिस्ट्रेशन फीस, एडमिशन फीस, परीक्षा शुल्क समेत 4 शुल्क अनिवार्य होंगे। जबकि बस, मेस, हॉस्टल जैसी सुविधाएं वैकल्पिक होंगी।
- स्कूल शैक्षिक सत्र के 60 दिन पहले अलग-अलग मदों के खर्च को डिस्प्ले करेगा। शुल्क प्रभार की रसीद देनी होगी।
- पांच वर्षों तक ड्रेस में परिवर्तन नहीं कर सकते। अगर ऐसा होगा तो मंडलायुक्त स्तर पर एक कमेटी होगी जो इसकी जांच करेगी।
- सभी खर्चों को वेबसाइट पर प्रदर्शित करना होगा। त्रैमासिक, अर्ध वार्षिक शुल्क ही लिया जा सकता है। सालभर की फीस एक साथ लेने पर भी पाबंदी।
- निर्धारित दुकान से किताब और यूनिफार्म खरीदने को बाध्य नहीं होंगे अभिभावक, तय दुकान से जूते-मोजे, यूनिफार्म खरीदने को बाध्य नहीं कर सकते स्कूल।
- अभिभावकों की शिकायत दूर करने के लिए बनाया जा रहा है अध्यादेश।